महात्मा गांधी को मारने वाले गोडसे ने कभी नहीं छोड़ा था आरएसएस
नई दिल्ली। महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को कभी आरएसएस से न निकाला गया था और न ही उन्होंने कभी आरएसएस की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। यह बात नाथूराम गोडसे और वीर सावारकर के परपोते सतयाकी सावारकर ने कही है।
आपको बताते चलें कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी महात्मा गांधी की हत्या में आरएसएस का हाथ होने की बात कही थी। इसके बाद आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने राहुल गांधी के ऊपर मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाया है जिसकी सुनवाई अभी भी सुप्रीम कोर्ट में चल रही है।
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नाथूराम थे आरएसएस के कार्यकर्ता, सुबूत मौजूद
सतयाकी सावारकर ने ईटी से बातचीत करते हुए बताया कि हमारे परिवार के पास उनके कई ऐसे लेख मौजूद हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि वो आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ता थे।
सतयाकी सावारकर नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल गोडसे के पौत्र हैं और पेशे से सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल हैं और हिंदू महासभा को आगे बढाने का काम कर रहे हैं। इसे वीर सावारकर ने स्थापित किया था।
सतयाकी ने बताया कि नाथूराम गोडसे ने वर्ष 1932 में सांगली में आरएसएस की सदस्यता ली थी। सतयाकी ने बताया कि मरते दम तक नाथूराम गोडसे बौद्धिक कार्यवाह के पद पर बने रहे।
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सतयाकी ने पुष्टि करते हुए कहा कि वो न तो आरएसएस से निकाले गए थे और न ही उन्होंने आरएसएस छोड़ा था।
सतयाकी ने इस बात पर दुख जाहिर करते हुए कहा कि मैं इस बात से व्यथित हूं कि आरएसएस इस तथ्य को नकार रहा है कि नाथूराम गोडसे आरएसएस से जुडे हुए नहीं थे।
उन्होंने कहा कि मैं समझ सकता हूं कि आएसएस महात्मा गांधी की हत्या का समर्थन नहीं करेगा। पर वो तथ्यों को नकार नहीं सकते हैं।
हैदराबाद
के
निजाम
के
खिलाफ
गोडसे
का
प्रदर्शन
सतयाकी
ने
बताया
कि
नाथूराम
गोडसे
ने
वर्ष
1938-1939
में
हैदराबाद
के
निजाम
के
खिलाफ
हिंदू
महासभा
के
बैनर
तले
एक
प्रदर्शन
का
किया
था
जिसमे
कई
आरएसएस
के
स्वयंसेवकों
ने
हिस्सा
लिया
था।
इसके
लिए
वो
जेल
भी
गए
थे।
उन्होंने कहा कि मुक्तिसंग्राम के तहत भाग्यनगर में हैदराबाद के निजाम के खिलाफ उन्होंने प्रदर्शन किया था। सतयाकी ने बताया कि नाथूराम गोडसे निजाम के उस विचार के खिलाफ थे जिसमे वो हैदराबाद को एक इस्लामिक स्टेट बनाने का प्रयास कर रहे थे।
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साथ ही वहां के निजाम हिंदुओं पर अत्याचार भी कर रहे थे। इसको देखते हुए नाथूराम गोडसे ने हैदराबाद में हिंदुओं की पहचान की और उन्हें निजाम के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए एकत्र किया।
उन्होंने उस समय इसको लेकर कई समाचार पत्रों में लेख भी भेजे थे। इन लेखों को कई समाचार पत्रों ने प्रकाशित किया था जिन्हें आज भी हमारे परिवार ने संभाल कर रखा है।
आरएसएस
वीर
सावारकर
के
सपने
को
भूल
गया
सतयाकी
ने
बताया
कि
नाथूराम
गोडसे
और
संघ
सरसंचालक
एम
एस
गोलवलकर
में
आपसी
विवाद
हो
गया
था।
यह
विवाद
बाबाराव
सावारकर
की
पुस्तक
राष्ट्र
मीमांसा
को
अंग्रेजी
में
अनुवाद
करने
को
लेकर
हुआ
था
कि
किसको
इस
पुस्तक
के
अनुवाद
का
क्रेडिट
मिलना
चाहिए।
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बाद में नाथूराम गोडसे ने वर्ष 1942 में विजयदशमी के दिन हिंदू राष्ट्र दल की स्थापना की थी। बाद में देश विभाजन के मुद्दे पर उन्होंने वर्ष 1946 में इस पद से इस्तीफा दे दिया था।
आरएसएस का दावा है कि महात्मा गांधी की हत्या के वक्त नाथूराम गोडसे आरएसएस का हिस्सा नहीं था। उसने पहले ही इस पद से इस्तीफा दे दिया था।
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वर्ष 1994 में एक इंटरव्यू में नाथूराम गोडसे के छोटे भाई गोपाल गोडसे ने इस बात को स्वीकार किया था कि वो तीनों भाई नाथूराम, दत्तात्रेय और गोपाल तीनों ने कभी भी आरएसएस नहीं छोड़ा था।
सतयाकी ने आरएसएस पर आरोप लगाते हुए कहा कि आरएसएस न सिर्फ नाथूराम गोडसे को भूल गई बल्कि वीर सावारकर की मजबूत हिंदू समाज की संकल्पना को भी उसने भुला दिया।