क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के सामने नई चुनौती

भाजपा ऐतहासिक रूप से अपने लिए सबसे बड़ा राजनीतिक ख़तरा दलितों, पिछड़ों के बीच राजनीतिक 'समझौते' को मानती रही है.

गोरखपुर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर लोकसभा सीट पर क़रारी हार से भाजपा ने इस ख़तरे को एक बार फिर महसूस किया है.

योगी आदित्यनाथ ने पत्रकारों से बातचीत में कहा है

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
नरेंद्र मोदी, आदित्यनाथ योगी, भाजपा, उत्तर प्रदेश चुनाव
Getty Images
नरेंद्र मोदी, आदित्यनाथ योगी, भाजपा, उत्तर प्रदेश चुनाव

भाजपा ऐतहासिक रूप से अपने लिए सबसे बड़ा राजनीतिक ख़तरा दलितों, पिछड़ों के बीच राजनीतिक 'समझौते' को मानती रही है.

गोरखपुर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर लोकसभा सीट पर क़रारी हार से भाजपा ने इस ख़तरे को एक बार फिर महसूस किया है.

योगी आदित्यनाथ ने पत्रकारों से बातचीत में कहा है कि वे इस गठबंधन के आलोक में 2019 में नई रणनीति बनाएंगे.

उत्तर प्रदेश के गोरखुपर और फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के उम्मीदवारों को हराने के लिए बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने जैसे ही सपा के उम्मीदवारों को अपना समर्थन देने का ऐलान किया, भाजपा को अपने राजनीतिक विस्तार के रास्ते की सबसे बड़ी चुनौती सामने खड़ी आने लगी.

भाजपा के नेताओं ने बसपा के सपा उम्मीदवार को समर्थन देने के ऐलान को रामचरित मानस के दो खलनायक पात्रों रावण और शूर्पणखा से उसकी तुलना करना शुरू कर दिया.

2019 में मोदी-शाह की हार की भविष्यवाणी जल्दबाज़ी है

योगी की हार पर क्या बोले गोरखपुर के लोग?

भाजपा ने पूर्वोत्तर में कई बेमेल गठबंधन किए
Getty Images
भाजपा ने पूर्वोत्तर में कई बेमेल गठबंधन किए

भाजपा के खुद कई बेमेल गठबंधन

भाजपा के किसी नेता ने उसे सांप छछूंदर की जोड़ी कहा तो किसी ने बेमेल गठबंधन कहा. किसी ने उसे अवसरवादी कहा तो किसी ने उसे जातिवादी क़रार दिया. जबकि भाजपा केन्द्र से लेकर पूर्वोत्तर समेत विभिन्न राज्यों में लगभग पचास तरह के राजनीतिक और सामाजिक आधार वाले संगठनों के साथ मिलकर सरकारें चला रही है.

भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक इतिहास में बहुजनों के बीच राजनीतिक समझौता सबसे बड़ी बाधा के रूप में खड़ा रहा है.

गुजरात में अमर सिंह चौधरी ने 'खाम' के सूत्र में पिछड़ों, दलितों के साथ मुसलमानों के बीच राजनीतिक समझौते की राह निकाली तो वहां भारतीय जनता पार्टी को सबसे पहले इसकी चुनौती मिली. इसी राजनीतिक समझौते की उपलब्धि के तौर पर अमर सिंह चौधरी गुजरात में 1985 से 1989 के बीच राज्य के आठवें मुख्यमंत्री बने थे.

भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात में अपने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का तब जो बखूबी इस्तेमाल किया था उसे ही उसने 1991 में पिछड़ों के लिए केन्द्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण देने के फैसले के बाद एक मुक्कमल शक्ल दी.

नज़रियाः विश्वसनीय गठजोड़ ही बनेगा मोदी की वापसी में रुकावट

मठ की राजनीति पर क्या असर डालेंगे चुनावी नतीजे

भारतीय जनता पार्टी
Getty Images
भारतीय जनता पार्टी

भाजपा ने क्या फॉर्मूला अपनाया?

गुजरात में सोशल इंजीनीयरिंग का फॉर्मूला यह था कि पिछड़े और दलितों की राजनीतिक एकता को साम्प्रदायिक भावना के आधार पर तोड़ा जा सकता है. इस फॉर्मूले को तीन स्तरों पर लागू किया गया.

एक तरफ तो राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के संगठनों ने संपूर्ण आरक्षण का विरोध करने के बजाय पिछड़ों को निशाने पर लिया और दलितों के बीच समरसता के लिए भोज भात खाने का अभियान चलाया.

इसके साथ ही दलितों के अंदर साम्प्रदायिक की भावना से सशक्तिकरण का मनोविज्ञान तैयार किया. उस दौरान अचानक छूरेबाजी की घटनाएं होने लगी. उस वक्त छूरेबाजी को एक ख़ास समुदाय के कारनामों के रूप में प्रस्तुत किया जाता था.

