क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

मुज़फ़्फ़रपुर: इंसेफिलाइटिस या 'कुशासन' कौन लील रहा है मासूमों को?

मुज़फ़्फ़रपुर में अब तक एईएस की वजह से 121 बच्चे अपनी जान गवां चुके हैं. मासूमों के मौत का यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है. वार्ड के बाहर सुधा के पति, 35 वर्षीय अनिल सहानी सुध-बुध खो रही अपनी पत्नी को दिलास देने की कोशिश कर रहे हैं. वार्ड के भीतर रोहित की दादी उसके नन्हें पैरों पर अपना सर टिकाए अभी भी रो रही हैं.

 

By प्रियंका दुबे
Google Oneindia News
इंसेफिलाइटिस
BBC
इंसेफिलाइटिस

सड़ते कूड़े, पसीने, फिनाइल और इंसानी लाशों की गंध में डूबे मुज़फ़्फ़रपुर के श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज में इस वक़्त रात के आठ बजे हैं. पहली मंज़िल पर बने आईसीयू वार्ड के बाहर रखे जूतों की ढेर के बीच खड़ी मैं, शीशे के दरवाज़े से भीतर देखती हूं.

सारा दिन 45 डिग्री धूप की भट्टी में तपा शहर रात को भी आग उगल रहा है. हर दस मिनट में जाती बिजली और अफ़रा-तफ़री के बीच अचानक मुझे भीतर से एक चीख़ सुनाई दी.

दरवाज़े के भीतर झाँका तो पलंग का सिरा पकड़कर रो रही एक महिला नज़र आयीं. नाम सुधा, उम्र 27 साल.

अगले ही पल रोते-रोते सुधा ज़मीन पर बैठ गयीं. पलंग पर सुन्न पड़ा उनका तीन साल का बेटा रोहित एक्यूट इंसेफ़िलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से अपनी आख़िरी लड़ाई हार चुका था.

तभी अचानक अपने निर्जीव बेटे के नन्हें पैर पकड़कर सुधा ज़ोर से चीख़ीं. एक पल को मुझे लगा जैसे उनकी आवाज़ अस्पताल की दीवारों के पार पूरे शहर में गूंज रही है. डॉक्टरों के आदेश पर जब खींचकर माँ को वार्ड के बाहर ले जाया गया तब धीरे-धीरे सुधा की चीख़ें सिसकियों के एक अंतहीन सैलाब में बदल गयीं.

एक माँ का अपने मरे हुए बच्चे के लिए विलाप कितना काला, गहरा और गाढ़ा हो सकता है, यह मैंने बीते पखवाड़े मुज़फ़्फ़रपुर के श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज के आइसीयू वार्डों में जाना है.

यहां लगातार मर रहे बच्चों की माओं के दुख की जैसे कोई थाह ही नहीं. वार्ड के एक कोने में खड़ी मैं चुप-चाप सुबकते हुए उनके रोने को सुनती हूं.

मुज़फ़्फ़रपुर में अब तक एईएस की वजह से 121 बच्चे अपनी जान गवां चुके हैं. मासूमों के मौत का यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है.

वार्ड के बाहर सुधा के पति, 35 वर्षीय अनिल सहानी सुध-बुध खो रही अपनी पत्नी को दिलास देने की कोशिश कर रहे हैं. वार्ड के भीतर रोहित की दादी उसके नन्हें पैरों पर अपना सर टिकाए अभी भी रो रही हैं.

पसीने से तर-ब-तर अनिल बताते हैं कि बीती रात तक उनका बेटा एकदम ठीक था.

"अभी एक घंटे पहले इसे मेडिकल (अस्पताल) में भर्ती करवाया था. डॉक्टर बता रहे हैं कि पहले ब्रेन डेड हुआ और अब ख़त्म हो गया है."

अनिल के इतना कहते ही वार्ड की बिजली एक बार फिर से चली गयी. मोबाइल टॉर्च की रौशनी में बिलख-बिलख कर रोते अनिल के चेहरे पर मौजूद आँसुओं और पसीने की लकीरों में भेद कर पाना मुश्किल था.

अस्पताल के कॉरिडर में आगे बढ़ते हुए मुझे पेशाब, पसीने, कूड़े और फिनाइल की तेज़ गंध महसूस हुई. खुले कॉरिडोर के दोनों तरफ़ मरीज़ लेटे थे और उनके परिजन पानी, रोशनी और हाथ-पंखों की व्यवस्था करने में व्यस्त थे.

पीने के पानी, साफ़ शौचालयों, पंखों और बिस्तरों जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसता मुज़फ़्फ़रपुर का यह मेडिकल कॉलेज रात के इस पहर शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल की बजाय एक बदबूदार भूतिया खंडहर लग रहा है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन तक, सभी मुज़फ़्फ़रपुर का दौरा कर चुके हैं, लेकिन जनता को कोरे वादों और आश्वासनों के सिवा कुछ नहीं मिला है.

