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मुसलमान युवाओं को मध्य प्रदेश में गरबा से दूर रखने की सरकारी कोशिश?

मध्य प्रदेश के शहरों में पहचान-पत्र देखकर गरबा में एंट्री देने और मुसलमान होने पर रोके जाने की घटनाएँ किस ओर इशारा करती हैं.

By BBC News हिन्दी
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गरबा नवरात्र के दौरान होने वाला आयोजन है जिसका नाम सुनते ही आपके दिमाग़ में गुजरात का खयाल आता है, लेकिन पिछले कुछ सालों में रात में होने वाले नाच-गान के इस आयोजन की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ी है.

अब यह केवल गुजरात तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि ग़ैर-गुजराती भी इसे काफ़ी धूम-धाम से मनाने लगे हैं, ये आयोजन महाराष्ट्र में तो लंबे समय से होते रहे हैं लेकिन गुजरात के पूर्वी पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भी इन दिनों गरबा की धूम है.

गुजरात में पिछले कई वर्षों से गरबा के दौरान सांप्रदायिक तनाव की घटनाएँ अक्सर सामने आती हैं, कई जगहों पर ऐसी ख़बरें आती हैं मुसलमान युवाओं को शामिल होने से रोका गया.

इसी तरह मध्य प्रदेश की सरकार ने नवरात्र के शुरू होने से पहले ही ये स्पष्ट कर दिया था कि इन नौ दिनों के दौरान जिन स्थानों पर गरबा का आयोजन होगा, वहाँ प्रवेश बिना पहचान-पत्र के नहीं हो सकेगा.

ये सरकारी निर्देश था और इसका पालन गरबा के आयोजक कर रहे हैं. बावजूद इसके राज्य में उज्जैन और इंदौर दो ऐसे प्रमुख स्थान रहे जहां गरबा स्थल पर प्रवेश करने वाले या उसका प्रयास करने वालों को पकड़कर पुलिस के हवाले किया गया.

इस बारे में राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने प्रदेश भर के ज़िला प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए थे, जिसके बाद भोपाल, इंदौर, उज्जैन और लगभग सभी जिलों में बिना पहचान-पत्र के प्रवेश पर पाबंदी लगाई गई थी.

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कई मुस्लिम युवकों को पकड़ा गया


इंदौर और उज्जैन में लगभग 14 मुस्लिम युवकों को गरबा के आयोजन स्थलों में प्रवेश करते हुए पकड़ा गया और प्रवेश द्वार पर मौजूद कार्यकर्ताओं के साथ उनकी हलकी झड़प भी हुई. मगर इस मामले में किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया और सभी को बाद में छोड़ दिया गया.

राज्य के गृह मंत्री ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि नवरात्र के दौरान स्थापित किए गए पंडालों के पास सामान बेचने वालों पर कोई निर्देश नहीं दिए गए थे क्योंकि बाहर कोई भी अपने सामान बेच सकते हैं. सरकार का निर्देश सिर्फ़ गरबा आयोजन में प्रवेश को लेकर ही था.

समाज के कई खेमों से सरकार के इस निर्देश की आलोचना के स्वर भी उठे. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना था कि त्यौहार सब के लिए मिलजुल कर मनाने का अवसर होता है जिसकी ख़ुशियों में सबको शामिल होना चाहिए.

मगर गृह मंत्री ने इन सवालों के जवाब में कहा कि "जिसको आस्था है वो अपने अपने समाज में अलग से गरबा का आयोजन कर लें जिससे एक अच्छा संदेश भी जाएगा. लोग गरबा के आयोजन स्थलों में जा सकते हैं मगर उन्हें पहचान पत्र दिखाना होगा."

हालांकि सरकार ने अपने ज़िला अधिकारियों को अपने निर्देश में कहीं भी ये नहीं कहा कि आयोजन में मुस्लिम समुदाय के लोगों को प्रवेश न करने दें लेकिन इस आदेश को जिस तरह लागू किया गया उस पर एतराज़ जताया जा रहा है, हुआ ये कि जो लोग पहचान-पत्र लेकर गए उनमें से जो मुसलमान थे उन्हें प्रवेश करने से रोका गया, पकड़कर रखा गया और बाद में पुलिस ने उन्हें जाने को कहा.

