यूपी के इस गांव में मुस्लिमों को कब्र के लिए नहीं मिली रही दो गज जमीन, घरों में ही दफन हो रहे हैं मुर्दे
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नई दिल्ली- 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कब्रिस्तान और श्मशान का मुद्दा खूब उछला था। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई चुनावी रैलियों में इसे जोर-शोर से उठाया था। उस चुनाव में राज्य में बीजेपी को बहुत बड़ी जीत मिली और वहां करीब ढाई साल से योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में सरकार चल रही है। लेकिन, आज भी वहां के कुछ इलाकों में यह बड़ी समस्या बनी हुई है। खासकर मुसलमानों को मौत के बाद दो गज जमीन भी नसीब नहीं हो पा रही है। इसकी सबसे बड़ी मार भूमिहीन मुसलमानों को भुगतनी पड़ रही है। इसके चलते उन्हें अपने छोटे से घरों में ही मृत परिजनों को दफनाने के अलावा कोई उपाय नहीं रह गया है।
घरों में ही बनाना पड़ रहा है कब्रिस्तान
आगरा जिले के अचनेरा ब्लॉक के छह पोखर गांव के कुछ मुस्लिम परिवारों की हालात किसी भी इंसान को अंदर से झकझोर कर रख देगी। यहां पर कुछ परिवारों ने अपने घरों में ही एक नहीं कई-कई परिजनों के शव दफना रखे हैं। आलम ये है कि कोई कब्र के पास ही खाना बनाता है, तो कुछ उसी के ऊपर बैठकर खाना खाते हैं। वे खुशी से ऐसा नहीं करते। उन्हें अपने पूर्वजों के कब्रों पर इस तरह का काम करना बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है। उन्हें लगता है कि वह अपने मृत परिजनों का अपमान कर रहे हैं। लेकिन, वो करें भी तो क्या करें? उनके पास कोई चारा नहीं है। क्योंकि, गांव में मुर्दों को दफनाने के लिए कोई सार्वजनिक जगह ही उपलब्ध नहीं है।
कैसे शुरू हुआ घरों में कब्र खोदने का सिलसिला?
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक लोकल एडमिनिस्ट्रेशन ने कब्रिस्तान के लिए वहां के लोगों को एक तालाब अलॉट किया था। इसके बाद से ही गरीब परिवार अपने घरों में ही मृतकों को दफन करने के लिए मजबूर हो गए। एक स्थानीय मुस्लिम सलीम शाह ने बयाता कि, "आप जहां बैठे हैं वह मेरी दादी की कब्र है, उनको हमने अपने बैठने वाले कमरे में दफनाया है।" एक घर में रिंकी बेगम ने बताया कि उनके घर के पिछवाड़े में 5 लोग दफन हैं, जिनमें उनका 10 महीने का एक बेटा भी शामिल है। उनकी यह तकलीफ शब्दों में बयां करना संभव नहीं है। एक और घर की महिला गुड्डी के मुताबिक, "हम जैसे गरीबों के लिए, मरने के बाद भी कोई मर्यादा नहीं है। घर में जगह की कमी के चलते, लोग कब्रों पर बैठने और चलने को मजबूर हैं। यह कितना अपमानजनक है।" बड़ी बात ये है कि ज्यादातर कब्र को पक्का नहीं बनाया गया है, जिससे कि वह ज्यादा जगह न ले सके। कब्रों को अलग करने के लिए उनपर सिर्फ अलग-अलग साईज का पत्थर डाल दिया जाता है।
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किन मुस्लिम परिवारों के घरों में है कब्र?
इस गांव में अधिकतर मुस्लिम परिवार गरीब हैं और उनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है। ये लोग ज्यादातर दिहाड़ी मजदूरी का काम करते हैं। उनका आरोप है कि कब्रिस्तान की उनकी मांग को वर्षों से नजरअंदाज किया गया है। इन गरीबों के प्रति सरकारी उदासीनता के आलम का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुछ वर्ष पहले कब्रिस्तान के नाम पर एक जमीन आवंटित की गई थी, जो कि एक तालाब के बीचों-बीच में है। बार-बार शिकायतों के बावजूद प्रशासन ने इनकी लाचारी पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। इस मुद्दे को लेकर यहां जोरदार विरोध भी हो चुका है। 2017 में मंगल खान नाम के एक शख्स की मौत पर उसके परिवार वालों ने शव को तबतक दफनाने से इनकार कर दिया था, जबतक कि गांव में कब्रिस्तान के लिए जमीन न मिल जाए। बाद में अधिकारियों ने उन्हें किसी तरह से समझा-बुझा कर तालाब के पास दफनाने के लिए राजी कर लिया था, लेकिन कब्रिस्तान का वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ। एक फैक्ट्री में काम करने वाले मुनीम खान का कहना है कि, "हम सिर्फ अपने पूर्वजों के लिए थोड़ी जमीन मांग रहे हैं। गांव के पास ही हिंदुओं के लिए एक श्मशान की जमीन है, लेकिन हम अपने मृत परिजनों के साथ रह रहे हैं।"
जिला प्रशासन को नहीं था पता?
छह पोखर के परेशान लोगों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए पास के सनन गांव और अचनेरा शहर के कब्रिस्तान में भी शवों को ले जाने की कोशिश की थी। लेकिन, वहां के लोगों ने इन्हें अपनी बेशकीमती जगह देने से मना कर दिया। क्योंकि, उन्हें भी उनकी आबादी के अनुसार जगह कम पड़ रही है। गांव प्रधान सुंदर कुमार का कहना है कि उन्होंने अधिकारियों से कई बार मुस्लिम परिवारों के लिए कब्रिस्तान की मांग की है, लेकिन इसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई। हैरानी की बात है कि जिला अधिकारी रवि कुमार एनजी कहते हैं कि उन्हें कुछ पता ही नहीं था। अब उन्होंने समस्या के निदान का भरोसा जरूर दिया है। उन्होंने कहा है कि, "मैं गांव में अधिकारियों की एक टीम भेजूंगा और कब्रिस्तान के लिए आवश्यक जमीन की डीटेल मंगवाऊंगा।"
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