नागालैंड सरकार ने सिटिजन बिल के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास किया
नई दिल्ली: पूरे पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन विधेयक का ज़बरदस्त विरोध हो रहा है। इस बिल के विरोध में जगह -जगह भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं नागालैंड सरकार ने विधानसभा में इस बिल के विरोध में एक प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव के विरोध में विपक्षी दल के 26 विधायकों ने वॉकआउट किया। ये प्रस्ताव सोमवार को विधानसभा में पास किया गया। नागालैंड विधानसभा में बिल को खारिज करते हुए कहा गया कि इसे नागालैंड में लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि प्रस्तावित कानून "संविधान के तहत नागाओं के अनूठे इतिहास और स्टेटस को संविधान के तहत प्रभावित करेगा। ये बिल नेफ्यू रियो द्वारा विधानसभा में रखा गया।
इस प्रस्ताव में नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में पूर्वोत्तर के राज्यों और समुदायों के साथ एकजुटता भी व्यक्त की गई। क्योंकि इसमें जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल को बदलने की क्षमता है, जो कि यहां के मूल जनजातियों के हित के खिलाफ होगी। इससे निश्चित तौर पर उनके राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकार छीन सकते हैं जो उन्हें संवैधानिक तौर पर मिले हैं। विपक्ष के विधायकों का कहना है कि वो इसे मौजूदा रूप में सही नहीं मानते हैं और उन्होंने इसके विरोध में वॉकआउट किया। नागरिकता संशोधन विधेयक आठ जनवरी को लोकसभा में पास किया गया था। लेकिन राज्यसभा में इसे नहीं लाया गया।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 क्या है?
ये विधेयक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैरमुस्लिमों के लिए भारत की नागरिकता आसान बनाने के लिए है. इसके बिल के कानून बन जाने पर इन तीन देशों से भारत आने वाले शरणार्थियों को 12 साल की जगह छह साल बाद ही भारत की नागरिकता मिल सकती है। वहीं अगर असम की बात करें तो सा 1985 के असम समझौते के मुताबिक 24 मार्च 1971 से पहले राज्य में आए प्रवासी ही भारतीय नागरिकता के पात्र थे। लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक में यह तारीख 31 दिसंबर 2014 कर दी गई है। लोकसभा में ये बिल पास होते ही बांग्लादेश में शरणार्थियों का मुद्दा लाइमलाइट में आ गया है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रशासन को आदेश दिए हैं कि तुरंत रिफ्यूजी कैंपों को सरकारी मंजूरी दी जाए।