ऐसे नवरात्र का त्योहार मनाते थे मुस्लिम शासक
बंटवारे के बाद नवरात्र को और ज़ोर शोर से मनाया जाने लगा. इससे पहले ये त्योहार प्राचीन मंदिरों में मनाया जाता था. लेकिन अब नवरात्र का त्योहार लोग अपने मौहल्लों में मनाने लगे हैं. लोग भंडारे करते हैं और ना सिर्फ भक्तों को बल्कि आस-पास से गुज़रने वाले हर व्यक्ति को खाना खिलाते हैं.
भंडारे में आम खाना नहीं होता. इसे बनाने वालों की भक्ति और भावनाएं इसे खास और अधिक स्वादिष्ट बना देती हैं. हालांकि भंडार के खाने से लोगों के पेट खराब होने के भी कुछ मामले सामने आते हैं.
हिंदू त्योहार नवरात्र देशभर में पूरी श्रद्धा से मनाया जा रहा है. डांडिया रास में डूबे युवा इसे लेकर खासे उत्साहित हैं. 10 अक्टूबर से शुरू हुआ नवरात्र 18 अक्टूबर को खत्म होगा.
1398 में जिस वक्त तैमूर ने दिल्ली पर हमला किया था, उस वक्त भी नवरात्र चल रहे थे. उस हमले से नवरात्र पर कितना असर पड़ा ये तो किसी को नहीं पता. लेकिन मुमकिन है कि इसका कुछ असर तो ज़रूर हुआ होगा.
उस वक्त कालकाजी मंदिर और झंडेवालान में बड़े स्तर पर नवरात्र मनाया जाता था.
कहा जाता है कि झंडेवाला मंदिर 12वीं शताब्दी के दौरान पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में बनाया गया था. राजा की बेटी ने इस इलाके में मंदिर का निर्माण करवाया था. तैमूर इसके 200 साल बाद दिल्ली आए थे.
मुस्लिम शासकों ने मनाए हिंदू त्योहार
तैमूर के करीब 341 साल बाद 9 मार्च 1739 को नादिर शाह ने चढ़ाई की थी. उस वक्त भी नवरात्र शुरू होने वाले थे. मोहम्मद शाह रंगीला और मुगल बादशाह का रुख़ काफ़ी धर्मनिरपेक्ष था. इन सभी मुस्लिम सम्राटों ने बसंत पंचमी, होली और दिवाली जैसे त्योहार मनाए थे.
नादिर शाह के आक्रमण के 100 साल बाद आए बहादुर शाह ज़फर, दाल और रसा (पूरियों के साथ) खाने के बहुत शौकीन थे. नवरात्र के मौके पर ये पकवान उन्हें चांदनी चौक के सेठ भेजा करते थे.
हिंदू त्योहारों में मुगल राजाओं की सहभागिता के कई ऐतिहासिक सबूत मिलते हैं. शाह आलम ने नवरात्र के मौके पर दिल्ली के कालकाजी मंदिर के पुर्रनिर्माण में मदद की थी. उनके उत्तराधिकारी अकबर शाह भी उनके नक्शे कदमों पर चले. अकबर के बेटे ने भी ऐसा ही किया. इसके बाद ब्रिटिश राज शुरू हुआ.
बंटवारे के बाद नवरात्र को और ज़ोर शोर से मनाया जाने लगा. इससे पहले ये त्योहार प्राचीन मंदिरों में मनाया जाता था. लेकिन अब नवरात्र का त्योहार लोग अपने मौहल्लों में मनाने लगे हैं. लोग भंडारे करते हैं और ना सिर्फ भक्तों को बल्कि आस-पास से गुज़रने वाले हर व्यक्ति को खाना खिलाते हैं.
भंडारे में आम खाना नहीं होता. इसे बनाने वालों की भक्ति और भावनाएं इसे खास और अधिक स्वादिष्ट बना देती हैं. हालांकि भंडार के खाने से लोगों के पेट खराब होने के भी कुछ मामले सामने आते हैं.
नवरात्र के दौरन छतरपुर में लगने वाला मेला खासा लोकप्रीय है. यहां होने वाले भंडारे में लोग लंबी-लंबी कतारे लगाए नज़र आते हैं. ये खाना हर तबके के लोगों के लिए और मुफ्त होता है.
छतरपुर के मंदिर में देवी की मूर्ती सोने की है. इसी मंदिर के पास एक और मंदिर है. कहा जाता है कि ये काफ़ी पुराना मंदिर है. कुछ लोगों के मुताबिक ये मंदिर मुस्लिम शासकों के दौर में बना था.
दिल्ली के कालकाजी मंदिर को भी ऐतिहासिक बताया जाता है, हालांकि उसके सबसे पूराने हिस्से का निर्माण 1764 और 1771 में हुआ था.
नवरात्र महोत्सव के अलावा वहां हर मंगलवार देवी काली मां के सम्मान में एक मेला भी लगता है.
झंडेवालान में भी बहुत से मंदिर हैं. यहां भी देवी का एक बहुत पुराना मंदिर है. नवरात्र के मौके पर यहां लोग भारी भीड़ में आते हैं. एक दोपहर यहां 60 हज़ार लोग आए और 12 हज़ार ने भंडारा खाया.
दिल्ली के कनोट प्लेस के नज़दीक मौजूद हनुमान मंदिर में भी मंगलवार और शनिवार को भक्तों का तांता लगता है. नवरात्र के दिनों में ब्राह्मणों और हलवाइयों की भी खूब कमाई होती है. लेकिन महंगाई और बढ़ते दामों के इस दौर में इनकी आमदनी पर भी असर पड़ा है.
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