नेपाल ने फर्जी नक्शा बनाया, फिर भी भारत ने 96 करोड़ देकर ये वादा निभाया
नई दिल्ली- नेपाल की केपी शर्मा ओली सरकार ने फर्जी नक्शा बनाकर भारत के कुछ इलाकों पर दावा जताया है। पिछले कुछ महीनों से लगातार वहां की नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार चीन के दबाव में भारत के लिए नई-नई चुनौतियां खड़ी करने की कोशिशों में जुटी रही है। लेकिन, बावजूद इसके भारत अपने उस वादे से कभी नहीं मुकरा है, जो उसने 2015 में वहां आए भीषण भूकंप के दौरान किया था। भारत ने एक बार फिर भूकंप के बाद की सहायता की एवज में उसे 96 करोड़ रुपये की मदद राशि जारी किए हैं। नेपाली करेंसी में यह राशि 154 करोड़ रुपये की होती है।
भारत ने नेपाल को घरों और स्कूलों के लिए 96 करोड़ दिए
भारत ने नेपाल में घरों और स्कूलों के निर्माण के लिए 96 करोड़ रुपये की सहायता राशि जारी की है। भारत सरकार ने ऐसा करके भूकंप के बाद निर्माण कार्यों के लिए भी मदद देने का अपना पुराना वादा निभाया है। काठमांडू स्थित भारतीय दूतावास की ओर से गुरुवार को जारी बयान में कहा गया है कि भारतीय दूतावास के डिप्टी चीफ नामग्या खाम्पा ने 154 करोड़ रुपये (नेपाली) का चेक बुधवार को नेपाल के वित्त मंत्रालय के सचिव शिशिर कुमार धुंगाना को सौंपा है। बयान के मुताबिक, 'इस हैंडओवर के साथ भारत ने नेपाल सरकार को हाउसिंग सेक्टर के पुनर्निमाण के लिए 7.2 करोड़ डॉलर का अनुदान पूरा कर दिया है। गोरखा और नुवाकोट जिलों में भारत सरकार ने जो 50,000 घर बनाने का वादा किया था, उनमें 92 प्रतिशत घर बन चुके हैं। '
'नेपाल के लोगों को मदद के लिए प्रतिबद्ध'
इसी तरह भारत ने नेपाल में 70 स्कूलों और एक लाइब्रेरी के पुनर्निमान के लिए 5 करोड़ डॉलर की सहायता देने का भी वादा किया है। इनमें से स्कूलों पर 4.2 करोड़ डॉलर का पहला अंश नेपाल सरकार को पूरा किया जा चुका है। भारत सरकार ने नेपाल को हाउसिंग प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए 15 करोड़ डॉलर का अनुदान और कर्ज देने का वादा किया हुआ है। भारतीय दूतावास की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 'भारत सरकार नेपाल के लोगों और सरकार को भूकंप के बाद के हालातों से उबरने के लिए सहायता देने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रही है। '
नेपाल में अप्रैल, 2015 में आया था भीषण भूकंप
नेपाल में अप्रैल, 2015 को रिक्टर स्केल पर 7.8 तीव्रता वाले भूकंप में भारी तबाही मची थी। इस प्राकृतिक हादसे में करीब 9,000 लोगों की जान चली गई थी और 20,000 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे। भारत ने पहले दिन से ही नेपाल में राहत और बचाव के कार्य के लिए पूरी ताकत झोंक दी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल को हर संभव मदद पहुंचाए जाने पर निगरानी रखी। भारत की ओर से उसके बाद यह सहायता राहत और पुनर्वास के कार्यक्रमों में शुरू हुआ जो हादसे के 5 साल से भी ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी लगातार जारी है।
चीन के हाथों में खेल रहे हैं ओली?
इस बीच मीडिया रिपोर्ट से जानकारी है कि अपने राजनीतिक नक्शे में भारत के उत्तराखंड के पिथौड़ागढ़ जिले में लिपुलेख,लिंपियाधुरा और कालापानी को मिलाने के बाद नेपाल की मौजूदा ओली सरकार वहां पर जनगणना करवाने के फिराक में है। नेपाल भी हर 10 साल पर जनगणना करवाता है और अगले साल मई में यह शुरू होने वाला है। जबकि, नेपाल को यह पता है कि भारतीय इलाके पर जनगणना करवाने का उसका मंसूबा कभी पूरा नहीं हो सकता। बावजूद इसके नेपाल की मौजूदा सरकार चीन के इशारे पर बार-बार भारत को उकसाने की कार्रवाइयों में जुटी हुई है।