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Bihar Elections 2020: नए दल जिन्हें हल्के में लेना बड़ी पार्टियों को पड़ सकता है भारी, देखिए कैसे बिगाड़ सकते हैं समीकरण ?

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नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) का ऐलान कभी भी हो सकता है। सभी पार्टियां चुनावी बिसात बिछाने में लग गईं हैं। मुख्य मुकाबला तो सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन में शामिल पार्टियों में ही होना है लेकिन ये बिहार की है। राजनीति यहां रग-रग में बसती है। यही वजह है कि हर बार चुनाव में कुछ नए खिलाड़ी मैदान में खुद को आजमाने उतरते हैं। इस बार के चुनाव में भी लगभग दर्जन भर नई पार्टियां मैदान में उतरने वाली हैं।

चार स्तर की पार्टियां लड़ती हैं चुनाव

चार स्तर की पार्टियां लड़ती हैं चुनाव

राज्य में चार स्तर की पार्टियां चुनाव लड़ती हैं। राष्ट्रीय दल जिनमें बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, सीपीआई, सीपीएम और राष्ट्रवादी कांग्रेस हैं। दूसरे राज्य स्तरीय दल जैसे जेडीयू, आरजेडी, एलजेपी और आरएलएसपी शामिल हैं। तीसरे नंबर पर ऐसी पार्टियां हैं जो दूसरे राज्यों में बड़ी पार्टियां हैं और बिहार में चुनाव लड़ने आती हैं। 2015 में दूसरे राज्य की 9 पार्टियों ने अपने कैंडीडेट मैदान में उतारे थे। अब बारी आती है पंजीकृत दलों की। 2015 के विधानसभा चुनावों में ऐसे दलों की संख्या 140 थी। इस रिपोर्ट में इन्हीं पंजीकृत दलों की चर्चा करने वाले हैं। खास तौर पर उन दलों की जो इस बार पहली बार मैदान में ताल ठोकने की तैयारी में हैं।

चर्चा में बड़े नेताओं का ये छोटा समूह

चर्चा में बड़े नेताओं का ये छोटा समूह

बिहार की राजनीति में इन दिनों एक छोटे समूह की चर्चा जोरों पर है। समूह तो छोटा पर इसमें जुड़े नेता अपने समय के दिग्गज हैं। इस समूह का नेतृत्व यशवंत सिन्हा कर रहे हैं। यशवंत सिन्हा कभी बीजेपी के दिग्गज नेताओं में हुआ करते थे लेकिन इस समय वे मोदी सरकार के बड़े विरोधी बने हुए हैं। इस समूह के नेता बिहार के अलग-अलग क्षेत्रों में जा रहे हैं और लोगों से बेहतर नेतृत्व के लिए मतदान करने की बात कर रहे हैं। तीसरा मोर्चा के नाम से सक्रिय यह समूह अभी तक तो चुनाव लड़ने की बात नहीं कर रहा है लेकिन माना जा रहा है कि चुनाव के पहले किसी नाम से ये मैदान में आ सकता है। इस समूह से जुड़े कुछ प्रमुख नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव, पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि जैसे लोग शामिल हैं। इस समूह के नेताओं का प्रभाव देखते हुए कुछ सीटों पर ये बड़े दलों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।

निषाद वोटों को रिझा रही मुकेश सहनी की वीआईपी

निषाद वोटों को रिझा रही मुकेश सहनी की वीआईपी

बॉलीवुड में सेट डिजायनर के तौर पर अपने काम का लोहा मनवा चुके मुकेश सहनी अपना नया सेट अप राजनीति में तैयार कर रहे हैं। इसके लिए उनकी नजर अपने सजातीय मल्लाह वोटों पर है और उनकी पार्टी है विकासशील इंसान पार्टी यानि वीआईपी। 2015 के विधानसभा चुनाव में सहनी निषाद संघ बनाकर भाजपा नीत एनडीए को सपोर्ट कर रहे थे लेकिन 2018 में उन्होंने वीआईपी का गठन किया। 2019 के लोकसभा चुनाव में वीआईपी महागठबंधन का हिस्सा रही। अभी तक तो वे महागठबंधन के साथ ही नजर आ रहे हैं लेकिन खास बात ये है कि उनकी पार्टी का ये पहला विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। इस बार ये पता चलेगा कि मल्लाह के बेटे के नाम से मशहूर मुकेश सहनी को मल्ला समाज का कितना आशीर्वाद मिलता है।