कुछ आयोजन स्थलों पर पोस्टर भी लगाए गए- 'ग़ैर-हिन्दुओं का प्रवेश मना है.'

ये घटना इंदौर के खजराना इलाक़े की है और शनिवार की है. 'अभिव्यक्ति' नाम की संस्था ने शहर में बड़े पैमाने पर आयोजन किया था. उसी रात पास के शहर उज्जैन में भी कुछ ऐसा ही हुआ.

इंदौर की घटना के बारे में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का आरोप था, "तीन मुसलमान युवक गरबा आयोजन स्थल के गेट के पास खड़े होकर कमेंट कर रहे थे और सेल्फी ले रहे थे."

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युवकों की पिटाई का आरोप


पुलिस का कहना है कि वहाँ मौजूद कार्यकर्ताओं ने उन युवकों के पहचान पत्र देखे और उनकी पिटाई भी की. पुलिस का कहना है कि उन्होंने हस्तक्षेप किया और उन युवकों को वहाँ से बचाकर थाने ले आई. बाद में उन्हें छोड़ दिया गया.

ऐसा ही कुछ उज्जैन के माधवनगर थाना क्षेत्र के एक गरबा स्थल में भी हुआ जहां का वीडयो सोशल मीडिया में वायरल भी हुआ. इस वीडियो में कुछ युवकों को लोग पीटते हुए दिख रहे हैं, पीटने वाले लोगों को बजरंग दल का कार्यकर्ता बताया जा रहा है. यहाँ भी पुलिस ने पहुँच कर युवकों के भीड़ से बचाया और अपने साथ थाने ले गई.

लेकिन राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र के निर्देश से पहले ही प्रदेश की संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर ने ग्वालियर में पत्रकारों से बात करते हुए आरोप लगाया कि "गरबा के आयोजन स्थल लव-जिहाद का बड़ा केंद्र बन चुके हैं."

उन्होंने गरबा के आयोजकों से कहा कि वो "सतर्क रहें कि कोई अपनी पहचान छुपाकर गरबा में शामिल न हो."

इंदौर में बजरंग दल के संयोजक तनु शर्मा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उन्होंने अपने कार्यकर्ता आयोजन स्थल के प्रवेश द्वारों पर तैनात किए थे.

बातचीत के दौरान वो कहते हैं, "चाहे इंदौर की घटना हो या उजैन की, हमारे पिछले अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं इसलिए इस बार हमें ज़्यादा सतर्कता बरतनी पड़ी. सबसे ज़्यादा बड़ी चुनौती उन लोगों को चिन्हित करने की है जो हिन्दुओं जैसी वेश-भूषा में प्रवेश कर जाते हैं. जैसे हाथ में कलावा और माथे पर तिलक लगाकर जबकि वो हिंदू नहीं हैं. कई घटनाएं हुईं हैं जब हिंदू लड़कियाँ इन आयोजनों के दौरान इनके झांसे में आ जाती हैं या ब्लैकमेल और लव जिहाद का शिकार हो जाती हैं. ये वीडियो बनाते हैं और सोशल मीडिया पर डाल देते हैं. ऐसे बहुत सारे मामलों में हमें बीच में आना पड़ा."

गरबा में सभी वर्गों के लोगों के शामिल होने या नहीं होने की बात को लेकर विचार भी अलग अलग हैं. इसी दौरान 'ऑप इंडिया' पोर्टल की मुख्य संपादक नुपुर शर्मा का ट्वीट भी खूब वायरल हुआ. इस ट्वीट में उन्होंने लिखा, "मुसलामानों को गरबा से दूर रहना चाहिए." बाद में उन्होंने एक लेख के माध्यम से बताने की कोशिश की कि उन्होंने ऐसा क्यों लिखा.

उनका कहना था, "गरबा कोई नृत्य उत्सव नहीं, बल्कि एक धार्मिक आयोजन है जिसमे माँ दुर्गा के नौ रूपों की नौ दिनों तक उपासना की जाती है. उन्होंने ये भी लिखा कि नृत्य के माध्यम से ही उपासना की जाती है और जो लोग देवी की पूजा नहीं करते या जिनके धर्म में मूर्ति पूजा की अनुमति नहीं है उनका ऐसे आयोजनों में भाग लेने का कोई धार्मिक कारण नहीं हो सकता."

