न्यूज एनालिसिस: पांच उपमुख्यमंत्री बनाने के अभिनव प्रयोग के सियासी मायने
नई दिल्ली। एक राज्य में पांच उपमुख्यमंत्री। कुछ अजूबा लगा और थोड़ी हंसी आई न। हर कोई इसे अपने तरीके से ले सकता है लेकिन यही है आज की राजनीतिक हकीकत जिसमें सब कुछ वोट और सत्ता तक सीमित होकर रह गया है। पहले एक उपप्रधानमंत्री फिर दो उपप्रधानमंत्री। उसके बाद एक उपमुख्यमंत्री फिर दो उपमुख्यमंत्री और अब पांच उपमुख्यमंत्री। कोई आश्चर्य नहीं होगा कि आने वाले समय में यह संख्या दर्जनों तक पहुंच जाए। आखिर सबको खुश और संतुष्ट रखना है। किसी को भी नाराज करना सत्ताधारी के लिए कभी भी जोखिम वाला हो सकता है। इसलिए हर किसी के लिए उसके हिसाब से लॉलीपाप का इंतजाम है। जब जैसी जिसकी जरूरत हो उसे पकड़ा दिया जाए और सत्ता की गारंटी कर ली जाए। इसे एक राजनीतिक रोग तक कहा जाने लगा है जो इसी तरह की जरूरतों से लगा और अब लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके लाइलाज होने की आशंका को भी खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि सभी को कुछ ज्यादा ही चाहिए और वह कुछ इसी तरह दिया जा सकता है। इसलिए भी कि राजनीति का मूल किसी के पास है नहीं। हर किसी को केवल धन-संपदा और रुतबा चाहिए। राजनीति में जनसेवा तो सिर्फ कहने और सुनने की बातें होती हैं।
जगन मोहन मुख्यमंत्री पद की शपथ पहले ही ले चुके हैं
यह
नई
राजनितिक
परिघटना
आंध्रप्रदेश
में
सामने
आई
है
जिसका
ऐलान
नए
मुख्यमंत्री
जगन
मोहन
रेड्डी
ने
कर
रखा
है।
जगन
मोहन
मुख्यमंत्री
पद
की
शपथ
पहले
ही
ले
चुके
हैं।
अब
25
सदस्यीय
मंत्रिपरिषद
का
गठन
भी
कर
लिया
है।
अपने
मंत्रिपरिषद
को
सामाजिक
रूप
से
समावेशी
बताते
हुए
पिछड़ी
जाति
के
सात,
अनुसूचित
जाति
के
पांच,
अनुसूचित
जनजाति
और
मुस्लिम
समाज
से
एक-एक
तथा
कापू
व
रेड्डी
समाज
से
चार-चार
विधायकों
को
मंत्री
बनाया
गया
है।
इसमें
कहीं
भी
इसका
जिक्र
नहीं
है
कि
जिन्हें
मंत्री
बनाया
गया
है
और
जिन्हें
जो
विभाग
दिए
जाएंगे
उनकी
योग्यता
और
अनूभव
क्या
है।
सारी
योग्यता
सिर्फ
जातीय
समीकरण
पर
केंद्रित
है
क्योंकि
यह
एक
तरह
से
स्वयं
सिद्ध
है
कि
वोट
जाति
के
आधार
पर
ही
मिलते
हैं।
शायद
ही
कोई
पार्टी
अथवा
मतदाता
इससे
इतर
कुछ
सोचता
हो।
किसी
को
इससे
कोई
लेना-देना
नहीं
लगता
है
कि
जिसे
वह
अपना
जनप्रतिनिधि
बनाने
जा
रहा
है
उसकी
क्षमता
क्या
है
अथवा
क्या
कर
सकता
है।
चुनाव
जीतने
के
बाद
उसकी
अपनी
महत्वाकांक्षाएं
हिलोरे
मारने
लगती
हैं।
उसे
पहले
मंत्री
पद
और
उसके
बाद
बड़े
और
कमाऊ
विभाग
चाहिए।
अब
उसमें
रुतबा
भी
जुड़
गया
है।
हर
कोई
मुख्यमंत्री
बनना
चाहता
है।
चूंकि
मुख्यमंत्री
एक
ही
हो
सकता
है,
सो
उपमुख्यमंत्री
बनने
की
भूख
भी
बढ़ने
लगी
है।
इस
भूख
को
शांत
रखने
के
लिए
अब
पांच
उपमुख्यमंत्री
की
भी
व्यवस्था
कर
दी
गई।
क्या
नायाब
राजनीति
है।
यह किसी मुख्यमंत्री के लिए राजनीतिक जरूरत है अथवा मजबूरी
