दहेज की दुनिया के 10 दर्दनाक सच जो कोई नहीं सुनना चाहता
नई दिल्ली। दहेज कानून की शुरुआत जिस लक्ष्य के लिए की गई थी, दुर्भाग्य से वह पूरा तो नहीं हुआ बल्कि गलत रास्ते पर जरूर चला गया। इसी को दोबारा न्यायालय ने टटोला है और अब 'नारीवाद' की नई लड़ाई चल पड़ी है।
अपराध के आंकड़ों का जिक्र करते हुये कोर्ट ने कहा कि 2012 में धारा 498-क के तहत अपराध के लिये 1 लाख 97 हजार 762 व्यक्ति गिरफ्तार किये गये और इस प्रावधान के तहत गिरफ्तार व्यक्तियों में से करीब एक चौथाई पतियों की मां और बहन जैसी महिलायें थीं जिन्हें गिरफ्तारी की फांस में वजह-बेवजह फंसना पड़ा।
आइए जानें-समझें, जांचें और परखें कि क्यों आई ऐसी नौबत और कितना कंटीला हो चुका है दहेज कानून का पेड़ और कितने कड़वे साबित हुए हैं उसके फल-
ऐसे हुई शुरुआत
1961 में इस प्रथा को रोकने के लिए कानूनी जामा पहनाया गया था। 1985 में दहेज निषेध नियमों को मौजूदा परिस्थतियों के हिसाब से फिर से तैयार किया गया । अखबार 'मिंट' के अनुसार सत्यारानी चड्ढा केस में जब उन्होंने दहेज जैसी कुप्रथा पर आवाज उठाई, तब जाकर सरकार जागी व नियम बनाने पर बात बनी।
कहता है कानून
दहेज रोकथाम कानून 1961 दहेज मांगने, देने या कबूलने पर रोक लगाता है। दहेज की व्याख्या में इसे ऐसा कोई भी गिफ्ट बताया गया है जिसकी मांग की जाए या जिसकी शर्त पर शादी की जा रही हो।
फैलती रही दहेज की दीमक
1997 की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि दहेज़ के कारण प्रत्येक वर्ष कम से कम 5,000 महिलाओं की मौत हो जाती है । इन आंकड़ों में लगातार बढ़त हुई व अब कथित तौर पर सामने आया है कि हर घंटे एक दहेज हत्या होती है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट
दहेज कानून 1983 में संशोधन किए गए, लेकिन अच्छे नतीजे मिलने अब भी बाकी हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़ भारत में पिछले वर्ष दहेज हत्या के 8,083 मामले प्रकाश में आए।
होने लगा दुरुपयोग
करीब 85 प्रतिशत से ज्यादा मामले गलत बनाए गए और उस कारण लड़के के पूरे परिवार को प्रताड़णा झेलनी पड़ी। पिछले साल 8 हजार से ज्यादा वरिष्ठ नागरिक दहेज उत्पीड़न मामले में गिरफ्तार किए गए, जो आवश्यक नहीं थे।
इस बार का फैसला
हालिया फैसले में कोर्ट का कहना है कि पति और उसके रिश्तेदारों को परेशान करने के लिए महिलाओं द्वारा इस कानून का इस्तेमाल करने का चलन बढ़ा है। साथ ही अब बदलाव के तीन बिन्दु दिए गए हैं- सिर्फ शिकायत के आधार पर गिरफ्तारी ना हो, मजिस्ट्रेट भी करें जांच।
दी गई है न्यायिक दलील
दहेज उत्पीड़न के एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सीके प्रसाद और पीसी घोष की बेंच ने कहा कि अगर पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर लेती है तो हिरासत की अवधि बढ़ाने से पहले मैजिस्ट्रेट को इस बात की जांच करनी चाहिए कि धारा 41 के निर्देशों का पालन हो रहा है या नहीं।
झलकती है दुरुपयोग की तस्वीर
अनुच्छेद 498 A के तहत 2012 में करीब 2 लाख लोगों की गिरफ्तारी हुई जो कि 2011 के मुकाबले 9.4 फीसदी ज्यादा है। 2012 में जितनी गिरफ्तारी हुई उनमें से लगभग एक चौथाई महिलाएं थीं। चार्जशीट की दर 93.6 फीसदी है जबकि सजा की दर 15 फीसदी है जो काफी कम है। फिलहाल 3 लाख 72 हजार 706 केस की सुनवाई चल रही है, लगभग 3 लाख 17 हजार मुकदमों में आरोपियों की रिहाई की संभावना है।
दुर्दशा
उत्तर प्रदेश की महिला आबादी क़रीब नौ करोड़ 88 लाख है और बिहार में महिला आबादी चार करोड़ 85 लाख है। आँकड़ों के अनुसार, बिहार में दहेज हत्या की दर सबसे अधिक 2.43 है। अगर इन आंकड़ों पर जाएं तो यह फैसला सभी के लिए सहर्ष स्वीकार करना मुश्किल है।
यूपी में भी कहर कम नहीं
वर्ष 2013 में पूरे देश में जितने मामले दर्ज हुए उनमें 28.89 प्रतिशत अकेले उत्तर प्रदेश से थे। दहेज हत्या की दर के मामले में राष्ट्रीय औसत 1.36 है जबकि उत्तर प्रदेश में यह दर 2.36 है।