उनके इस ट्वीट और लेख पर बहस भी चल रही है, मध्य प्रदेश के इतिहास और संस्कृति को लेकर शोध कर रहे भोपाल के सिकंदर मलिक उनकी बातों से सहमत भी हैं. बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने गरबा जैसे धार्मिक आयोजनों में मुस्लिम युवाओं की मौजूदगी को अनुचित क़रार दिया.

https://twitter.com/unsubtledesi/status/1575485022949482498

गरबा बना बहस का मुद्दा


सिकंदर कहते हैं, "ऐसे प्रतिबंध इसलिए ही हो सकते हैं क्योंकि कुछ घटनाएँ हो चुकी हैं जहां हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के ने इस आयोजन के दौरान दोस्ती की और शादी भी कर ली. कालेज के दिनों में अपने यहाँ गरबा होता था लेकिन बड़े पैमाने पर नहीं. उसमे सब भाग लेते थे. मगर अब जब चीज़ें बदल रहीं हैं तो मुसलामानों को भी सोचना चाहिए कि बिना मतलब के किसी के धार्मिक आयोजन में ज़बरदस्ती क्यों जाना है."

सिकंदर बताते हैं कि कभी नवरात्रि ऐसे समय पर आई जब रमज़ान का महीना चल रहा था. वो कहते हैं, "अब आप बताइए कि रमज़ान में शाम को तरावी पढ़ने और इबादत करने की बजाय गरबा में इन युवकों नाचना इन मुस्लिम युवकों के लिए कितना सही है."

हालांकि जाहिद अनवर शहर के पुराने बाशिंदे हैं और वो दस वर्षों के पहले तक के दौर को याद करते हुए कहते हैं कि वो अपने मित्रों और परिवार के साथ गरबा और दुर्गा पूजा के आयोजनों में हिस्सा लेते रहे थे. लेकिन, वो कहते हैं, "अब चीज़ें बदल गईं तो हमने भी जाना छोड़ दिया. जब किसी को बुरा लगता है तो फिर ज़बरदस्ती बेइज्ज़त होने के लिए क्यों जाते हैं."

मध्य प्रदेश के कुछ और मुसलमान हैं जो मानते हैं कि इस्लाम में निराकार भगवान की कल्पना है, जहाँ देवी की उपासना या पूजा बेहद संजीदगी के साथ और धार्मिक भावनाओं के साथ हो रही हो वहाँ किसी को अपनी नाक फँसाना ठीक नहीं. आप बधाई दीजिये न घरों पर जाकर." मध्य प्रदेश की संस्कृति पर लंबे समय से काम कर रहे ध्रुव शुक्ल ने बीस से ज़्यादा किताबें लिखीं हैं. वो प्रदेश की संस्कृति और धार्मिक परम्पराओं पर लिखते आ रहे हैं.

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कम से शुरू हुई ये बहस?


बीबीसी से बातचीत के दौरान वो कहते हैं, "समस्या तब से शुरू हुई जब से गरबा का व्यवसायीकरण हो गया. गरबा मध्य प्रदेश की धार्मिक संस्कृति का हिस्सा नहीं था. ये पिछले बीस सालों में यहाँ शुरू हुआ लेकिन जब से प्रदेश के सबसे बड़े व्यावसायिक समूह ने इसका आयोजन भोपाल और इंदौर में बड़े पैमाने पर शुरू किया, तब से अब इसका चलन हर जगह हो गया."

शुक्ल कहते हैं कि गरबा के आयोजन में बाज़ार को जोड़ दिया गया और आयोजनों पर भारी भरकम टिकट लगाकर अच्छी-खासी कमाई होने लगी.

उनका कहना है कि मध्य प्रदेश में मुख्य तौर पर तीन धार्मिक पंथ ही रहे हैं. जैसे शैव, जो भगवान शिव की उपासना करते हैं और देश में फैले ज्योतिर्लिंगों में से दो मध्य प्रदेश में मौजूद हैं जो सबसे बड़े आस्था के केंद्र रहे हैं. एक उजैन में महाकाल का ज्योतिर्लिंग और दूसरा ओंकारेश्वर का ज्योतिर्लिंग. वो बताते हैं कि दूसरा पंथ 'शाक्त' पंथ है जिसमे शक्ति की देवी की पूजा और उपासना होती है जबकि तीसरा पंथ वैष्णव है जिसके मानने वाले भगवान राम और श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं.