यहां तक कि इनसेफ़िलाइटिस जैसी गम्भीर बीमारी के मरीज़ों से भरे इस पूरे अस्पताल में पीने के साफ़ पानी का एक भी चालू वाटर प्वाइंट नहीं है. इस बारे में सवाल पूछले पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने बीबीसी से कहा, "यह छोटे-मोटे मुद्दे अस्पताल प्रबंधन की ज़िम्मेदारी हैं."

मुजफ्फरपुर
BBC
मुजफ्फरपुर

खोखले वादे

उधर, अस्पताल के खस्ताहाल प्रशासनिक प्रबंधन के बारे में पूछने पर मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुनील शाही कोई सीधा जवाब ही नहीं देते. बल्कि सिर्फ़ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के हाल ही में किए गए दौरों का ब्योरा गिनाते हैं.

"मुख्यमंत्री जी ने मुज़फ़्फ़रपुर मेडिकल कॉलेज के कैम्पस में फ़ेज वाइज़ 1500 बिस्तरों का एक नया अस्पताल बनाए जाने की घोषणा की है. साथ ही भारत सरकार द्वारा एक अत्याधुनिक पीआईसीयू (पेडरियाटिक इंटेस्टिव केयर यूनिट) बनवाने की घोषणा कर दी गयी है. इतना ही नहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने बिहार सरकार से यह वादा लिया है कि हम यह नए अस्पताल अगले साल अप्रैल से पहले बनवा के तैयार कर लेंगे."

लेकिन प्रशासन की इन घोषणाओं से लेकर बिहार सरकार की ओर से घोषित किए गए चार लाख रुपये के मुआवज़े तक, कुछ भी रोहित के माता-पिता और उनकी दादी के दुख कम नहीं कर पा रहे हैं.

मुजफ्फरपुर
BBC
मुजफ्फरपुर

सबकुछ ठीक था पर अचानक...

रोहित की मृत्यु के अगले दिन हम परिवार से मिलने उनके गांव राजापुनास पहुंचे. 1500 घरों वाले इस गांव के मल्लाह टोले में रहने वाले अनिल, दो कच्चे कमरों की झोपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते हैं. उनके चार बच्चों में रोहित सबसे छोटा था.

बच्चे को याद करते हुए पिता अनिल कहते हैं, "जिस रोज़ वह बीमार पड़ा, उसकी पिछली रात गांव में भोज था. बाल-वाल बना के कपड़ा पहन के भोज खाने गया था. रात को सोया तो छटपटाने लगा. बार-बार पानी माँगता था. फिर बोला कि कपड़ा निकाल दो, तो इनकी माँ को लगा कि बाबू को गर्मी लग रही होगी. इसलिए हमने कपड़े उतार दिए. फिर ठीक से सो गया. सुबह उठा तो बोला भूख लगी है. इससे पहले की माँ परसती, ख़ुद ही माड़-भात थाली में निकाल के खाने लगा. एक दो चम्मच खाया होगा और उसका पेट चलने लगा."

बच्चे के कपड़ों की पोटली खोलते हुए माँ सुधा कहती हैं, "पहले पड़ोस के डॉक्टर के पास ले गए तो उन्होंने कहा कि आज पुर्ज़ा नहीं काटेंगे (नहीं देखेंगे) क्योंकि आज हड़ताल है. आगे भी दो और डॉक्टरों ने यही कहा. फिर हम इसे लेकर सदर अस्पताल पहुंचे. वहां डॉक्टरों ने पानी टांगा और सुई लगाई. सुई लगाते ही बाबू का बुखार बढ़ने लगा."

इसी बीच शोक गीतों में डूबी रोहित की दादी को चुप करवाते हुए बच्चे के पिता अनिल आगे कहते हैं, "एकदम चमक पड़ना शुरू हो गया था. हम पकड़ के रखे थे उसे लेकिन फिर भी पूरा शरीर उठा-उठा कर पटक रहा था. हाथ-पैर सब फेंक रहा था."

"डॉक्टरों ने तीन बार वार्ड और सुइयाँ बदली लेकिन लड़के की हालत बिगड़ती रही. फिर 6 घंटे बाद उसे मेडिकल कॉलेज रेफ़र कर दिया. यहां एक घंटे के भीतर उसके प्राण निकल गए."

बच्चों की मौतों के पीछे की वैज्ञानिक तफ़सील

मुज़फ़्फ़रपुर के वरिष्ठ पीडियाट्रिशियन डॉक्टर अरुण शाह बताते हैं कि बच्चों की मौतों के इस सिलसिले के पीछे ग़रीबी और कुपोषण असली वजह है.

बीबीसी से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा, "2014 से लेकर 2015 तक मैंने डॉक्टर मुकुल दास, डॉक्टर अमोध और डॉक्टर जेकब के साथ मिलकर इस बीमारी की छान-बीन की. हमने पाया कि बच्चों को यह परेशानी न तो किसी वायरस से हो रही है, न बैक्टीरिया से और न ही इंफ़ेक्शन से."