जाति आधारित राजनीति के लिए हिंदी भाषी राज्यों की चाहे जितनी आलोचना की जाए, लेकिन यह भारतीय राजनीति की एक कड़वी सच्चाई है। इससे दक्षिण अछूता है, ऐसा मानना तथ्यों की अनदेखी करना ही होगा। तभी तो कुछ भी करने से पहले जाति को ध्यान में रखा जाता है। जगन मोहन रेड्डी के राजनीति में उदय और उनके लगातार आगे बढ़ते हुए सत्ता तक पहुंचने के बहुत सारे किस्से सियासी हलकों में रहे हैं। अब सत्ता प्राप्ति के बाद लगता है कि सब कुछ जातीय संतुलन साधने तक सीमित होकर रह गया है। तभी तो उनकी ओर से मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद ही यह सार्वजनिक तौर पर कहा गया कि उनके मंत्रिमंडल में पांच उपमुख्यमंत्री होंगे और वे भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और कापू समुदाय से होंगे। हालांकि यह केवल उन्हीं के साथ हो, ऐसा भी नहीं है। पिछली टीडीपी सरकार में भी मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कापू और पिछड़ा समुदाय से दो उपमुख्यमंत्री बनाए थे। आसानी से समझा जा सकता है कि यह किसी मुख्यमंत्री के लिए राजनीतिक जरूरत है अथवा मजबूरी। जो भी हो, लेकिन यह असलियत जरूर बन गई है।
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सरकारों में उपमुख्यमंत्री बनाना कोई नई बात नहीं है
सरकारों
में
उपमुख्यमंत्री
बनाना
कोई
नई
बात
नहीं
है।
नई
बात
केवल
पांच
उपमुख्यमंत्री
बनाना
है।
दरअसल,
उपमुख्यमंत्री
कोई
संवैधानिक
पद
नहीं
है
और
न
ही
इनके
पास
मुख्यमंत्री
की
शक्तियां
होती
हैं।
इसकी
शुरुआत
उपप्रधानमंत्री
बनाए
जाने
के
साथ
हुई।
प्रधानमंत्री
जवाहर
लाल
नेहरू
ने
वल्लभभाई
पटेल
को
उपप्रधानमंत्री
बनाया
था।
उसके
बाद
1977
में
मोरारजी
देसाई
ने
जगजीवन
राम
और
चरण
सिंह
को
उपप्रधानमंत्री
बनाया।
इसी
तरह
चरण
सिंह
की
सरकार
में
वाईबी
चल्हाण,
वीपी
सिंह
सरकार
में
देवीलाल
और
अटल
बिहारी
वाजपेयी
की
सरकार
में
लालकृष्ण
आडवाणी
को
उपप्रधानमंत्री
बनाया
गया।
इस
सबके
बीच
ही
उपमुख्यमंत्री
बनाना
शुरू
किया
गया।
अभी
हाल
में
राजस्थान
में
सचिन
पायलट
को
उपमुख्यमंत्री
बनाया
गया।
उत्तर
प्रदेश
की
योगी
आदित्यनाथ
सरकार
में
दो
उपमुख्यमंत्री
केशव
मौर्य
और
दिनेश
शर्मा
को
बनाया
गया।
गुजरात
में
नितिन
पटेल
को
उपमुख्यमंत्री
बनाया
गया।
ये
सभी
मुख्यमंत्री
पद
के
दावेदार
माने
जा
रहे
थे।
माना
जाता
है
कि
यह
पद
न
मिलने
के
बाद
इन्हें
उपमुख्यमंत्री
बनाकर
संतुष्ट
किया
गया।
उपप्रधानमंत्री
पद
का
विवाद
सुप्रीम
कोर्ट
तक
जा
चुका
है।
उसके
बाद
से
ही
यह
स्पष्ट
हो
चुका
है
कि
उपमुख्यमंत्री
केवल
कहने
के
लिए
होता
है।
इससे
संबंधित
मंत्री
खुद
को
बड़ा
महसूस
कर
सकता
है।
इसके
अलावा
उसे
कुछ
नहीं
मिलता।
पर
आज
की
राजनीति
ही
ऐसी
हो
गई
है
जिसमें
सिर्फ
तुष्टिकरण
ही
सबसे
बड़ी
चीज
रह
गई
है,
भले
ही
कोई
इसकी
कितनी
आलोचना
करे।
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