हरिवंश के बहाने मोदी-शाह ने चला मास्टर स्ट्रोक, 'JDU के तीर' से साधे 4 निशाने
हरिवंश की उम्मीदवारी के जरिए भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही एनडीए के कुनबे की मजबूती के संकेत देते हुए एक तीर से चार निशाने साधे।
नई दिल्ली। राज्यसभा के लिए पहली बार चुने गए जेडीयू सासंद हरिवंश नारायण सिंह गुरुवार को हुए चुनाव में 125 सांसदों का समर्थन हासिल कर ऊपरी सदन में उपसभापति बन गए। हरिवंश की जीत पहले से ही तय मानी जा रही थी। केंद्र सरकार के खिलाफ हाल ही में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के ठीक बाद हुए इस चुनाव में जेडीयू सांसद हरिवंश को एनडीए की तरफ से उपसभापति पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने अपना मास्टर स्ट्रोक चला। हरिवंश की उम्मीदवारी के जरिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही एनडीए के कुनबे की मजबूती के संकेत देते हुए एक तीर से चार निशाने साधे।
विपक्ष को संदेश, नीतीश कुमार NDA के साथ
हरिवंश नारायण सिंह जेडीयू के राज्यसभा सांसद हैं। जेडीयू हालांकि एनडीए का हिस्सा है, लेकिन कई मौकों पर बिहार के सीएम और पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार मोदी सरकार और भाजपा को लेकर हमलों के तीर चला चुके हैं। कुछ विपक्षी पार्टियां भी ऐसे मौकों पर नीतीश को एनडीए छोड़ अपने पाले में लाने की कोशिश कर चुकी हैं। जेडीयू के सांसद को उपसभापति चुनाव में उतारकर भाजपा ने विपक्ष के सामने यह सुनिश्चित कर दिया कि नीतीश कुमार एनडीए के ही साथ हैं।
ये भी पढ़ें- केजरीवाल का ऐलान, 2019 में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का हिस्सा नहीं बनेगी AAP
2019 से पहले मिला 'BJD का साथ'
राज्यसभा में एनडीए के पास बहुमत नहीं था। ऐसे में जेडीयू सांसद हरिवंश को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने बीजू जनता दल और शिवसेना का समर्थन हासिल किया। उपसभापति पद पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए नीतीश कुमार ने खुद ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक को फोन कर समर्थन मांगा। राज्यसभा में बीजेडी के 9 सांसद हैं, इसलिए भाजपा के लिए बीजेडी का समर्थन हासिल करना एक बड़ी जीत थी। बीजेडी का समर्थन मिलना भाजपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ओडिशा में दोनों करीबी प्रतिद्वंदी हैं और राज्य के विधानसभा चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव के साथ ही हैं। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी चर्चा का बहिष्कार कर बीजेडी ने भाजपा को ही फायदा पहुंचाया था।
वाईएसआर गैरहाजिर, तो भाजपा को मिला फायदा
एनडीए को राज्यसभा में दूसरी मदद आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस से मिली। वाईएसआर ने उपसभापति चुनाव की वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया और बहुमत का आंकड़ा घट गया। वर्तमान में 244 सांसदों वाली राज्यसभा में बहुमत के लिए 123 वोटों की जरूरत थी। सदन में वोटिंग के दौरान कुल 8 सांसद गैरहाजिर रहे, जिससे बहुमत का आंकड़ा घटकर 119 हो गया। भाजपा के केवल 73 राज्यसभा सांसद होने के बावजूद, एनडीए उम्मीदवार हरिवंश को 125 सांसदों का समर्थन मिला। इससे एनडीए की एकजुटता जाहिर हुई।
शिवसेना को आखिर साथ आना ही पड़ा
महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना, एनडीए की एकता में पिछले काफी दिनों से एक बाधा बनी हुई थी। शिवसेना लगातार भाजपा और मोदी सरकार पर हमले बोलती रही है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी शिवसेना सदन से गैरहाजिर थी। उपसभापति चुनाव में अगर भाजपा अपनी पार्टी का प्रत्याशी उतारती तो हो सकता था कि शिवसेना फिर सदन से गैरहाजिर रहती। इससे बचने के लिए भाजपा ने जेडीयू के सांसद को उम्मीदवार बनाया और शिवसेना ने अपना भाजपा-विरोधी रुख छोड़ते हुए एनडीए के पक्ष में मतदान किया।