नज़रियाः राम मंदिर के नाम पर 'अयोध्या कांड' के लिए क्या फिर तैयार है संघ
दरअसल, आरएसएस और भाजपा उत्तर भारतीयों के सबसे प्रिय देवता राम से राजनीतिक मुनाफ़ा अर्जित करना चाहती है. यही उसका मक़सद है.
आरएसएस ख़ुद को राम का सबसे बड़ा भक्त संगठन बताता है और अपने स्वयंसेवकों को सच्चा देशभक्त, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने देश की आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था.
लेकिन धार्मिक भावनाओं का फ़ायदा उठाने वाले राजनीतिक दल आसानी से 'राम' को एक मुद्दा बना सकते हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ी ही चालाकी से राम मंदिर के विवादास्पद मुद्दे को चुनाव मैदान में उछाल दिया है.
उन्होंने साफ़ लफ्ज़ों में हिंदू संत समाज से इस मुद्दे को उठाने की अपील की है, भले ही इससे सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश या संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन होता हो.
ये घटनाक्रम अब ज़रा भी हैरान नहीं करता.
भारतीय जनता पार्टी के लिए राजनीतिक फ़िज़ा जिस तरह से ख़राब हो रही है, इस बात को ध्यान में रखते हुए सत्ता में वापसी के लिए भाजपा को हर दांव चलने की ज़रूरत है.
साल 2014 में मिली क़ामयाबी को फिर से दोहरा पाने के आसार कम ही दिखाई देते हैं.
मोहन भागवत सोमवार को हरिद्वार में बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ में बोल रहे थे.
बाबा रामदेव अब एक कामयाब कारोबारी हैं. कारोबारी दुनिया की ख़बरें देने वाले अख़बारों के मुताबिक़ पतंजलि के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण ने ये दावा किया है कि उनकी कंपनी ने 2016-17 के वित्तीय वर्ष में 10,561 करोड़ रुपये का राजस्व कमाया.
फ़ैसले का इंतज़ार नहीं
लेकिन जहाँ एक तरफ़ मोहन भागवत ये कहते हैं कि साधुओं को अगुवाई करनी चाहिए, वहीं हज़ारों किसान खेती-किसानी के मुद्दे पर सरकार की उदासीनता के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली की तरफ़ कूच कर रहे थे.
वे राजधानी में दाख़िल न हो सकें, इसलिए पुलिस ने पानी की बौछारों और आँसू गैस के गोलों से उन्हें रोकने की कोशिश की.
वहीं महाराष्ट्र में किसानों ने टमाटर की फसल खेत में ही छोड़ दी क्योंकि इसकी कीमतें उनकी लागत से भी काफ़ी कम हो गई थीं.
बाक़ी देश में ख़ूनी भीड़ की दरिंदगी और वर्दी पहने पुलिसवालों के हाथों हत्याओं का सिलसिला बेरोकटोक जारी है.
सुप्रीम कोर्ट ने ये संकेत दिया है कि राम मंदिर विवाद पर एक फ़ैसला आने वाले वक्त में कभी भी आ सकता है.
लेकिन ये दिखाई देता है कि मोहन भागवत इस फ़ैसले का इंतज़ार नहीं करना चाहते.
वे कहते हैं कि हिंदू संत समाज पर सरकार की तरह कोई बंदिश नहीं है और उन्हें राम मंदिर के मुद्दे को आगे बढ़ाना चाहिए.
संत समाज को निमंत्रण
मोहन भागवत का ये बयान एक खुला निमंत्रण है कि भगवा पहने हिंदू संत समाज आगे आकर नेतृत्व करे.
एक ऐसे वक़्त में जब इसी संत समाज के दो प्रमुख लोग आसाराम और दाती महाराज पर अपनी महिला भक्तों के बलात्कार का सामना कर रहे हैं.
ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि पाँच अक्तूबर को दिल्ली में राम मंदिर के मुद्दे पर संतों-धर्माचायों की उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक होने जा रही है.
ये संकेत मिल रहे हैं कि अलग-अलग मठों और पंथों के धर्म गुरुओं को इस मुहिम की अगुवाई दी जा सकती है.
मोहन भागवत ने ये भी कहा है कि विपक्ष में किसी के पास इतना माद्दा नहीं होगा कि कोई राम मंदिर का निर्माण रोक सके.
वे न केवल बड़ी चालाकी से इस तथ्य को उलझा रहे थे कि विवाद राम मंदिर के निर्माण को लेकर नहीं है बल्कि उस जगह पर इसके निर्माण को लेकर है जहाँ साल 1992 में उनके समर्थकों और अनुयायियों ने बाबरी मस्जिद को जमींदोज़ कर दिया था.
उन्हें इस बात का भी आसरा है कि कांग्रेस पार्टी इन दिनों 'नरम हिंदुत्व' की अपनी राजनीति को चमकाने में मसरूफ़ है.
कांग्रेस के बारे में कहासुनी
हाल ही में हिमालय की मानसरोवर झील की तीर्थ यात्रा से लौटे शिव भक्त राहुल गांधी को लेकर काफ़ी कुछ कहासुना जा चुका है.
ये साल 1989 की बात है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा भाजपा ने पालमपुर में बाबरी मस्जिद वाली जगह पर विशाल राम मंदिर के निर्माण का प्रस्ताव अपने मुख्य एजेंडे के तौर पर पारित किया था.
साल 1989 से 1992 के दरमियाँ जब ये मस्जिद ढहा दी गई तो पार्टी ने अपने इसी मुख्य एजेंडे के साथ अभियान चलाने का फ़ैसला किया था.
लेकिन उस वक़्त भी भले ही भाजपा को इसका चुनावी फ़ायदा मिला था लेकिन पार्टी उत्तर प्रदेश में बहुमत हासिल करने से चूक गई.
हालांकि भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी और उसने कांग्रेस को चुनौती दी. साल 1996 के चुनाव में वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
भारत में रामायण शायद सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला महाकाव्य है. भारत में 'रामलीला' हर साल एक बड़े पर्व के तौर पर आयोजित की जाती है.
हज़ारों की भीड़ इसे देखने के लिए मैदानों में इक्ट्ठा होती है. रामलीला भारत के लोक थियेटर और रंगमंच का भी हिस्सा है.
इसलिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को कोई ये बताये कि उनके संस्थान की स्थापना 1925 में हुई थी, लेकिन भारतीय लोग सदियों से रामलीला आयोजित करते रहे हैं.
और मुद्दा तैयार...
दरअसल, आरएसएस और भाजपा उत्तर भारतीयों के सबसे प्रिय देवता राम से राजनीतिक मुनाफ़ा अर्जित करना चाहती है. यही उसका मक़सद है.
आरएसएस ख़ुद को राम का सबसे बड़ा भक्त संगठन बताता है और अपने स्वयंसेवकों को सच्चा देशभक्त, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने देश की आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था.
लेकिन धार्मिक भावनाओं का फ़ायदा उठाने वाले राजनीतिक दल आसानी से 'राम' को एक मुद्दा बना सकते हैं.
मोहन भागवत के बयान के तुरंत बाद सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने फ़ुर्ती दिखाई और अपने बयान जारी किये.
भाजपा सांसद साक्षी महाजन ने कहा कि राम मंदिर का निर्माण कार्य निश्चित रूप से साल 2019 के आम चुनाव से पहले ही शुरू होगा.
और जब देश में चुनाव है तो नेताओं को मुद्दे तैयार करने में देरी करनी भी क्यों चाहिए.