इराक में भगवान राम और हनुमान की 4200 वर्ष पुराने भित्तिचित्र मिलने का दावा
नई दिल्ली। कुछ दिनों पूर्व भारतीय प्रतिनिधिमंडल इराक के दौरे पर गया था, जहां पर उसे कुछ ऐसे भित्तिचित्र देखने को मिले हैं, जोकि चर्चा का विषय बन गए हैं। प्रतिनिधिमंडल का दावा है कि उसे भगवान राम की छवि का भित्ती चित्र देखने को मिला है। अयोध्या शोध संस्थान ने भी दावा किया है कि यह भित्तिचित्र भगवान राम की छवि है जोकि दरबंद-ई-बेलुला चट्टान में बनी है। यह इलाका इराक के होरेन शेखान में आता है। यहां एक पत्थर पर नंगी छाती वाले राजा को दर्शाया गया है, जिसके हाथ में धनुष और तीर भी है, इसके अलावा उनके पास एक तरकश और कमर में पट्टे में एक खंजर भी देखने को मिलता है।
प्रतिनिधि मंडल ने किया था दौरा
यही नहीं इस भित्तिचित्र पर बने राजा की हथेलियों पर बनी एक छवि नजर आती है, जिसके बारे में अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि यह भगवान हनुमान की छवि है। वहीं इस भित्तिचित्र के बारे में इराक का कहना है कि यह छवि पहाड़ी जनजाति के मुखिया टार्डुनी की है। बता दें कि इराक में भारतीय राजदूत प्रदीप सिंह राजपुरोहित की अगुवाई में भारत का एक प्रतिनिधिमंडल यहां गया था। इसके लिए संस्कृति विभाग के अंतर्गत आने वाले अयोध्या शोध संस्थान ने अनुरोध किया था, जिसके बाद उसे यहां जाने की अनुमति दी गई थी।
सिंधू
घाटी
और
मेसोपोटामिया
संस्कृति
के
बीच
संबंध
एब्रिल
वाणिज्य
दूतावास
के
एक
भारतीय
राजनयिक,
चंद्रमौली
कर्ण,
सुलेमानिया
विश्वविद्यालय
के
इतिहासकार
और
कुर्दिस्तान
के
इराकी
राज्यपाल
भी
इस
अभियान
में
शामिल
होने
के
लिए
पहुंचे
थे।
इस
पूरी
खोज
के
बारे
में
अयोध्या
शोध
संस्थान
के
निदेशक
योगेंद्र
प्रताप
सिंह
का
कहना
है
कि
बेलुला
दर्रे
में
यह
निशान
भगवान
राम
के
प्रत्यक्ष
प्रमाण
हैं
और
यह
इस
बात
की
पुष्टि
करते
हैं
कि
भगवान
राम
सिर्फ
कहानियों
में
नहीं
हैं।
इस
दौरान
भारतीय
प्रतिनिधिमंडल
भारत
और
मेसोपोटामिया
की
संस्कृतियों
के
बीच
संबंध
को
दर्शान
वाले
प्रमाण
को
भी
इकट्ठा
किया
है।
इराक
के
इतिहासकारों
ने
किया
इनकार
हालांकि
एक
तरफ
जहां
भारत
के
जानकार
इस
मूर्ति
को
भगवान
राम
और
हनुमान
की
बता
रहे
हैं
तो
वहीं
दूसरी
तरफ
इराक
के
इतिहासकारों
की
राय
इससे
बिल्कुल
जुदा
है।
उनका
कहना
है
कि
यह
एक
आदिवासी
जनजाति
के
राजा
की
छवि
है।
भारत
की
ओर
से
इस
खोज
पर
शोध
की
अनुमति
मांगी
गई
है।
अनुमति
मिलने
के
बाद
तमाम
कड़ियों
को
जोड़ने
की
कोशिश
की
जाएगी,
जिससे
कि
यह
साबित
हो
सके
कि
यह
भगवान
राम
की
छवि
है।
वहीं
योगेंद्र
सिंह
का
कहना
है
कि
सिंधु
घाटी
और
मेसोपोटामिया
की
सभ्यता
के
बीच
संबंध
स्थापित
करने
की
ओर
यह
पहला
आधिारिक
प्रयास
है।
ये
भारत
से
आए
थे
योगेंद्र
सिंह
का
कहना
है
कि
लोअर
मेसोपोटामि
पर
4500
और
1900
ईसा
पूर्व
केक
बीच
सुमेरियों
का
राज
था।
इस
बात
के
साक्ष्य
हैं
कि
ये
लोग
भारत
से
आए
थे
और
आनुवंशिक
रूप
से
ये
लोग
सिंधु
घाटी
की
सभ्यता
से
जुड़
थे।