म्यांमार: उत्पीड़न झेलने वाली महिलाओं ने बताया नज़रबंदी शिविरों में क्या हो रहा है
म्यांमार में इस साल की शुरुआत में सेना ने तख़्तापलट कर सत्ता पर नियंत्रण हासिल कर लिया था, इसके विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन देखने को मिला. इन आंदोलनों में महिलाओं की अहम भूमिका थी.
म्यांमार में हिरासत में रखी गई महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न किया जा रहा है. हिरासत में उन्हें बलात्कार की धमकियां मिलती है. यह जानकारी प्रताड़ना झेलने वाली महिलाओं ने बीबीसी से साझा की है.
इस साल की शुरुआत में सैन्य तख़्तापलट के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान जिन महिलाओं को हिरासत में लिया गया, उनमें से पांच ने बताया है कि हिरासत में लिए जाने के बाद उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उन्हें प्रताड़ित किया गया.
इन महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इनके नाम बदल दिए गए हैं.
चेतावनी- इस रिपोर्ट में उत्पीड़न की कहानियों का विवरण आपको विचलित कर सकता है.
म्यांमार में इस साल की शुरुआत में सेना ने तख़्तापलट कर सत्ता पर नियंत्रण हासिल कर लिया था, इसके विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन देखने को मिला. इन आंदोलनों में महिलाओं की अहम भूमिका थी.
मानवाधिकार समूहों के मुताबिक़ तख़्तापलट से पहले भी म्यांमार में लोगों के लापता होने, उनके बंधक बनाए जाने और उत्पीड़न के मामले सामने आते रहे थे लेकिन तख़्तापलट के बाद इस तरह की हिंसा तेज़ी से बढ़ी.
मानवाधिकार संगठन अस्सिटेंस एसोसिएशन फ़ॉर पॉलिटिकल प्रिज़नर्स (एएपीपी) की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक़, म्यांमार में लोकतंत्र समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों पर आठ दिसंबर तक हुई सैन्य कार्रवाईयों में 1,318 आम लोगों की मौत हुई है.
इसमें 93 महिलाएं भी शामिल हैं. इनमें से आठ महिलाओं की मौत हिरासत में हुई. इनमें से चार की मौत पूछताछ केंद्र में पिटाई और उत्पीड़न के बाद हुई.
म्यांमार में इस वक़्त डिटेंशन कैंप में 10,200 लोग हैं और इनमें दो हज़ार महिलाएं हैं.
लोकतांत्रिक कार्यकर्ता इन सोई मे छह महीनों तक कैद में रही थीं. इनमें से पहले 10 दिन उन्होंने म्यांमार के क़ुख्यात पूछताछ सेंटर में बिताए. सोई मे का आरोप है कि उनके साथ यौन उत्पीड़न हुआ और उन्हें प्रताड़ित किया गया.
सोई मे ने बीबीसी को बताया कि एक सुबह जब वे प्रदर्शन के लिए पोस्टर बना रही थीं तभी उन्हें गिरफ़्तार किया गया और एक वैन में ठूंस दिया गया.
उन्होंने बताया, "लगभग रात हो चुकी थी, जब हम एक अनजान जगह पर पहुंचे थे. मेरी आंखों पर पट्टी बांधी हुई थी, पूछताछ वाले कमरे तक ले जाते वक्त वे मजाक़ उड़ाते हुए मुझे रास्ते की उन चीज़ों से (जो वहां मौजूद नहीं थी) टकराने से बचने के लिए कह रहे थे."
सोई मे को गिरफ़्तार करने वालों ने इसके बाद उनसे सवाल पूछना शुरू किया और हर नापसंद जवाब पर वे बांस के डंडे से मारते थे. सोई मे के मुताबिक़ उनसे लगातार उनकी सेक्स लाइफ़ के बारे में सवाल किए गए.
सवाल पूछने वाले एक शख़्स ने उन्हें धमकी भरे लहजे में कहा, "तुम्हें पता भी है, जो महिलाएं यहां आती हैं, हम उनके साथ क्या करते हैं? हम उनका बलात्कार करते हैं और उनकी हत्या कर देते हैं."
