Nepal political crisis:क्या नेपाल का चीन से हुआ मोहभंग, 'प्रचंड' को भी सताने लगी है भारत की याद
Nepal political crisis:कालापानी विवाद (Kalapani dispute)के मद्देनजर भारत ने इस वक्त खुद को नेपाल में आए सियासी संकट से पूरी तरह से अलग रखा है। जबकि, चीन (China) ने इसमें सीधे दखल देने की कोई भी कोशिश नहीं छोड़ी है। उसने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (Nepal Communist Party) को एकजुट रखने के लिए अपना एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी काठमांडू भेजा, लेकिन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) और पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' (Pushpa Kamal Dahal 'Prachanda') गुटों में समझौता करवाने में नाकाम रहा है। अभी तक 'प्रचंड' पूरी तरह से चीन की गोद में ही बैठे नजर आ रहे थे। लेकिन, अब उन्हें भी भारत की याद सताने लगी है। वह चाहते हैं कि भारत नेपाल के आंतरिक मामलों में दखल दे। दूसरी तरफ जो चीन ओली को हटाने की साजिशें रच रहा था, अब उन्हें सत्ता में बनाए रखने के लिए प्रचंड पर दबाव बना रहा है।
प्रचंड ने भारत से लगाई नेपाल को 'बचाने' की गुहार
नेपाल में अभी जिस तरह के राजनीतिक हालत (Nepal political crisis) हैं, उसमें पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' (Pushpa Kamal Dahal 'Prachanda')को भारत (India) की याद आई है। उन्होंने एक इंटरव्यू में भारत से वहां के आंतरिक मामले में दखल देने की अपील करते हुए उन्हें प्रधानमंत्री बनवाने की अपील की है। उन्होंने इंटरव्यू में कहा है, 'नेपाल में शांति प्रक्रिया, नेपाल में संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना में भारत का ठोस नैतिक समर्थन इतिहास में दर्ज है, लेकिन ऐसे समय में भारत की चुप्पी काफी अस्वाभाविक नजर आ रही है।' उनके मुताबिक नेपाल के राजनीतिक आंदोलनों में भारत का हमेशा साथ रहा है, लेकिन जिस तरह से नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli)ने संसद भंग किया है, उसपर भारत की मौन समझ से बाहर है।
नेपाल पर चीन की दखल बेअसर?
प्रचंड ने भारत के साथ-साथ दुनिया के दूसरे लोकतांत्रिक देशों की ओर भी इशारा किया,जिसमें अमेरिका और यूरोपीय देश भी शामिल हैं। उन्हें इन लोकतांत्रिक देशों की चुप्पी पर हैरानी हो रही है। उन्होंने भारत से गुजारिश की है कि वह तो लोकतंत्र का हिमायती है, ऐसे में उसे प्रधानमंत्री ओली के 'अलोकतांत्रिक' कदमों पर आपत्ति जतानी चाहिए। वैसे उन्होंने ये भी दावा किया है कि चीन भी उनको समर्थन देने के लिए राजी नहीं है। गौरतलब है कि चीन ने नेपाल में राजनीतिक संकट को सुलझाने के नाम पर गुओ येझोउ (Guo Yezhou) की अगुवाई वाला एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल काठमांडू (Kathmandu) भेजा है। ये लोग रविवार को नेपाली राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी और प्रधानमंत्री केपी ओली से मुलाकात कर चुके हैं। सोमवार को प्रचंड और माधव कुमार नेपाल से भी मिलकर उन्हें ओली के खिलाफ नहीं जाने के लिए समझाने की कोशिश की थी।
नेपाली संकट चीन की तिकड़मबाजी का नतीजा!
दरअसल, भारत चीन की तरह नेपाल की सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (nepal communist party) में एकता के पीछे नहीं पड़ा है। इस समय भारत की सोच ये रही है कि नेपाल संकट में किसी तरह से भी दखल देना ना तो वहां के सियासी दलों को पसंद आएगा और ना ही वहां की जनता को ही यह अच्छा लगेगा। चीन ने ओली और प्रचंड में सुलह की कोशिश की है तो उसपर नेपाल के आंतरिक मसले में दखल के आरोप लग रहे हैं। लेकिन, चीन तो इसी निहित स्वार्थ की वजह से उसमें घुसने की कोशिश कर ही रहा है और मौजूदा संकट के पीछे भी उसकी वर्षों की तिकड़मबाजी का ही नतीजा है।
अब भारत के साथ रिश्ते सुधारने में लगे हैं ओली
भारत अभी भी नेपाल के मामले से खुद को दूर किए हुए है, क्योंकि नेपाल सरकार ने कहा है कि वहां के मौजूदा संकट को भारत के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। भारत में नेपाल के राजदूत निलांबर आचार्या (Nilambar Acharya)ने टीओआई से कहा है कि उनका देश विदेश मंत्री स्तर के ज्वाइंट कमीशन की बैठक का इंतजार कर रहा है, जिसके लिए नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली (Nepal foreign minister Pradeep Gyawali )भारत आने वाले हैं। आचार्या ने कहा है कि 'सिर्फ संसद का निचला सदन भंग हुआ है और सरकार की दूसरी संस्थाएं तो अभी भी काम कर ही रही हैं।' उन्होंने कहा कि कालापानी विवाद (Kalapani dispute) के चलते पैदा हुए तनाव के बाद पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों के संबंधों में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं।
पिछले कुछ महीनों में सुधरे हैं ताल्लुकात
दरअसल, सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे (Manoj Mukund Naravane) और विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला (foreign secretary Harsh Shringla) की पिछले महीनों में हुई नेपाल यात्रा के बाद से दोनों देशों के ताल्लुकात फिर से पटरी पर लौटते दिखाई पड़ रहे हैं। इसके बाद कॉमर्स और ऊर्चा सचिवों की भी वर्चुअल मीटिंग भी हुई है। ऐसे में भारत इस वक्त वहां के घरेलू मामले में हस्तक्षेप करके संबंधों में फिर से कड़वाहट लाने से बच रहा है। जबकि, चीन ने ओली और प्रचंड को एकजुट रखने के लिए कोई कोशिश नहीं छोड़ी है और यह पिछले कई महीनों से कर रहा है और अभी भी जारी है। जबकि, भारत खुद को दूर रखकर नेपाल का सच्चा हिमायती बने रहना चाह रहा है तो पहले केपी शर्मा ओली के सुर नरम पड़ गए थे और अब 'प्रचंड' की वामपंथी 'प्रचंडता' की हेकड़ी भी ढीली पड़ गई है। (विरोध प्रदर्शन वाली छोड़कर सभी तस्वीरें-फाइल)