ओवैसी की AIMIM ने किया इस बार गठबंधन

ओवैसी की AIMIM ने किया इस बार गठबंधन

ओवैसी की पार्टी AIMIM बिहार के लिए नई पार्टी तो नहीं है लेकिन इस बार इस पार्टी ने गठबंधन कर बिहार में नया दांव चला है। ओवैसी की AIMIM ने समाजवादी जनता दल के साथ गठबंधन किया है। इस गठबंधन का नाम यूनाइडेट डेमोक्रेटिक सेक्युलर एलायंस (UDSA) होगा। गठबंधन के ऐलान के वक्त पूर्व सांसद देवेंद्र प्रसाद यादव भी मौजूद रहे। ओवैसी ने कहा AIMIM गठबंधन के साथ चुनाव लड़ेगी, किसे कौन सी सीट पर चुनाव लड़ना है ये बातचीत करके तय किया जाएगा। पार्टी से किसी भी भ्रष्टाचारी और अपराधी को टिकट नहीं दिया जाएगा। वैसे आपको ये पता होना ही चाहिए कि ओवैसी की पार्टी 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुकी है। 2015 के चुनाव में भी AIMIM दांव चल चुकी है लेकिन तब उसका खाता नहीं खुला था लेकिन बाद में हुए उपचुनाव में पार्टी ने एक सीट पर जीत दर्ज कर विधानसभा में अपना स्थान पक्का कर लिया है।

भीम आर्मी भी लड़ेगी विधानसभा चुनाव

भीम आर्मी भी लड़ेगी विधानसभा चुनाव

यूपी में दलित मुद्दों पर अपने जोरदार और उग्र प्रदर्शनों के चलते मीडिया में काफी चर्चित रही भीम आर्मी भी बिहार विधानसभा चुनावों में दम दिखाने की तैयारी में है। हाल ही में पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बिहार चुनावों में हिस्सा लेने की घोषणा की थी। इसके साथ ही राष्ट्रीय सेवा दल और राष्ट्रवादी विकास पार्टी भी इस बार सभी 243 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है। इनके अलावा भी कई नए दल चुनाव में ताल ठोकने की तैयारी में हैं। वैसे ये भी दिलचस्प है कि 2015 के चुनाव में 1150 उम्मीदवार ऐसे थे जो बिना किसी दल के ही यानि निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे थे।

छोटे दलों को हल्के में लेना होगा भारी भूल

छोटे दलों को हल्के में लेना होगा भारी भूल

वैसे तो इन छोटे दलों का असर नहीं नजर आता है लेकिन अगर इनके वोट प्रतिशत पर नजर डाल दें तो स्थिति साफ समझ में आने लगती है। ये छोटे दल और निर्दलीय प्रत्याशी मिलकर बिहार विधानसभा में 15 से 20 फीसदी वोट काटते हैं। 2015 में इन गैर मान्यता प्राप्त दलों को 7.82 प्रतिशत वोट मिले थे। जो कांग्रेस (6.66), बीएसपी (2.07), सीपीआइ (1.36), सीपीएम (0. 61) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (0.49) जैसे दलों से ज्यादा ठहरता है। वहीं इनका प्रतिशत कुछ राज्यस्तरीय दलों जैसे रालोसपा (2.56) और लोजपा (4.83) से भी ज्यादा है।

ये तो हुई छोटे दलों की बात, अब इसमें जरा निर्दलीय प्रत्याशियों का प्रतिशत जोड़ दीजिए। पिछले विधानसभा में निर्दलीय प्रत्याशियों को 9.57 फीसदी वोट मिले थे। अगर इस वोट को छोटे दलों के वोट के साथ जोड़ दिया जाय तो ये प्रतिशत 17.39 पहुंच जाता है। ये पिछली बार राजद को मिले वोट 18.35% से थोड़ा ही कम है जबकि जदयू के 16.83 से भी ज्यादा ठहरता है। ऐसे में ये निर्दलीय बड़े और आधार वाले दलों के प्रत्याशियों के सामने मुश्किल खड़ी कर देते हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव : वो छोटे खिलाड़ी जो बिगाड़ या बना सकते हैं किसी का खेलबिहार विधानसभा चुनाव : वो छोटे खिलाड़ी जो बिगाड़ या बना सकते हैं किसी का खेल

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English summary
new political parties in bihar assembly elections 2020 who can change the political scenario
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