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प्रवासी मजदूरों की समस्या को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मानवाधिकार आयोग

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नई दिल्ली। कोरोना वायरस के चलते देश पिछले काफी दिनों से लॉकडाउन में था और अब धीरे-धीरे इस लॉकडाउन से लोगों को छूट दी जा रही है। चार चरण के लॉकडाउन के बाद अब अनलॉक-1 की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन बावजूद इसके प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ल रही है पहले ये अपने घर जाने के लिए सड़क पर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने के लिए मजबूर थे और अब ये अपनी रोजी-रोटी के लिए परेशानियों का सामना कर रहे हैं। वहीं इस बीच प्रवासी मजदूरों के मसले पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और अपील की है कि वह प्रवासी मजदूरों के मसले की सुनवाई को लेकर भी दिशानिर्देश जारी करे।

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बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमन ने भी मजदूरों के पलायन को लेकर अपनी चिंता जाहिर की थी। उन्होंने प्रवासी मजदूरों की घर वापसी को बड़ा संकट बताते हुए कहा था कि प्रवासी मजदूरों के घर जाने से गरीबी, असमानता और भेदभाव में बढ़ोतरी होगी। जस्टिस रमन ने यह बयान राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से आयोजित एक वेबिनार में दिया था। उन्होंने कहा था कि लॉकडाउन की वजह से पारिवारिक हिंसा, बाल उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं।

वहीं पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के. श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक प्रवासियों में जोखिम दर बहुत ही कम थी। वो शुरू से कहते आ रहे हैं कि प्रवासियों से कोई खतरा नहीं है। लॉकडाउन की शुरुआत में उन्हें वापस भेजे जाने में मदद की जानी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि मूल रूप से वायरस लाने वाले लोग विदेशी यात्री हैं। रेड्डी के मुताबिक प्रवासी श्रमिक आमतौर पर निर्माण कार्य या फैक्ट्री जैसी जगहों पर काम करते हैं। जिस वजह से 25 मार्च तक उनके संक्रमित होने का खतरा बहुत ही कम था। अगर उसी वक्त उनको घर भेजा गया होता तो आज ये समस्या नहीं होती, लेकिन उन्हें आठ हफ्तों तक शहरी इलाकों के हॉटस्पॉट में रखा गया। जिस वजह से वो संक्रमित हुए। रेड्डी ने इस बात पर भी जोर दिया कि भले ही प्रवासियों में संक्रमण कम हो, लेकिन उन्हें क्वारंटाइन करने की जरूरत है, क्योंकि ज्यादातर लोगों में कोरोना के लक्षण नहीं दिख रहे।

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English summary
National Human Rights Commission approaches Supreme court over Migrant worker.
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