मोबाइल स्क्रीन और नोट पर 28 दिनों तक कोरोना वायरस रहने के दावे का जानिए क्या है सच
मोबाइल स्क्रीन और नोट पर 28 दिनों तक कोरोना वायरस रहने के दावे का जानिए क्या है सच
नई दिल्ली। कोरोना के कहर के बीच आए दिन इस जानलेवा वायरस को लेकर तरह- तरह के दावें किए जा रहे हैं। पिछले दिनों शोधकर्ताओं ने रिसर्च करके बताया कि कोविड 19 का वायरस 28 घंटे तक नोट, मोबाइल की फोन स्क्रीन और स्टेनलेस स्टील की सतहों पर जीवित रह सकता है, लेकिन शोधकर्ताओं के इन दावों को यूएम यूसीएच संक्रामक रोगों के प्रमुख डाक्टर फहीम युनूस ने झूठा बताया है।
कोविड का वायरस 28 घंटों के लिए फोन स्क्रीन/ पैसे पर जीवित रहता है ये सब मिथक है
संक्रामक रोगों के प्रमुख डाक्टर फहीम युनूस ने अपने ट्वीटर पर स्वयं इन दावों को खारिज किया है। उन्होंने लिखा है कि कोविड का वायरस 28 घंटों के लिए फोन स्क्रीन / पैसे पर जीवित रहता है ये सब मिथक है। कोविड वायरस पर फ्रंटलाइन पर काम करने वाले डाक्टर फहीम यूनुस ने दावा किया कि इसको लेकर जो तथ्य दिए जा रहे हैं वो बिलकुल बकवास हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के अध्ययन कृत्रिम प्रयोगशाला और अंधेरे, नम स्थितियों में किए जाते हैं। ये प्रयोग body's defenses के बिना किए गए हैं।
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सेल फोन और नोट से कोरोना वायरस का बिलकुल जोखिम नहीं है
उन्होंने आगे लिखा कि सेल फोन और नोट से कोरोना वायरस का बिलकुल जोखिम नहीं है। ट्वीट के अंत में डाक्टर फहीम ने मजाकिया अंदाज में लिखा कि अगर अभी भी आपको डर है कि नोट और मोबाइल स्क्रीन में कोरोना वायरस जीवित रहता है तो मुझे अपना फोन और पैसा भेजें। इसके साथ ही उन्होंने बीबीसी पर प्रकाशित एक न्यूज शेयर भी की है जिसमें ये दावा किया गया है कि ये वायरस 28 घंटों तक नोट और मोबाइल स्क्रीन पर जीवित रहता है।
जानिए शोध में क्या किए गए हैं दावें
हाल ही में आस्ट्रेलिया के राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी के एक लैब में हुए एक शोध के बाद दावा किया कि जानलेवा कोरोनावायरस बैंक करेंसी, स्मार्टफोन्स के ग्लास की सतहों पर कुल 28 दिनों तक जीवित रह सकता है। इसमें स्मार्टफोन की स्क्रीन और स्टेनलेस स्टील की सतह भी शामिल है। वायरोलॉजी जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में ये दावा किया गया कि कोरोनावायरस के लिए कारक बीमारी SARS-VoV-2 लंबे समय तक स्टेनलेस स्टील और ग्लास वाली सतहों पर जीवित रह सकता है। ताजा अध्ययन यह भी सुझाता है कि तापमान इस वायरस को जीवित रहने की अवधि को तय करता है। यानी कि बढ़ते तापमान के साथ वायरस के जिंदा रहने की अवधि में कमी आ जाती है।
प्रयोग अंधेरे में किया गया था
हालाँकि, प्रयोग अंधेरे में किया गया था। यूवी लाइट को वायरस को मारने के लिए पहले ही दिखाया जा चुका है। कुछ विशेषज्ञों ने वास्तविक जीवन में सतह संचरण द्वारा उत्पन्न वास्तविक खतरे पर भी संदेह व्यक्त किया है। कोरोनोवायरस ज्यादातर तब फैलता है जब लोग खांसी, छींकते हैं या बात करते हैं, लेकिन इस बात के भी प्रमाण हैं कि यह हवा में लटके कणों द्वारा भी फैल सकता है। यह भी संभव है कि यूएस सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल के अनुसार, संक्रमित सतहों जैसे धातु या प्लास्टिक को छूकर कोई कोविड -19 के संक्रमण का शिकार हो चुका सकता है। हालांकि यह बहुत कम आम माना जाता है।