एक नेक काम के लिए मुस्लिम युवक ने किया कर्फ्यू का उल्लंघन
गुवाहाटी: असम के हैलाकांडी में एक मुस्लिम ने कर्फ्यू तोड़कर सबका दिल जीत लिया। ऑटो रिक्शा चलाने वाले मुस्लिम ने गर्भवती महिला को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए कर्फ्यू तोड़ा। गर्भवती महिला प्रसव पीड़ा से गुजर रही थी। हैलाकांडी में सांप्रदायिक तनाव के चलते दो दिन पहले कर्फ्यू लगा था। रविवार को पैदा हुए बच्चे का नाम उसके माता पिता ने शांति रखा गया है। हॉस्पिटल के प्रशासक भास्कर दास ने इस घटना को हिंदू-मुस्लिम एकता का उत्कृष्ट उदाहरण बताया।
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मुस्लिम युवक ने हिंदू-मुस्लिम एकता की मिशाल पेश की
जिले के पुलिस अधीक्षक मोहनेश मिश्रा ने हैलाकांडी की उपायुक्त कीर्ति जल्ली के साथ बुधवार को रूबन दास और नंदिका के घर का दौरा किया, जो पैदा होने वाले बच्चे के माता पिता हैं। कीर्ति जल्ली ने माता पिता से मिलने के बाद कहा कि हमें ऐसे हिंदू-ंमुस्लिम एकता के उदाहरणों की और आवश्यकता है। जल्ली ने कहा कि उन्हें यह जानकर अच्छा लगा कि माता-पिता ने अपने बच्चे का नाम शांति इस उम्मीद के साथ रखा है कि हैलाकांडी में स्थायी शांति वापस आ जाएगी।
उपायुक्त ने मुस्लिम ऑटो चालक से कहा शुक्रिया
हैलाकांडी की उपायुक्त कीर्ति जल्ली ने रूबन के पड़ोसी और ऑटो रिक्शा चलाने वाले मकबूल से मुलाकात कर उनका शुक्रिया अदा किया। उन्होंने संकट के समय अपने दोस्त की मदद करने के लिए उनकी तारीफ करते हुए उन्हें बधाई दी। शुक्रिया को सांप्रदायिक तनाव के दौरान पुलिस की फायरिगं में एक व्यक्ति की जान चली गई थी और कम से कम 15 लोग घायल हो गए थे। इस सांप्रदायिक हिंसा में 15 ले अधिक वाहनों को नुकसान पहुंचा जबकि 12 दुकानों में तोड़ फोड़ की गई। इस हिंसा में शहर के कुछ इलाकों में आग भी लगा दी गई। इसके बाद अधिकारियों को जिले में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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रूबन को नहीं मिली मदद
कर्फ्यू लगने के दो दिन बाद रूबन ने अपने अपने करीबी ओर प्रिय लोगों को मदद के लिए बुलाया। प्रसव पीड़ा का दर्द सह रही उनकी पत्नी नंदिता को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस की आवश्यकता थी। रूबन ने बताया कि मैंने अपनी पत्नी को यह कहते हुए शांत करने की कोशिश कर रहा था कि कोई हमें हैलाकांडी शहर में अस्पताल ले जाएगा। उनके गांव राजेश्वरपुर से एस के रॉय सिविल अस्पताल कुछ किलोमीटर दूर है। लेकिन कर्फ्यू प्रभावित क्षेत्र में उनकी मदद के लिए कोई नहीं आया और इस बीच नंदिता का दर्द बढ़ गया। तब रूबन के दोस्त मकबूल ने उनके दर्द को समझा और अपने ऑटो-रिक्शा के साथ उनके निवास पर पहुंचे। मकबूल ने बताया कि जैसे जैसे वह सुनसान सड़कों में तेज गति से आटो चला रहा था, केवल एक ही चीज उसे सता रही थी कि क्या वह हॉस्पिटल सही समय पर पहुंच जाएगा। मैने उन्हें समझाने की कोशिश की सब सही होगा। लेकिन मैं खुद प्रार्थना कर रहा था। उन्होंने नंदिता को सही समय पर हॉस्पिटल पहुंचाया और लगभग 5.30 बजे उन्होंने एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया। दोनों दोस्तों ने ये जानकर राहत की सांस ली कि मां और बच्चे दोनों की हालत ठीक है।
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