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अयोध्या फैसला: मुस्लिम पक्ष के पास बचा है अब केवल एक रास्ता, 17 नवंबर को होगा तय

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नई दिल्ली। दशकों से लंबित और राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने शनिवार को फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया है। निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना है।

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कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को कहीं और 5 एकड़ की जमीन दी जाए। अब ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या दूसरा पक्ष इस फैसले को मानेगा या फिर नहीं। एक सावल ये भी है कि अब मुस्लिम पक्ष के सामने और कौन सा रास्ता बचता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाए।

समीक्षा याचिका पर फैसला

समीक्षा याचिका पर फैसला

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का अध्ययन कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बोर्ड के कई सदस्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं। अब बोर्ड 17 नवंबर को फैसला करेगा कि वो समीक्षा याचिका डालना चाहता है या फिर नहीं। मामले पर एआईएमपीएलबी के वकील जफरयाब जिलानी शनिवार को ये संकेत दे चुके हैं कि वह समीक्षा याचिका के साथ एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।

क्या है बोर्ड का तर्क?

क्या है बोर्ड का तर्क?

एआईएमपीएलबी के सदस्यों का सवाल ये है कि कोर्ट ने आखिर उनके पक्ष में फैसला क्यों नहीं सुनाया है। इनका तर्क है कि कोर्ट ने माना है कि 1949 में बाबरी मस्जिद के अंदर छिपकर मूर्तियां रखी गई थीं। इसके साथ ही कोर्ट इस बात को भी मान रहा है कि कानून की अवहेलना करते हुए 6 दिसंबर साल 1992 को मस्जिद को ढहाया गया था। बोर्ड का ये भी तर्क है कि उन्होंने हिंदुओं को सीता रसोई और चबुतरे पर पूजा करने से कभी मना नहीं किया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि उनके पास जमीन की कोई कमी नहीं है लेकिन वो बस न्याय चाहते हैं।

क्या है कोर्ट का फैसला?

क्या है कोर्ट का फैसला?

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित स्थल पर 1856-57 तक नमाज पढ़ने के सबूत नहीं हैं। हिंदू इससे पहले अंदरूनी हिस्से में भी पूजा करते थे। हिंदू बाहर सदियों से पूजा करते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2.77 एकड़ जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को दे दिया है। कोर्ट ने आगे कहा कि हर मजहब के लोगों को संविधान में बराबर का सम्मान दिया गया है।

40 दिनों तक चली सुनवाई

40 दिनों तक चली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने 40 दिनों तक मामले पर सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अयोध्या पर हुई सुनवाई सबसे लंबी चलने के मामले में दूसरे नंबर पर है। इससे पहले केशवानंद भारती मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली थी। अयोध्या पर फैसला लेने वाली बेंच में गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर हैं।

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English summary
only one way left for muslim personal law board, it will decide on seventeen november over ayodhya verdict.
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