गुजरात के बाद 1991 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने केन्द्र सरकार की नौकरियों के लिए पिछड़े वर्गों को 27 फ़ीसदी आरक्षण देने का फ़ैसला किया तो उन पिछड़ों के साथ दलितों के बीच अभूतपूर्व एकता की राजनीतिक मिसाल सामने आई.

अपने इस राजनीतिक ख़तरे से निपटने के लिए तब भारतीय जनता पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग और साम्प्रदायिकता के रास्ते को और धारदार बनाया. भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के अभियान के साथ रथयात्रा लेकर निकले और देश भर में साम्प्रदायिक हमलों की अनेक घटनाएं सामने आई.

'दलित के घर खाने' की बीजेपी की राजनीति

'कैप मनुवादी है और पेन है बहुजन'

योगी आदित्यनाथ
Getty Images
योगी आदित्यनाथ

हर चुनौती के बाद एक नई राह

यह जातियों के भीतर सामाजिक न्याय की चेतना को जगाने की बजाय हिन्दुत्व की उग्र भावना को विकसित करने की कोशिश का हिस्सा था.

इस प्रयास को संसदीय चुनाव से जोड़ने के उद्देश्य से भाजपा में पहली बार पिछड़ी-दलित जातियों के समूह में कुछ जातियों के नेताओं को पार्टी के नेतृत्व की चौथी, पांचवीं कतार में खड़ा दिखाया गया ताकि उन जातियों में अपने राजनीतिक वर्चस्व की महत्वकांक्षा पैदा की जा सके.

भारतीय जनता पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग हर बार ऐसी चुनौती के बाद एक नई राह निकालती है. 1991 में सोशल इंजीनियरिंग और साम्प्रदायिकता की आक्रमक पैकेजिंग के बावजूद जब भारतीय जनता पार्टी 1993 में उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और मुलायम सिंह यादव के बीच के राजनीतिक समझौते को सत्ता में जाने से नहीं रोक सकी तब भारतीय जनता पार्टी ने इस गठबंधन को 'बेमल' और 'जातिवादी' साबित करने के लिए सोशल इंजीनियरिंग के अपने फॉर्मूले को और विस्तारित किया.

महागठबंधन बना तो होगा कितना दमदार

2019 तक कायम रहेगा नरेंद्र मोदी का करिश्मा?

भारतीय जनता पार्टी
Getty Images
भारतीय जनता पार्टी

पिछड़ी जाति के ख़िलाफ़ सामूहिकता की भावना

पिछड़े और दलित का मतलब जातियों का समूह होता है. इनके बीच पिछड़े और दलितों की सामूहिकता की भावना को जाति के रूप में ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ावा देना सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का अहम नारा बना.

इस नारे को इस रूप में तैयार किया गया कि पिछड़े वर्ग की जातियों में सबसे ताक़तवर जातियों के ख़िलाफ़ बाकी की जातियों में अपनी अपनी जातियों के लिए एक भावना तेज़ हो और वर्चस्व रखने वाली पिछड़ी जाति के ख़िलाफ़ सामूहिकता की भावना भी सक्रिय रहें.

पिछड़े, दलित के बजाय हिन्दूत्ववादी जाति के रूप में एक पहचान की भूख तेज़ हो. इसी फार्मूले के तहत 2014 में नरेन्द्र मोदी को पिछड़े वर्ग के पहले प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया. ताकि पिछड़े वर्गों और दलितों के बीच वर्चस्व रखने वाली जातियों के अलावा अन्य जातियों का समर्थन हासिल करना आसान हो सके.

लेकिन बिहार में एक बार नरेन्द्र मोदी के 2014 का जादू उस समय फेल हो गया, जब बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव ने अपने मतभेदों को दरकिनार कर भाजपा के ख़िलाफ़ सामाजिक न्याय की शक्तियों का एकीकरण कर संघ मुक्त भारत का चुनावी अभियान शुरू करने की घोषणा कर दी.

भाजपा ने फिर इस चुनौती के लिए सोशल इंजीनियरिंग में परिवर्तन किया और नीतीश कुमार को अपने साथ करने में कामयाब हो गई. लेकिन सामाजिक न्याय की शक्तियों के बीच राजनीतिक समझौते की प्रक्रिया थम नहीं रही है और भाजपा की यह परेशानी दूर नहीं हो रही है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी की मायावती ने 1995 के गेस्ट कांड की बार बार याद दिलाने के बावजूद गोरखपुर और फूलपुर में बिना अपनी एकजुट उपस्थिति के भी उपचुनाव में जीत हासिल कर ली.

यह फिर से भाजपा के लिए एक नई चुनौती पेश कर रही है. बिहार में नीतीश कुमार के साथ की गई सोशल इंजीनियरिंग की नाकामयाबी ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
New Challenge to BJPs Social Engineering
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X