"दरअसल इस बीमारी का स्वभाव मेटाबोलिक है इसलिए हमने इसे एक्यूट हाइपोग्लाइसिमिक इनसेफिलोपिथी (एएचई) कहा. एएचई के लक्षणों में बुखार, बेहोशी और शरीर में झटके लग कर कंपकंपी छूटना शामिल है."

मुजफ्फरपुर चमकी बुखार
BBC
मुजफ्फरपुर चमकी बुखार

एएचई का शिकार होते बच्चों को समाज के सबसे ग़रीब तबके से आने वाला बताते हुए डॉक्टर शाह जोड़ते हैं, "लम्बे वक़्त तक कुपोषित रहने वाले इन बच्चों के शरीर में रीसर्व ग्लाइकोज़िन की मात्रा भी बहुत कम होती है. इसलिए लीची के बीज में मौजूद मिथाइल प्रोपाइड ग्लाइसीन नामक न्यूरो टॉक्सिनस जब बच्चों के भीतर एक्टिव होते हैं तब उनके शरीर में ग्लूकोज की कमी से एक ख़ास क़िस्म की ऐनोरोबिक एक्टिविटी शुरू हो जाती है. इसे क्रेब साइकिल कहते हैं. इसी की वजह से ग्लूकोज बच्चे के दिमाग़ तक प्रचुर मात्रा में नहीं पहुँच पाता और दिमाग़ के डेड हो जाने का ख़तरा बढ़ जाता है."

लेकिन डॉक्टर अरुण शाह लीची को बच्चों की मौतों के लिए ज़िम्मेदार नहीं मानते. बल्कि कुपोषण को इस त्रासदी के पीछे का बड़ा कारण बताते हुए कहते हैं, "2015 में इन मौतों को रोकने के लिए हमने एक पॉलिसी ड्राफ़्ट करके बिहार सरकार को दी थी. उस पॉलिसी में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिज़र (एसओपी) का ज़िक्र था."

"उस एसओपी में हमने सीधे-सीधे कहा था कि आशा कार्यकर्ता अपने गांव के हर घर में जाकर लोगों को यह बताए की ग़र्मी के दिनों में वह बच्चों को लीची खाने से रोकें, उन्हें पोषित आहार दें और कभी भी ख़ाली पेट न सोने दें."

मुजफ्फरपुर चमकी बुखार
BBC
मुजफ्फरपुर चमकी बुखार

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति

बच्चों को मौत के मुँह से बाहर लाने में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका की ओर इशारा करते हुए डॉक्टर शाह कहते हैं, "हमने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि हर प्राथमिक स्वास्थ केंद्र में ग्लूकोमीटर होना चाहिए."

"ताकि डॉक्टर बच्चों के शरीर में मौजूद ग्लूकोज का स्तर तुरंत नाप सकें और ग्लूकोज कम होने पर तुरंत ड्रिप लगा सकें. ऐसा प्राथमिक उपचार मिलने पर बच्चों के ठीक होने उम्मीद बढ़ जाती है. लेकिन बिहार सरकार यह एसओपी लागू करवाने में पूरी तरह से असफल रही."

राजपुनास नाम के जिस गाँव में रोहित बड़ा हुआ था वहां का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पिछले 15 सालों से बंद पड़ा है. गाँववासियों ने बताया कि डॉक्टर और ग्लूकोमीटर की बात तो दूर, आज तक अस्पताल आम लोगों के लिए खुला ही नहीं.

मुजफ्फरपुर
BBC
मुजफ्फरपुर

वहीं, रोहित के गांव राजापुनास से कुल एक घंटे की दूरी पर बसे खिवाइपट्टी गांव में रहने वाली 5 साल की अर्चना को अस्पताल तक पहुँच पाने की मोहलत भी नहीं मिली. रात को बिना खाए सो गयी इस बच्ची ने सुबह शरीर में पड़ रही चमक के सामने 15 मिनट में ही दम तोड़ दिया.

मासूम सी दिखने वाली अर्चना की तस्वीर हाथ में लिए उनकी माँ सिर्फ़ रोती हैं.

बग़ल में बैठी चाची सरवती देवी बताती हैं, "सुबह उठी तो पसीने में भीगी हुई थी. उठी और उठकर फिर सो गयी. इसकी माँ नहा कर आयी तो बेटी को उठाने लगी. फिर देखा की अर्चना के तो दाँत लग गए हैं. उसके दांत उसके मुँह में ही जैसे चिपक कर जम गए थे."

"हमने दांत खोलने की कोशिश की लेकिन बार-बार दाँत फिर से कड़े होकर बैठ जाते. इसके बाद उसका शरीर थरथराने लगा. फिर वो काँपने लगी और ऐसे काँपते-काँपते हमारी गोद में ही पंद्रह मिनट के भीतर उसके प्राण निकल गए."

मुज़फ़्फ़रपुर का आसमान अभी भी एक कभी न बुझने वाली भट्टी की तरह आग उगल रहा है. बच्चों की मौत का आंकड़ा अब भी बढ़ता जा रहा है.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Muzaffarpur: Who is taking down the innocent misgovernment or Encephalitis?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X