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जब सोई मे की आंखों पर पट्टियां बंधी हुई थी, तभी उनके साथ यौन उत्पीड़न भी शुरू हो गया.
सोई मे ने बताया, "मैंने थोड़ा बड़ा टॉप पहना हुआ था, जिसे उन लोगों ने उतार दिया. उन्होंने मेरे शरीर को उस तरह से छुआ जैसे मेरे जिस्म को एक्सपोज़ कर रहे हों."
बाद में सोई मे की आंखों से पट्टियां हटा ली गईं, तब उन्होंने एक गार्ड को अपनी रिवॉल्वर से एक गोली निकालते हुए देखा. लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने संपर्कों के बारे में उन्हें कुछ नहीं बताया.
मे ने बताया कि उन लोगों ने जबर्दस्ती उनका मुंह खोलकर उसमें भरी हुई रिवॉल्वर डाल दी थी.
कामचलाऊ डिटेंशन सेंटर
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली एजेंसी ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) के म्यांमार रिसर्चर मैन्नी माउंग ने पूछताछ सेंटरों के बारे में बताया, "यह मेकशिफ़्ट कैंप जैसा होता है, मिलिट्री बैरक में एक कमरा जैसा होता है या फिर खाली सरकारी इमारत में होता है."
म्यांमार की एक वकील ने बीबीसी से इन बातों की पुष्टि की लेकिन सुरक्षा कारणों से अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं की. उन्होंने बताया कि पूछताछ के दौरान यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली कई महिलाओं की वह वकील रह चुकी हैं.
उन्होंने बताया, "मेरी एक क्लाइंट को ग़लत पहचान के आधार पर गिरफ़्तार किया गया. मेरी क्लाइंट ने उन लोगों को बताया कि वह दूसरी महिला है लेकिन अधिकारियों ने उनकी बात नहीं सुनी. वो उनकी पिंडलियों पर तब तक लोहे की छड़ से पीटते रहे जब तक वह बेहोश नहीं हो गईं. "
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महिला वकील के मुताबिक़, उनकी क्लाइंट को वहां से दूसरे पूछताछ केंद्र भेजा गया जहां कथित तौर पर उनके पुरुष गार्ड ने उनसे रिहाई के बदले यौन संबंध की मांग की.
महिला वकील ने म्यांमार की क़ानूनी प्रक्रिया को अपारदर्शी बताते हुए कहा कि उनकी जैसी वकीलों के पास कभी कभी कोई ताक़त नहीं होती है.
उन्होंने कहा, "हम इन गिरफ़्तारियों और पूछताछ को चुनौती देने की कोशिश करते हैं लेकिन हमें बताया जाता है कि ये क़ानूनी प्रक्रियाएं हैं और पूछताछ करने वालों को इसके आदेश दिए गए हैं."
सोई मे ने अपने अनुभवों के बारे में जो बताया है उसकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि कर पाना असंभव है. लेकिन बीबीसी ने कुछ दूसरी महिलाओं से भी बात की जो पूछताछ केंद्रों में उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न की बातों को सही ठहराती हैं.
एक अन्य महिला ने अपनी हिरासत के अनुभवों के बारे में कहा, "उन्होंने मुझे एक घंटे से अधिक समय तक थ्री-फिंगर सैल्यूट जो म्यांमार में प्रतिरोध का प्रतीक है, उसे उठाने के लिए मजबूर किया, क्योंकि एक गार्ड ने मुझे डराने के लिए मेरे बालों को पकड़कर खींचा."
एक अन्य महिला, जिन्हें श्वे पी थार टाउनशिप के एक पूछताछ केंद्र में ले जाया गया था, उन्होंने बताया, "उन्होंने लड़कियों को कमरे से बाहर खींच लिया. कुछ लड़कियां जब लौटीं तो उनके कपड़ों पर कुछ बटन नहीं थे और कुछ का पता भी नहीं चल पाया."
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फ़ेक न्यूज़
बीबीसी ने सो मे की गवाही को म्यांमार के सूचना उप मंत्री मेजर जनरल ज़ॉ मिन टुन के सामने रखा, जिन्होंने सेना द्वारा किसी भी तरह की यातना दिए जाने से इनकार किया और इसे फ़ेक न्यूज़ बताते हुए ख़ारिज कर दिया.
