मुस्लिम युवक बनने जा रहा हिंदू लिंगायत मठ का प्रधान पुजारी, जानें खास वजह
The Lingayat Math at Gadak in Karnataka, breaking old traditions, will make a Muslim youth its head priest (priest). Know who this young man? कर्नाटक में गडक स्थित लिंगायत मठ पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए एक मुस्लिम युवक को अपना प्रधान पुरोहित (पुजारी) बनाएगा। जानिए कौन हैं ये युवक और क्यों किया गया
बेंगलुरु। उत्तर कर्नाटक के गदक जिले में अगामी 26 तारीख को एक अद्भुत और नायाब इतिहास दर्ज होने जा रहा हैं। पूरे देश में जहां राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए हिंदू-मुस्लिमों के बीच दूरियां बढ़ाने का प्रयास कर रही वहीं कर्नाटक में आने वाले दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता पर एक और मिसाल दर्ज होने वाली हैं।
दरअसल कर्नाटक के गदक स्थित लिंगायत मठ पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए एक मुस्लिम युवक को अपना प्रधान पुरोहित (पुजारी) बनाने जा रहा है। आगामी 26 फरवरी को यह लिंगायत मठ पूरे विधि-विधान से 33 वर्षीय दीवान शारिफ रहमानसब मुल्ला को यह पदभार सौंपेगा। जिसकी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। आइए जानते हैं कौन हैं ये युवक और मुस्लिम संप्रदाय को होने के बावजूद इन्हें क्यों सौंपी जा रही ये जिम्मेदारी?
उत्तर कर्नाटक में स्थित है ये मठ
पहले बता दें जिस लिंगायत मठ का प्रमुख शारिफ को बनाया जा रहा है वह लिंगायत मठ उत्तर कर्नाटक के गडक जिले के आसुती गांव में हैं। इस मठ का नाम मुरुगराजेंद्र कोरानेश्वरा शांतिधाम मठ है। यह मठ कलुरुरागी के खजूरी गांव में स्थित 350 साल पुराने कोरानेश्वर संस्थान मठ से संबंधित है। चित्रदुर्ग के श्री जगद्गुरु मुरुगराजेंद्र के 361 मठों में उसकी रैकिंग है। कर्नाटक और महाराष्ट्र के अलावा इस शांतिधाम मठ के लाखों की संख्या में फालोअर हैं।
चार बच्चों के पिता हैं शारिफ, टूट जाएगी ये भी पुरातन परंपरा
33 वर्षीय दीवना शारिफ रहमानसब मुल्ला बचपन से ही 12वीं शताब्दी के समाज सुधारक बसवन्ना की शिक्षाओं से प्रभावित थे। आसुति में शिवयोगी के प्रवचनों से प्रभावित होकर शारिफ के पिता स्वर्गीय रहिमनसब मुल्ला ने गांव में एक मठ स्थापित करने के लिए दो एकड़ जमीन दान दी थी। जिस पर पिछले तीन वर्षों से मठ परिसर का निर्माण कार्य चल रहा है। शरीफ चार बच्चों के पिता हैं, हालांकि लिंगायत मठों में परिवार वाले व्यक्ति की पुजारी के तौर पर नियुक्ति भी सामान्य तौर पर नहीं होती है।
नवंबर 2019 में ली लिंगा दीक्षा
शारिफ बसवा के बताए मार्ग पर चलते हुए बसवा के दर्शन के लिए पूर्णत: समर्पित हैं। उनके पिता भी लिंगायत धर्म के सच्चे अनुयायी थे। उन्होने भी लिंगा दीक्षा प्राप्त की थी। अपने पिता के दिखाए मार्ग पर चलते हुए नवंबर 2019 को शारिफ ने भी लिंगा दीक्षा ली थी। पिछले तीन वर्षो से लगातार शारिफ लिगांयत धर्म और बासवन्ना की शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं का प्रशिक्षण प्राप्त किया हैं।
आटा चक्की से फुरसत मिलने पर लोगों को सुनाते थे भगवान शिव के वचन
शारिफ ने बताया कि वो बचपन से ही बसवा की शिक्षाओं के प्रति आकर्षित रहे। शारिफ ने बचपन में मेनासगी गांव में आटा चक्की चलाने का काम करते थे और खाली समय में बसवन्ना और 12वीं शताब्दी के अन्य भगवान शिव के अन्य साधकों द्वारा लिखे गए वचनों को लोगों को सुनाया करते थे। वे सामाजिक न्याय और सद्भभाव और सद्भभावना के अपने आदर्शो को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करेंगे। उन्होंने कहा मुरुग राजेंद्र स्वामी जी ने मेरी छोटी सेवा को पहचान लिया और मुझे अपने सानिध्य में ले लिया है। मैं बसवनना और मेरे गुरु द्वारा बताए रास्ते पर चलते हुए इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के साथ आगे बढूंगा।
मठ प्रमुख ने बतायी ये खास वजह
