महाराष्ट्र में एक भतीजे ने ही बिगाड़ा दूसरे भतीजे का बना बनाया खेल
नई दिल्ली- पिछले चार दिनों से महाराष्ट्र की राजनीति दो भतीजों की वजह से खूब गरम रही और आखिरकार उन्हीं दोनों भतीजों के चलते भाजपा की सरकार बनकर भी बने रहने से मात खा गई। इसमें से एक तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार हैं, जबकि दूसरे पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता रहे गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे हैं। कहा जा रहा है कि अजित पवार को देवेंद्र फडणवीस के करीब लाने से लेकर उनके पक्ष में पार्टी विधायकों को जुटाने का जिम्मा भी उन्होंने ही निभाया था। लेकिन, जब माहौल बदलना शुरू हुआ तो अजित पवार का साथ छोड़कर भागने वालों में भी वही शामिल हो गए और इसी के चलते आखिरकार वह नौबत आ गई कि अजित पवार को निजी कारणों का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री फडणवीस को अपना इस्तीफा सौंप देना पड़ा।
मुंडे ने अजित पवार के पक्ष में विधायकों को जुटाया था
23 नवंबर को महाराष्ट्र के राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार को जो शपथ दिलाई थी, उसमें एनसीपी के विधायक धनंजय मुंडे का बहुत बड़ा रोल था। जानकारी के मुताबिक देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात के बाद उन्होंने ही सरकार बनाने का मास्टरप्लान तैयार किया और अजित पवार के मंसूबे को अंजाम देने के लिए खुलकर उनका साथ दिया। यहां तक बताया जाता है कि धनंजय मुंडे ने ही अजित पवार के पक्ष में एनसीपी विधायकों को उस रात (22 नवंबर को) पहले अपने घर पर गोलबंद किया था और फिर सुबह-सुबह उन सबको लेकर राजभवन में शपथग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए पहुंच गए थे। शपथग्रहण कार्यक्रम में वहां मौजूद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायकों की संख्या करीब 12 बताई गई थी।
पवार खेमे में लौटकर मुंडे ने पलट दी जीती हुई बाजी
शनिवार को जब भतीजे अजित की बगावत के चलते चाचा शरद पवार संदेह के घेरे में आ गए तो उन्होंने एनसीपी विधायकों को एकजुट करना अपनी सियासी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया। शरद पवार के तेवर देखकर अजित के खेमे में गए विधायकों ने धीरे-धीरे पार्टी प्रमुख के पास वापसी करने में ही भलाई समझी। शनिवार को मुंबई के यशवंत राव चव्हाण सेंटर पर चल रही एनसीपी विधायक दल की बैठक में अजित पवार के शपथग्रहण में गए काफी विधायक लौट आए थे। तब बदले हुए माहौल को भांपकर धनंजय मुंडे ने भी देर नहीं की और अजित पवार को उनके हाल पर छोड़कर बड़े पवार के पास लौटना ही मुनासिब समझा। समझ लीजिए, यहीं से फडणवीस-अजित पवार सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई। जब दिल्ली गए एनसीपी विधायकों को धनंजय के ऐक्शन का पता चला तो उन्होंने अजित पवार का साथ छोड़ना ही उचित समझा।
दोनों भतीजों का सियासी दर्द लगभग एक जैसा
दरअसल, जिस तरह से एनसीपी में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के बढ़ते कद ने अजित पवार को परेशान कर दिया है, उसी तरह की परिस्थितियों की मार झेलकर धनंजय मुंडे भी अपनी सियासत करते हुए आगे बढ़े हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद उनकी सियासी विरासत उनकी बेटी और धनंजय की चचेरी बहन पंकजा मुंडे ने संभाल ली। बीजेपी सरकार में हालात ऐसे बने कि पूर्व नेता के नाम पर पंकजा को कैबिनेट मंत्री का पद भी मिल गया। यानि, दोनों भतीजों को सियासत में अपनी चचेरी बहनों की वजह से ही इधर-उधर का रास्ता चुनना पड़ा है। इसी के चलते धनंजय ने एनसीपी का दामन थाम लिया था और इस बार के चुनाव में अजित पवार की मदद से वे अपनी बहन को चुनाव हराने में भी कामयाब हो गए। जबकि, अजित ने चाचा को चक्कर देकर बीजेपी की ओर रुख कर लिया था।
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