बीजेपी में मोदी के राह में रोड़े हैं हजार
नयी दिल्ली। बहुत कम नेता ऐसे हैं जिनके नाम से ही आलोचना और तारीफ़ एक साथ उमड़ पड़ती है। गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी की चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष नरेंद्र मोदी भी इन नेताओं में से एक माने जाते हैं। मोदी के सिर पर गुजरात मॉर्डल का सेहरा सजा है तो दामन में गुजरात दंगों के धब्बे भी लगे है। मोदी देश की राजनीति में विवादास्पद नेता रहे है। उनके प्रति जनता से लेकर नेताओं को आशंकाएं भी हैं। ये भी दलील है कि विवादास्पद होने की वजह से मोदी को फायदा हो रहा है उनके खिलाफ जितनी आवाज उठ रही है उतना ही मोदीवाद फैलता जा रहा है।
इसी मोदीवाद का असर है कि मोदी गुजरात से निकल कर दिल्ली तक का सफर तय कर रहे है। मंच तैयार हो गया है, बस राजतिलक होना बाकी है। मोदी के खिलाफ पार्टी के अंदर भी विरोध है और एनडीए में भी विरोध है इसके अलावा सेक्युलर कहलाने वाली पार्टियां पहले से ही विरोध कर रही है यानि यूं कहें कि मोदी के खिलाफ दुश्मनों की एक बड़ी फौज खड़ी है जो मोदी को अछूत करार देकर उनके रास्ते को रोकने की कोशिश में हैं। ऐसे में भाजपा के पीएम पद की उम्मीदवारी संभालने के बाद उनकी राह आसान नहीं होगी। देश की राजनीति की जमीन गुजरात की तरह समतल नहीं है बल्कि केन्द्र की सियासत पथरीली, कंटीली और ऊबड़ खाबड़ है।
राह भले ही कठोर हो, लेकिन मोदी के इस सियासी सफर में वो अकेले नहीं है। इस सफर में नरेन्द्र मोदी के साथ आरएसएस और बीजेपी के एक बड़े धड़े का भरपूर समर्थन है। चुनाव की कमान मोदी के हाथ में है और पार्टी की कमान राजनाथ सिंह के पास और फिलहाल अभी तक एनडीए की लगाम लालकृष्ण अडवाणी के पास है। कहने के अर्थ है कि मोदी को एक ऐसे घोड़े का घुड़सवार बनने जा रहे है जिसकी लगाम और कमान किसी और के हाथ में है इससे ये सवाल पैदा हो रहा है कि मोदी कथित अच्छे घुड़सवार होने के बावजूद क्या पार्टी को रफ्तार दे पाएंगे।
मोदी के सामने चुनौती
1. पीएम पद की कमान संभालने के बाद मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है सुस्त पड़े संगठन में जान फूंकना, जितना गठबंधन का दायरा है उसे मजबूत करना और उसी में बेहतर करना है।
2. बीजेपी में मौजूद भीतरघात की स्थिति को कम करना।
3. मोदी को ये भी ध्यान रखना होगा कि बीजेपी की राजनीतिक जमीन सिर्फ 71 फीसदी उपजाऊ है तो 29 फीसदी जमीन पार्टी के लिए बंजर की तरह है यानि 156 पर पार्टी का वजूद नहीं है।
4. पार्टी में मौजूद वैचारिक मतभेद को कम कर सबकों एकसाथ लेकर चलना मोदी की चुनौतियों में सबसे ऊपर शामिल होगा। आडवाणी खेमा मोदी के खिलाफ हैष ऐसे में पार्टी के बीच समन्वय बनाना बड़ी चुनौती होगी।
5. 2009 के चुनाव में बीजेपी 110 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी, मोदी को इन सीटों पर खास ध्यान रखना पड़ेगा ताकि आसानी से यहां पर जीत हासिल की जा सके।
6. मोदी के सामने एनडीए गठबंधन को मजबूत करना भी बड़ी चुनौती होगी। उन्हें सुस्त पड़े संगठन में जान फूंकना, गठबंधन का दायरा बढ़ाना।
7. मोदी की सीधा मुकाबला कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से होगा। पिछले लोकसभा चुनाव से तुलना की जाए तो जहां कांग्रेस को देश के 12 करोड़ मतदाताओं ने अपना मत दिया था तो वहीं बीजेपी को महज़ 8 करोड़ वोटरों ने अपना समर्थन दिया था। ऐ से में वोट बैंक को मजबूत करने का जिम्मा मोदी के सिर पर होगा।