Maharashtra Election 2019: महाराष्ट्र में शरद पवार के पावर को क्या लग जाएगा ब्रेक!
बेंगलुरु। महाराष्ट्र चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी की तरफ से विपक्ष से कोई टक्कर नहीं मिलने का दावा किया जा रहा हैं। गृहमंत्री अमित शाह हो या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हो चुनावी प्रचार में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) पर निशाना साध उसकी मिट्टीपलीद कर रहे हैं। वहीं एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार बीजेपी के हर वार पर पलटवार करते हुए राज्य को नंबर वन बनाने का सारा क्रेडिट स्वयं की पार्टी को दे रहे हैं। अब सवाल ये उठता हैं कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फडणवीस जो दावा कर रहे हैं कि शरद पवार की पार्टी अब अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं। क्या वास्तव में पांच दशक से राजनीति कर रहे शरद पवार का पॉवर इतना कम हो चुका हैं कि महाराष्ट्र में जो उनका लंबे अर्से तक सूरज चमकता रहा हैं वह विधानसभा चुनाव 2019 के चुनाव में अस्त हो जाएगा?
बता दें एनसीपी प्रमुख शरद पवार पिछले पांच दशक से राजनीति में हैं। उनकी पांच दशक की राजनीति में बीस साल एनसीपी के खाते में दर्ज है। लेकिन वर्तमान में शरद पवार की पार्टी की ऐसी हालत हैं कि महाराष्ट्र चुनाव की महाभारत में वह विपक्ष के रुप में भी नहीं खड़ी हो पायी हैं। बता दें मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यहां तक कि कह डाला कि भाजपा के पहलनावों के सामने वह किसी विपक्षी को नहीं देख रहे हैं। खास बात ये है कि के प्रति ऐसी भावना रखने वाले देवेंद्र फडणवीस अकेले नेता नहीं हैं। कहने को तो महाराष्ट्र के सिलसिले में देवेंद्र फडणवीस जैसी टिप्पणी कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर भी कर चुके हैं। शरद पवार और उनकी पार्टी एनसीपी को लेकर कांग्रेस नेतृत्व की भी सोच तकरीबन देवेंद्र फणडवीस जैसी ही है। हालात तो ऐसे लगने लगे हैं जैसे वास्तव में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद एनसीपी का नामोनिशान मिट जाएगा!
बीजेपी भी महाराष्ट्र से इस विरोधी पार्टी का सफाया करने पर आमदा हैं। महाराष्ट्र चुनाव में प्रधानमंत्री की 9 रैलियां, गृहमंत्री शाह की 20 रैलियां और सीएम फउनवीस की 50 रैलियां प्रस्तावित हैं।जिसे लेकर शरद पवार ने कटाक्ष भी किया कि जब उन्हें लगता है कि कोई टक्कर में ही नहीं है तो उनकी नींद उड़ी हुई है क्योंकि युवा उन्हें हरा देंगे। इसलिए वो महाराष्ट्र में घूम रहे हैं। गौर करने वाली बात ये हैं कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तो एनसीपी को पूरा खाली करा दिया हैं। जो नेता बीजेपी में आने को राजी नहीं हुए वो शिवसेना में सेट करवा दिए गए। भारतीय जनता पार्टी का मकसद तो एक ही महाराष्ट्र से पवार पावर को खत्म कर अपना सिक्का चलवाना हैं!
बीजेपी के मराठा आरक्षण के फैसले ने किया कमाल
मराठा आरक्षण का फडणवीस सरकार का फैसला इतना फायदेमंद साबित हुआ कि कांग्रेस और एनसीपी का साथ देने वाले मराठा समाज का बड़ा तबका बीजेपी के साथ आ गया। मराठा नेताओं के कांग्रेस और एनसीपी छोड़ कर बीजेपी और शिवसेना का दामन थामने की मची होड़ की भी यही वजह रही। एक धारणा ये भी रही है कि मराठा नेताओं ने कभी ब्राह्मणों को उभरने का मौका ही नहीं दिया। देवेंद्र फडणवीस से पहले सिर्फ मनोहर जोशी ही शिवसेना के प्रभाव के चलते महाराष्ट्र के सीएम की कुर्सी पर बैठ पाये।
देवेंद्र फणडवीस के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी माना जाता रहा कि वो ज्यादा दिन तो टिकने से रहे। लेकिन फडणवीस के राजनीतिक कौशल देखिये कि वो पूरे पांच साल तक तो कुर्सी पर जमे ही रहे, दूसरी पारी भी तकरीबन तय मानी जा रही है। देवेंद्र फणडवीस ऐसा करने वाले महाराष्ट्र के 17 मुख्यमंत्रियों में वसंतराव नाईक के बाद दूसरे नेता हैं। हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना के साथ साथ बीजेपी को रामदास आठवले के चलते दलितों का भी समर्थन मिल गया। नतीजा ये होता है कि प्रकाश अंबेडकर जैसे नेता की पार्टी के सामने में चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है। देवेंद्र फडणवीस के शासन में महाराष्ट्र का विकास कितना हुआ ये अलग विषय है, लेकिन एनसीपी, कांग्रेस और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का तो पूरा विनाश हो गया है। यही वजह है कि पवार पावर भी बस सांसें ही गिन रहा है।