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भोपाल स्थित भारत भवन से भी लम्बे अरसे तक जुड़े रहे ध्रुव शुक्ल ये भी कहते हैं कि प्रदेश की चार प्रमुख बोलियाँ हैं-- मालवी, निमाड़ी, बघेलखंडी और बुदेलखंडी. इन सभी भाषाओं की लोक गाथाओं में भक्ति गीत गाये जाते हैं. वो बताते हैं कि ओरछा रियासत में 17वीं शताब्दी में 'राम राजा' का मंदिर बना है जिस पर लोगों की आस्था है. इन इलाकों में आज भी भगवान राम को 'भगवान् नहीं बल्कि अपना राजा माना जाता है.' उनके अनुसार मध्य प्रदेश में ज़्यादातर हिंदू धर्म के अनुयायी सतना मैय्या, शीतला माता और शारदा माता की ही पूजा करते आए हैं.

भोपाल के जाने-माने वयोवृद्ध राजेंद्र कोठारी कहते हैं कि जिस तरह पंजाब में भांगड़ा का व्यवसायीकरण हुआ, उसी तरह राजस्थान के घूमर और गरबा का भी व्यवसायीकरण हो गया है.

वो बताते हैं, "मेरा जन्म इंदौर में हुआ है. हमारे यहाँ उस समय तीन प्रमुख त्यौहार थे-एक राखी, दूसरा गणेश चतुर्थी और तीसरी होली. दशहरा भी मनाया जाता था. लोग नवरात्रों में उपवास रखते थे. ये सब कुछ बाद में शुरू हुआ. जब मैं भोपाल नौकरी करने 1965 में आया तो ये सब कुछ नहीं था."

बजरंग दल के संयोजक तनु शर्मा भी गरबा के व्यवसायीकरण की बात स्वीकार करते हैं और कहते हैं, "जब से इन आयोजनों पर टिकट लगने लगे और लोग इससे कमाने लगे, तब से धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं को किनारे हटाकर एक-एक हज़ार की टिकटें बेचीं जा रहीं है. ज़्यादा-से-ज़्यादा पैसे कमाने के लिए किसी को भी प्रवेश दिया जाता है. प्रशासन के आदेश की अवहेलना खुलेआम होते रही, इसीलिए बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने खुद ही गरबा के आयोजन स्थलों के बाहर अपने कार्यकर्ताओं को तैनात किया."

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भोपाल शहर में जहाँ मुहल्लों में गरबा का आयोजन होता है वहाँ इस तरह के कोई इंतज़ाम नहीं हैं. शाहपुरा थाने के रोहित नगर में हो रहे गरबा की आयोजकों में से एक ज्योति कहती हैं कि मुहल्लों में सब एक-दूसरे को पहचानते हैं और ज़्यादातर लोग परिवारों के साथ आते हैं, इसलिए ज़्यादा परेशानी नहीं होती.

उसी तरह कुछ एक शैक्षणिक संस्थाओं में जो गरबा होता है वो छात्रों तक सीमित रहता है, चाहे वो किसी भी धर्म के हों. बाहर से किसी को इसमें भाग लेने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा जाता है. बावड़िया कलां के एक स्कूल ने भी गरबा का आयोजन किया. मगर उन्होंने पास दिए जो छात्र और उनके अभिभावकों के लिए ही थे.

वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीक्षित मौजूदा राजनीतिक हालात को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं. उनका कहना है कि जब से धार्मिक आयोजनों में राजनीति की घुसपैठ हुई है तब से सामजिक समरसता बिगड़ने लगी है जो पहले कभी नहीं थी.

भोपाल में किसी तरह की कोई घटना रिपोर्ट न भी हुई हो मगर शहर के पुराने लोग, जो आपस में मिलकर सभी त्यौहार मनाया करते थे, उनको लगता है कि अब माहौल वैसा नहीं रह गया है, समाज में अशांति न फैले इसलिए सभी को ये सुनिश्चित करना चाहिए और वो सब न करें जिससे किसी को आपत्ति हो.

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English summary
Muslim youth away from Garba in Madhya Pradesh
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