2022 से टाली जा सकेगी उत्तराखंड जैसी त्रासदी, इतने घंटे पहले मिलेगा अलर्ट
नई दिल्ली- जून, 2013 में उत्तरखंड में जो प्राकृतिक आपदा आई थी,उसके बारे में अभी भी सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन, दो साल बाद ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए 48 घंटे पहले ही अलर्ट मिल जाएगा। दरअसल, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के हवाले से संसदीय समिति ने जो रिपोर्ट राज्यसभा को सौंपी है, उसमें बादल फटने जैसे मौसमी विपत्तियों की सूचना दो दिन पहले ही मिल जाने की उम्मीद जताई गई है। वैज्ञानिक नई और उन्नत तकीनक पर काम कर रहे हैं और माना जा रहा है कि 2022 तक हमें काफी पहले इस तरह की त्रासदियों की जानकारी मिल जाएगी, जिससे जानमाल के नुकसान को टाला जा सकेगा।
48 घंटे पहले लग सकेगा बादल फटने का अनुमान
2022 से भारत खराब मौसम की घटनाओं जैसे 'बादल फटने' की आशंका का पता कम से कम 48 घंटे पहले ही लगा सकेगा। ये जानकारी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने संसदीय समिति को दी है। इसी महीने में संसदीय समिति ने राज्यसभा को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 'मंत्रालय ने बताया है (पृथ्वी विज्ञान) कि चक्रवात की तरह एक छोटे से इलाके में बादलों की गतिशीलता के चलते बादल फटने का पूर्वानुमान बहुत ही मुश्किल होता है। हालांकि, वो एक खास कंप्यूटिंग सुविधा के इस्तेमाल से 48 घंटे पहले एक विशिष्ट क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं की आशंका पर एक संभावित पूर्वानुमान लगा सकते हैं।'
सटीक क्षेत्र का भी पूर्वानुमान भी होगा मुमकिन
मौजूदा समय में भारत में मौसम का पूर्वानुमान हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (HPC) पर निर्भर है, जिसकी क्षमता 10 पेटाफ्लॉप्स (PetaFlops)है। लेकिन, 2022 तक इसे 40 और 2024 तक 100 पेटाफ्लॉप्स करने की है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव माधवन नायर राजीवन के मुताबिक, 'सुविधाएं बेहतर होने के साथ हम 2022 तक खराब मौसम जैसे कि बादल फटने का पूर्वानुमान कम से कम दो दिन पहले ही लगा पाने में सक्षम होंगे। और मौजूदा समय में हम 12 किलोमीटर के दायरे में सटीकता से पूर्वानुमान लगा सकते हैं। लेकिन, इतने एडवांस कंप्यूटिंग सिस्टम से हम 5 किलोमीटर के दायरे में या 3 किलोमीटर तक भी और ज्यादा विस्तृत पूर्वानुमान लगा पाने में सक्षम हो जाएंगे। '
जून, 2013 में आई थी उत्तराखंड में आपदा
जानकारों की राय में अगर दो दिन पहले ही मौसम का पूर्वानुमान मिल जाएगा तो जान-माल की हिफाजत करने में ज्यादा आसानी रहेगी और एहतियाती कदम उठाने के लिए पर्याप्त समय समय मिल सकेगा। मौजूदा समय में डॉप्लर वेदर रडारों और सैटेलाइट डाटा से मुश्किल से दो या तीन घंटे पहले बादल फटने की आशंका की जानकारी भारी से बहुत भारी बारिश होने की आशंका के रूप में मिल पाती है। बता दें कि बादल फटने की घटना उस मौसमी स्थिति को कहते हैं, जब महज घंटे भर में एक स्थान पर 100 मिलीमीटर से भी ज्यादा बारिश हो जाती है। गौरतलब है कि जून, 2013 में उत्तराखंड में बादल फटने की घटना में कई हजार लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग लापता हो गए थे। जबकि संपत्ति का जो नुकसान हुआ, उसे अभी तक संवारने की कोशिश ही चल रही है।
मौसम में हो रहे बदलाव के चलते बेहतर पूर्वानुमान की आवश्यकता
भारत
में
हाल
के
समय
में
बेहद
खराब
मौसम
की
कई
घटनाएं
देखने
को
मिली
हैं,
जिसके
चलते
अप्रत्याशित
बाढ़,
बहुत
ज्यादा
गर्म
हवाएं
और
चक्रवातीय
तूफानों
का
सामना
करना
पड़ा
है।
इसकी
चर्चा
लोकसभा
में
भी
उठी
है।
बीते
साल
ही
अरब
सागर
और
बंगाल
खाड़ी
की
ओर
से
कम
से
कम
8
चक्रवातीय
तूफान
उठे
हैं।
जबकि,
सामान्य
तौर
पर
भारत
को
एक
साल
में
5
तूफानों
का
सामना
करना
पड़ता
है।
भारतीय
मौसम
विज्ञान
विभाग
के
पूर्व
डीजी
केजे
रमेश
ने
कहा
है
कि
'100
पेटाफ्लॉप्स
के
अपग्रेडेड
एचपीसी
सिस्टम
से
मौसम
वैज्ञानिक
को
बादलों
की
विशेषताओं
में
हो
रहे
सूक्ष्म
बदलावों
का
बेहतर
आंकलन
किया
जा
सकेगा
और
उससे
पूर्वानुमान
भी
बेहतर
होगा।
'
(सभी
तस्वीरें-
फाइल)