एनसीपी को हजम कर जाना चाहती हैं कांग्रेस
कांग्रेस चाहती है कि शरद पवार अपनी पार्टी के साथ कांग्रेस में शामिल हो जायें। कांग्रेस को फायदा ये होगा कि शरद पवार जैसा कद्दावर नेता मिल जाएगा। देखा जाये तो कांग्रेस और एनसीपी दोनों ही फेमिली पॉलिटिक्स करती रही हैं, लेकिन शरद पवार की पार्टी में सिर्फ परिवार है और बाहर से कुछ भी नहीं। परिवार से भी भतीजे अजीत पवार बागी बन चुके हैं । और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। कांग्रेस का इरादा देख कर तो यही लगता है कि वो खुद ही एनसीपी को हजम कर जाना चाहती है ताकि उसकी अपनी उम्र थोड़ी लंबी हो सके। शरद पवार अभी ऐसा कोई संकेत नहीं दिये हैं कि वो एनसीपी के कांग्रेस में विलय के लिए तैयार हैं। हो सकता है कांग्रेस अपना भविष्य सुधारने के लिए एससीपी का विलय चाह रही हो, लेकिन शरद पवार को भी तो लगता होगा कि जब कांग्रेस का वर्तमान ही नहीं किसी रूप में नजर आ रहा है तो भविष्य को लेकर कौन रिस्क ले।
गौरतलब हैं कि महाराष्ट्र में शरद पवार और सोनिया गांधी मिलकर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। कांग्रेस की कौन कहे, मशहूर 'पवार पावर' क्या इतना दमखम बचा है कि वो चैलेंज कर पायेगे। खबरों के अनुसार महाराष्ट्र चुनाव में शरद पवार और सोनिया गांधी की संयुक्त रैली की भी योजना बन रही है। 2017 में यूपी विधानसभा चुनावों से पहले बनारस में रोड शो के दौरान तबीयत खराब होने के बाद से सोनिया गांधी चुनाव कैंपेन से दूर ही रही हैं। 2019 के आम चुनाव में भी सोनिया ने अपने चुनाव क्षेत्र रायबरेली से बाहर सिर्फ एक ही रैली की थी। लेकिन अब वो विधानसभा चुनाव में फिर से उतरने जा रही हैं। हालांकि, हर चुनाव में चुनाव आयोग को स्टार कैंपेनर के तौर पर सोनिया गांधी का नाम दर्ज कराया जाता रहा है। शरद पवार के साथ सोनिया गांधी की रैली का मकसद मिल कर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को चुनौती देना है। मगर, लगता है कांग्रेस को महाराष्ट्र में एनसीपी की ज्यादा जरूरत महसूस हो रही है। कांग्रेस, दरअसल, अपनी जमीन बचाये रखने के लिए शरद पवार का साथ चाहती है। देखा जाये तो शरद पवार को भी कांग्रेस के साथ की भी जरूरत है।
बूढ़े शेर का साथ दे रहे छोटे नेता
विपक्षी नेताओं के लिए मुसीबत का पहाड़ बना प्रवर्तन निदेशालय कुछ देर के लिए ही सही महाराष्ट्र में तो बौना ही नजर आया। शरद पवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बावजूद ईडी के अधिकारियों के हाथ पांव फूल गये जब वो पेशी के लिए दफ्तर पहुंचने का ऐलान कर दिये। फिर जैसे तैसे अफसरों ने मेल भेज कर कहा कि अभी पूछताछ का कोई इरादा नहीं है। मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने शरद पवार से पेशी का कार्यक्रम रद्द करने की अपील की तब जाकर कार्यक्रम रद्द हुआ और मामला शांत हुआ। जो भी हुआ जैसे भी हुआ मैसेज तो यही गया कि महाराष्ट्र में बूढ़े शेर के बड़े साथी भले छोड़ कर चले गये हों लेकर छोटे कार्यकर्ताओं और लोगों में प्रभाव खत्म नहीं हुआ है।
शरद पवार ने भी प्रेस कांफ्रेंस में इस कुछ ऐसे अंदाज में पेश किया कि उनके खिलाफ अब तक एक्शन न होने से वो खुद भी हैरान थे। शरद पवार के मुताबिक, महाराष्ट्र में जहां कहीं भी वो जा रहे है, लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। जमीनी हकीकत बिलकुल ऐसी ही नहीं है। हो सकता है शरद पवार को सुनने या उनसे मिलने आने वालों की तादाद अच्छी हो, लेकिन बड़े नेताओं के चले जाने और परिवार में झगड़े के कारण एनसीपी की हालत नाम बड़े और दर्शन छोटे जैसा हो गया हैं। हालत ये हो गया है कि पांच साल पहले नौसीखिये की तरह हल्के में लिये जाने वाले देवेंद्र फडणवीस ने अपनी सरकार में वैसे काम कर दिखाये हैं जो अब तक बड़े से बड़े मराठा नेता नहीं कर पाये।