ऐसे ही फ़्रंट पर नहीं खेल रहे नवजोत सिद्धूः नज़रिया
राजीव गांधी को महासचिव बनाते ही यूथ कांग्रेस के प्रभावशाली नेता रहे रामचंद्र रथ को किनारा कर दिया गया था.
राजीव गांधी की हत्या के बाद उनके कई सहयोगियों को भी नेतृत्व से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था.
करतारपुर साहिब गलियारा के हीरो बने नवजोत सिंह सिद्धू का पार्टी में कद कमोबेश 11 दिसंबर के परिणाम तय करेंगे.
नवजोत सिंह सिद्धू जिस तरह से फ्रंट पर आ कर खेल रहे हैं, उसे कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके वफ़ादारों को बदलाव के स्पष्ट संकेत के रूप में लेना चाहिए.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सिद्धू पर विश्वास है और यही कारण है कि राहुल गांधी के बाद वो स्टार कैंपेनर की सूची में दूसरे नंबर पर हैं.
वो उन सभी कांग्रेस वर्किंग कमिटी, महासचिव और अमरिंदर सिंह जैसे मुख्यमंत्रियों से आगे हैं, जिनकी पकड़ पंजाब के बाहर ढीली है.
दूसरे शब्दों में कहें तो क्रिकेट के दिनों में लोगों का दिल जीतने वाले सिद्धू अगले विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी पिच पर बतौर ओपनर उतरने की तैयारी कर रहे हैं.
पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव होंगे.
सिद्धू वाक्-कला के धनी हैं और वो जानते हैं कि पार्टी लाइन से हटकर और मर्यादित भाषा में जवाब किस तरह दिया जाता है.
इसलिए जब उन्होंने अमरिंदर सिंह को अभिभावक, मार्गदर्शक और एक नेता बताया तो यह उनके अपने शब्द वापस लेने या माफ़ी मांगने से कहीं ज्यादा मैत्रीपूर्ण लगा.
करतारपुर के हीरो साबित हुए सिद्धू
पाकिस्तान में करतारपुर साहिब गलियारा की नींव रखने के कार्यक्रम में भारत की ओर से पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू भी शामिल हुए.
गलियारा के शिलान्यास के दौरान सिद्धू बोले कि हिंदुस्तान जीवे, पाकिस्तान जीवे. उन्होंने कहा कि मुझे कोई डर नहीं, मेरा यार इमरान जीवे.
यहां वो एक अलग और सक्रिय भूमिका में दिखे.
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सिद्धू में राहुल गांधी के कांग्रेस को एक नेता नज़र आता है, जो दूसरे अकालियों और अमरिंदर सिंह, दोनों से ऊपर साबित हो सकता है.
सिखों में सिद्धू करतारपुर के हीरो साबित हुए हैं. पांच राज्यों में हो रहे चुनावों के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने अंदाज़ में घेरा.
11 दिसंबर तय करेगा सिद्धू का भविष्य
सिद्धू को सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की मर्जी के ख़िलाफ़ पार्टी में जगह दी थी, यह जानते हुए कि वो बीजेपी से जुड़े रहे थे और आम आदमी पार्टी के साथ मोलभाव में थे.
अगर आगामी 11 दिसंबर को पार्टी राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में बेहतर प्रदर्शन करती है तो पंजाब की राजनीति को शायद झटका लगेगा.
जब भी किसी कांग्रेस नेता की छवि बड़ी होने लगती है, पार्टी हाईकमान नेतृत्व की दूसरी पंक्ति तैयार करने लगता है और यह जगज़ाहिर है.
अगर 11 दिसंबर को कांग्रेस मज़बूत स्थिति में उभरती है तो जाहिर है राहुल गांधी का क़द और उनका प्रभाव बढ़ेगा. इससे उनके विश्वस्त लोगों को भी प्रोत्साहन मिलेगा, जिसके बाद चंडीगढ़ में एक नए नेतृत्व का उदय भी हो सकता है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह की छवि एक 'जी हुज़ूर' मुख्यमंत्री की नहीं रही है. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस एक बदलाव के दौर से गुज़री है.
राहुल गांधी राज्यों में युवा नेतृत्व चाहते हैं. राजस्थान में सचिन पायलट, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया, तेलंगाना में मोहम्मद अज़हरुद्दीन इसके उदाहरण हैं.
कमलनाथ, अशोक गहलोत, अहमद पटेल, अमरिंदर सिंह जैसे पार्टी के दिग्गज अब मज़बूत इतिहास की तरह दिख रहे हैं. पार्टी का वर्तमान और भविष्य अब नए चेहरों में खोजा जा रहा है.
अगर प्रदर्शन ठीक नहीं रहा तो...
लेकिन अगर 11 तारीख को प्रदर्शन ठीक नहीं रहा तो अमरिंदर सिंह अपनी जगह सिद्धू को उतार सकते हैं.
2019 और उसके बाद के लिए राहुल गांधी को कहीं न कहीं पार्टी के इन्हीं दिग्गजों के सलाह और मार्गदर्शन की ज़रूरत होगी.
पहले भी कांग्रेस में दिग्गज किनारे किए जाते रहे हैं. इंदिरा गांधी ने उन सब को किनारा कर दिया था जो कभी नेहरू के आंख और कान माने जाते थे.
जब 1981-82 में संजय गांधी की जगह राजीव गांधी को लाया गया था, तब संजय के नज़दीकी यह मानते थे कि राजीव अपने बड़े भाई की टीम में जगह नहीं ले पाएंगे.
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राजीव गांधी को महासचिव बनाते ही यूथ कांग्रेस के प्रभावशाली नेता रहे रामचंद्र रथ को किनारा कर दिया गया था.
राजीव गांधी की हत्या के बाद उनके कई सहयोगियों को भी नेतृत्व से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था.
करतारपुर साहिब गलियारा के हीरो बने नवजोत सिंह सिद्धू का पार्टी में कद कमोबेश 11 दिसंबर के परिणाम तय करेंगे.