इस साल की शुरुआत में सेना ने हिरासत में रखी गई एक महिला की तस्वीर प्रसारित की थी. उनके चेहरे पर इतनी चोट थी कि उन्हें पहचानना संभव नहीं हो रहा था.
उनकी यह तस्वीर वायरल हो गई. यह महिला अभी भी हिरासत में हैं और उन पर हथियार रखने का मामला चल रहा है.
बीबीसी ने मेजर जनरल ज़ॉ मिन टुन से पूछा कि ये चोटें क्या हैं, सेना इन्हें छिपा क्यों नहीं सकी?
उन्होंने कहा, "हिरासत के दौरान संभव हो कि ऐसा हुआ हो. वे भागने की कोशिश करते हैं और हमें उन्हें पकड़ना होता है."
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एकांत कारावास
वैसे महिला कैदियों के साथ दुर्व्यवहार सिर्फ़ गोपनीय पूछताछ स्थलों पर ही नहीं होता है.
50 के दशक में एक कार्यकर्ता, जिन्हें हम सुश्री लिन कह रहे हैं, उन्होंने बीबीसी को बताया कि उन्हें यंगून की इनसेन जेल के अंदर 40 दिनों से अधिक समय तक एकांत कारावास में रखा गया था.
सुश्री लिन ने जो कपड़े पहने थे, उसके सिवा उनके सेल में कुछ भी नहीं था- आवश्यक दवा तक नहीं. हिरासत के दौरान वह लगातार कमजोर होती गई.
उन्होंने बताया, "मैं अंधेरे में झूठ बोलती और चिंता करती कि मैं मरने जा रही हूं. कभी-कभी पास की कोठरी से चिल्लाने और रोने की आवाज़ सुनी. मैं सोचती थी कि वहां किसी को पीटा जा रहा है."
उनके मुताबिक़ एक दिन एक पुरुष अधिकारी कई महिला अधिकारियों के साथ उनके सेल में दाखिल हुआ. उन्होंने बताया "जब वे जाने वाले थे, तो मैंने देखा कि पुरुष अधिकारी मेरा वीडियो बना रहे थे तो मैंने शिकायत की, लेकिन इससे कुछ नहीं हुआ."
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एचआरडब्ल्यू की शोधकर्ता मैनी माउंग ने बीबीसी को बताया कि अक्सर जेलों में लगभग 500 महिलाओं को एक साथ इतने बड़े कमरों में बंद कर दिया जाता है, जिनमें अधिकतम 100 महिलाएं रह सकती हैं.
ऐसे में उन्हें बारी-बारी से सोना होता है, क्योंकि वे सभी एक ही समय पर लेट नहीं सकतीं.
मैन्नी माउंग के मुताबिक़ इन महिलाओं को बुनियादी स्वच्छता से भी वंचित किया जा रहा था जो एक तरह से उन्हें मौलिक अधिकार से वंचित करना था.
जिस महिला को श्वे पी थार पूछताछ केंद्र ले जाया गया, उन्होंने भी जेल में इसका अनुभव किया था. उन्होंने बताया, "जो महिलाएं पूछताछ केंद्रों से आई थीं, उनकी स्थिति ठीक नहीं थी. कुछ को जख़्म थे जबकि कुछ को मासिक धर्म हो रहा था. ऐसी स्थिति में भी सात दिनों की हिरासत के बाद उन्हें स्नान करने की अनुमति दी गई थी."
इसी साल अक्टूबर में म्यांमार में 5,000 से अधिक कैदियों की रिहाई माफ़ी पर हुई. इनमें सोई मे भी शामिल हैं. उन्हें डर है कि उनकी सक्रियता के चलते उन्हें फिर से गिरफ़्तार किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, "यह संभव है कि मुझे फिर से गिरफ़्तार कर लिया जाए. मेरी मौत भी हो सकती है. लेकिन मैं अपने देश के लिए कुछ करना चाहती हूं. मैं सुरक्षित महसूस नहीं करती लेकिन मैं इस आंदोलन का हिस्सा बने रहना चाहती हूं."
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(इलेस्ट्रेशन: डेविस सूर्या और जिल्ला दस्तमाल्ची)
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