मठ प्रमुख ने मीडिया को दिए साक्षात्कार में कहा कि शारिफ ने पिछले तीन वर्षों तक लिंगायत धर्म और बासवन्ना की शिक्षाओं के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया गया हैं। खजूरी मठ के प्रमुख गुरुगराजेन्द्र कोरानेश्वर शिवयोगी ने कहा कि बसवन के दर्शन यूनिवर्सल हैं और हम सभी जाति और धर्म अनुययियों को अपनाते हैं। बसवा ने 12 वीं शताब्दी में सामाजिक न्याय और सद्भाव का सपना देखा था और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए मठ के सभी के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। इसी का अनुसरण करते हुए शारिफ को मठ प्रमुख बनाने का निर्णय लिया गया हैं। इससे समाज में बेहतर संदेश भी जाएगा।
समाप्त हो जाएगी ये पुरानी परंपरा
शरीफ विवाहित हैं और वह तीन बेटियों तथा एक बेटे के पिता हैं। लिंगायत मठों में परिवार वाले व्यक्ति की पुजारी के तौर पर नियुक्ति भी असामान्य ही है। शिवयोगी ने कहा, 'लिंगायत धर्म संसार (परिवार) के माध्यम से सद्गति (मोक्ष) में विश्वास करता है। पारिवारिक व्यक्ति एक स्वामी बन सकता है और सामाजिक तथा आध्यात्मिक कार्य कर सकता है।' उन्होंने कहा, 'मठ के सभी भक्तों ने शरीफ को पुजारी बनाने का समर्थन किया है। यह हमारे लिए बासवन्ना के आदर्श 'कल्याण राज्य' को बनाए रखने का मौका है।
क्या है लिंगायत संप्रदाय
लिंगायत मत भारतवर्ष के प्राचीनतम सनातन हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है। इस मत के ज्यादातर अनुयायी दक्षिण भारत में हैं। यह मत भगवान शिव की स्तुति आराधना पर आधारित है। भगवान शिव जो सत्य सुंदर और सनातन हैं, जिनसे सृष्टि का उद्गार हुआ, जो आदि अनंत हैं। हिन्दू धर्म में त्रिदेवों का वर्णन है जिनमें सर्वप्रथम भगवान शिव का ही नाम आता है। शिव जिनसे सृष्टि की उत्पत्ति हुई। इसके पश्चात भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति जो सम्पूर्ण जगत को जीवन प्रदान करते हैं। भगवान विष्णु जो सम्पूर्ण जगत के पालनहार हैं। तीसरे अंश भगवान महेश (शंकर) की उत्पत्ति जीवन अर्थात अमुक्त आत्माओं को नष्ट करके पुनः जीवन मुक्ति चक्र में स्थापित करना है। लिंगायत सम्प्रदाय भगवान शिव जो कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, चराचर जगत के उत्पत्ति के कारक हैं उनकी स्तुति आराधना करता है। आप अन्य शब्दों में इन्हें शैव संप्रदाय को मानने वाले अनुयायी कह सकते हैं। इस सम्प्रदाय की स्थापना 12वीं शताब्दी में महात्मा बसवण्णां ने की थी
बसवन्ना ने की थी इसकी स्थापना
लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं। कर्नाटक के पास के पड़ोसी राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है। लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं। इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ। इस आंदोलन का नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था। बासवन्ना यानी कर्नाटक में लिंगायत धर्म के प्रणेता।
इसलिए हुई इस संप्रदाय की स्थापना
बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे लेकिन उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया। वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे। लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था लेकिन इसकी कुरीतियों को हटाने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई।
लिंगायत संप्रदाय के लोग मूर्ति पूजा नहीं करते
लिंगायत सम्प्रदाय के लोग ना तो वेदों में विश्वास रखते हैं और ना ही मूर्ति पूजा में। लिंगायत हिंदुओं के भगवान शिव की पूजा नहीं करते लेकिन भगवान को उचित आकार "इष्टलिंग" के रूप में पूजा करने का तरीका प्रदान करता है। इष्टलिंग अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति होती है जिसे वे धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं। लिंगायत इस इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं। निराकार परमात्मा को मानव या प्राणियों के आकार में कल्पित न करके विश्व के आकार में इष्टलिंग की रचना की गई है।
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