पुडुचेरी में नारायणसामी सरकार गिरी, लेफ्टिनेंट गवर्नर Soundararajan के पास क्या विकल्प बचे हैं ?
पुडुचेरी: पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों की घोषणा चुनाव आयोग किसी भी दिन कर सकता है। यहां पर अप्रैल-मई में पांच राज्यों- असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल के साथ ही चुनाव करवाए जाने हैं। लेकिन, उससे पहले आज वहां पर एक नया संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है कि मुख्यमंत्री वी नारायणसामी की अगुवाई वाली सत्ताधारी कांग्रेस-डीएमके गठबंधन की सरकार विधानसभा में विश्वास मत हार गई है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या वहां पर विपक्ष को सरकार बनाने का मौका मिलेगा या फिर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की जाएगी। आइए जानते हैं कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर तमिलिसाई सौंदरराजन के पास क्या-क्या संवैधानिक विकल्प बच गए हैं ?
पुडुचेरी विधानसभा में कांग्रेस सरकार विश्वास मत हारी
सत्ताधारी विधायकों के इस्तीफे की वजह से अल्पमत में आई कुमारसामी सरकार को आज विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने का उपराज्यपाल सौंदरराजन ने आदेश दिया था। लेकिन, कांग्रेस की अगुवाई वाली नारायणसामी सरकार इसमें नाकाम रही। अलबत्ता उन्हें पहले से पता था कि सदन में बहुमत साबित कर पाने लायक उनके पास विधायकों का समर्थन नहीं है, लेकिन फिर भी इस मौके पर सहानुभूति बटोरने के लिए उन्होंने इस्तीफा देने की जगह विश्वास मत हासिल करने का रास्ता अपनाया। इसलिए जब उनका विश्वास प्रस्ताव सदन में गिर गया तो वे और उनके मंत्री इसके लिए पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर किरण बेदी और केंद्र की बीजेपी सरकार पर ठीकरा फोड़ते हुए सदन से बाहर हो गए।
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क्यों गिरी कुमारसामी सरकार ?
दरअसल, पिछले जनवरी से सत्ताधारी गठबंधन (कांग्रेस-डीएमके) के 6 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। इनमें से 5 कांग्रेस के और एक डीएमके के विधायक शामिल हैं। दोनों दलों के एक-एक विधायक ने विश्वास मत की पूर्वसंध्या यानी की रविवार को भी विधायिकी से इस्तीफा दिया है। इसके चलते 33 विधायकों वाले सदन में सदस्यों की संख्या घटकर सिर्फ 26 रह गई है। एक कांग्रेसी विधायक की सदस्यता पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते जुलाई, 2020 में ही रद्द कर दी गई थी। इस सदन में सिर्फ 30 विधायक ही निर्वाचित होते हैं और 3 विधायकों को मनोनीत किया जाता है। ये तीनों मनोनीत विधायक भाजपा के हैं।
पुडुचेरी विधानसभा में सदस्यों का आंकड़ा ?
2016 के पुडुचेरी विधानसभा में कांग्रेस 15 सीटें जीती थी और इसने तीन डीएमके और एक निर्दलीय विधायक के समर्थन से सरकार बनाई थी। जबकि, विपक्षी दलों के पास 11 विधायक थे, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री एन रंगासामी की अगुवाई वाले ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस के 7 और एआईएडीएमके पास 4 विधायक शामिल हैं। बाद में लेफ्टिनेंट गवर्नर ने भाजपा के तीन विधायकों को मनोनित किया, जिनके पास वोट देने का भी अधिकार है। विधायकों के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के पास अब सिर्फ 9 विधायक बच गए हैं और 2 डीएमके और एक निर्दलीय के साथ उसका आंकड़ा 12 तक ही सिमट चुका है। इसमें कांग्रेस के स्पीकर वीपी सिवाकोलुंधु भी शामिल हैं, जो विश्वास मत पर तभी वोट दे सकते थे, जब दोनों तरफ से बराबर वोट आते। जबकि, बीजेपी समेत (3) रंगासामी की अगुवाई वाले विपक्ष के पास 14 सदस्य हैं।
उपराज्यपाल के पास क्या हैं विकल्प ?
अब निर्वाचित सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है तो वहां की लेफ्टिनेंट गवर्नर सौंदरराजन का रोल बहुत ही अहम हो गया है। मौजूदा सियासी परिस्थितियों में वह तीन विकल्पों से एक का चुनाव कर सकती हैं-
- पहला- वह नारायणसामी को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर अगली व्यवस्था होने तक या चुनाव तक अपने पद पर बने रहने की गुजारिश कर सकती हैं।
- दूसरा- वह विपक्ष के नेता और एनआर कांग्रेस अध्यक्ष रंगासामी को नई सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकती हैं।
- तीसरा- वह राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज सकती हैं कि मौजूदा परिस्थितियों में चुनाव के बाद नई सरकार बनने तक राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। यह कदम वह रंगासामी को आमंत्रित करने के पहले या बाद में भी उठा सकती हैं।
सीएम नारायणसामी के पास एक और विकल्प
एक विकल्प नारायणसामी के पास भी है कि वह उपराज्यपाल से विधानसभा भंग करके राष्ट्रपति शासन में चुनाव करवाए जाने की सिफारिश कर सकते हैं। लेकिन, उन्होंने सदन का भरोसा खो दिया है, इसलिए उनकी सिफारिश को मानने के लिए एलजी बाध्य नहीं हैं। यानी अब पुडुचेरी की शासन व्यवस्था का कंट्रोल पूरी तरह से तमिलनाडु से आने वाली उपराज्यपाल के हाथ में है जो तेलंगाना की राज्यपाल हैं और इस केंद्र शासित प्रदेश का अतिरिक्त प्रभार संभाल रही हैं।
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