मां के जुझारूपन ने बनाया मनु को बेमिसाल शूटर
हरियाणा के झज्जर ज़िले के गोरिया गांव से लगभग 10,375 किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में जब मनु भाकर ने शूटिंग का स्वर्ण पदक जीता, उस वक़्त घर पर उनकी मां पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा ले रही बेटी के बेहतर प्रदर्शन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थीं.
मनु के पिता राम किशन मर्चेंट नेवी के रिटायर्ड अधिकारी हैं. वह अपनी पत्नी सुमेधा भाकर के साथ
हरियाणा के झज्जर ज़िले के गोरिया गांव से लगभग 10,375 किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में जब मनु भाकर ने शूटिंग का स्वर्ण पदक जीता, उस वक़्त घर पर उनकी मां पहली बार राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा ले रही बेटी के बेहतर प्रदर्शन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही थीं.
मनु के पिता राम किशन मर्चेंट नेवी के रिटायर्ड अधिकारी हैं. वह अपनी पत्नी सुमेधा भाकर के साथ मिलकर अपने गांव में एक प्राइवेट स्कूल चलाते हैं.
मनु अपने माता-पिता की दूसरी संतान हैं. उनके बड़े भाई का नाम निखिल है. मनु खेल के साथ-साथ पढ़ाई में भी अव्वल हैं.
उनकी मां सुमेधा मनु के जन्म के वक़्त को याद करते हुए बताती हैं, ''साल 2002 में जब मनु का जन्म हुआ, उस समय मैं संस्कृत की परीक्षा दे रही थी. मनु सोमवार की सुबह 4 बजकर 20 मिनट पर पैदा हुई और उसी दिन सुबह 10 बजे मुझे परीक्षा देनी थी.''
ऐसी हालत में डॉक्टर ने सुमेधा को डिस्चार्ज करने से इनकार कर दिया था, लेकिन बाद में सुमेधा की बहन ने डॉक्टर को काफ़ी देर तक मनाया और वह परीक्षा दे सकीं.
सुमेधा कहती हैं, ''मैं देख रही थी कि मेरी बहन परीक्षा प्रभारी के पैर पकड़ रही थी. परीक्षा प्रभारी मेरी हालत देखकर हैरान थे. इस तरह मैंने अपने 6 विषयों की परीक्षा कार में सफ़र के दौरान सोते हुए पूरी की.''
वह मनु को अपने परिवार का गौरव बताती हैं और कहती हैं कि मनु ने जन्म के वक़्त भी उन्हें परेशान नहीं किया. जब वे परीक्षा देने जातीं तो मनु ने कभी भी रोकर उनके सामने मुश्किलें खड़ी नहीं की.
मनु नाम क्यों रखा?
मनु की मां कहती हैं कि मैंने अपनी बेटी का नाम झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के बचपन के नाम पर रखा क्योंकि उसे देखने पर मुझे उन्हीं का ध्यान आता था.
वह कहती हैं, ''मुझे कभी भी कोई चीज़ थाल में सजाकर आसानी से नहीं मिली, और यह हरियाणा के रूढ़ीवादी समाज में सभी महिलाओं के साथ होता है. मेरी शादी जल्दी ही हो गई थी, लेकिन उसके बाद भी मैंने पढ़ाई जारी रखी और बीएड/एमएड तक पढ़ाई की. मैं इस मामले में बड़ी ही ज़िद्दी किस्म की थी. जो भी मेरे रास्ते में रोढ़े अटकाता, चाहे वह घर के भीतर का हो या बाहर का, मैंने उनका सामना किया.''
सुमेधा बताती हैं कि उनकी बेटी ने भी उनके संघर्ष और अनुशासन से प्रेरणा ली. वह कहती हैं, ''मैंने आज दोपहर करीब 12 बजे मनु से फ़ोन पर बात की और उसे कहा कि उसे बाकी लड़कियों के लिए खेल और पढ़ाई के रास्ते तैयार करने हैं.''
घर में पढ़ने-लिखने का माहौल
मनु का परिवार झज्जर और रेवाड़ी ज़िले की सीमा पर पड़ने वाले गोरिया गांव में रहता है. इस गांव में जाटों और अहिर समुदाय के लोग अधिक हैं. उनका गांव राजस्थान से 80 किलोमीटर की दूरी पर है.
इस गांव में कुल 3500 वोट हैं और यहां की सरपंच एक दलित महिला नीरज देवी हैं.
मनु के दादा स्वर्गीय सुबेदार राजकरण भारतीय सेना में थे और वह कुश्ती के लिए भी जाने जाते थे.
मनु के पिता राम किशन भाकर कहते हैं कि उनके परिवार की शुरुआत से ही गांव में अच्छी पढ़ाई-लिखाई को लेकर अलग पहचान रही है.
वह कहते हैं, ''हम पांच भाई और एक बहन हैं और सभी ने अच्छे संस्थानों से अपनी पढ़ाई पूरी की. गांववाले हमें हमारी अच्छी पढ़ाई-लिखाई के लिए जानते हैं लेकिन मनु ने कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर हमारी पहचान के दायरे को बदल दिया है.''
जब मनु ने पहली बार पकड़ी शूटिंग गन
मनु के पिता बताते हैं कि मनु डॉक्टर बनना चाहती थी और वह टेनिस, ताईक्वांडो जैसे खेल खेला करती थी, लेकिन दो साल पहले उसने शूटिंग के लिए बंदूक उठाई और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
वह दो साल पुराने दिन को याद करते हुए बताते हैं कि मनु ने शूटिंग गन उठाई और फिर सभी खिलाड़ियों और कोच को हैरान करते हुए उन्होंने 10 में से 10 सटीक निशाने लगाए.
वह कहते हैं कि यह तो अच्छा है कि जिस स्कूल में मनु पढ़ती है वहां शूटिंग रेंज है. अगर ऐसा नहीं होता तो उनके गांव से 100 किलोमीटर दूर-दूर तक भी कोई शूटिंग रेंज नहीं है.
मनु के पिता ने कॉमनवेल्थ खेलों में उनकी कामयाबी पर खुशी जताई साथ ही उन्होंने कहा कि वे अब मनु को ओलिंपिक खेलों में पदक जीतते हुआ देखना चाहते हैं.
भाकर परिवार जिस स्कूल को चलाता है वह सीबीएसई बोर्ड का अंग्रेजी माध्यम का स्कूल है. इस स्कूल में तीरंदाज़ी, कब्बडी और बॉक्सिंग की सुविधाएं हैं. इसी वजह से झज्जर और आसपास के कुछ ज़िलों के क़रीब 200 बच्चे यहां पढ़ने आते हैं, साथ ही अपनी खेल से जुड़ी संभावनाओं को भी निखारते हैं.
सात-आठ घंटे ही रहती है बिजली
गोरिया गांव में जाने के लिए कच्चे रास्तों और बहुत सी गलियों से होकर गुज़रना पड़ता है. गांव की शुरुआत में ही गोबर से बने उपले देखने को मिल जाते हैं. रास्ते में भेड़ें, गाय और भैंस भी होती हैं.
मनु के घर के बाहर उनके परिवार वालों के साथ-साथ गांव के तमाम लोग उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए मौजूद हैं.
दोपहर के दो बजे चिलचिलाती धूप में महिलाओं ने घाघरा-कुर्ती और सलवार-कमीज़ पहनी हुई है. सिर पर लंबा घूंघट डाले ये महिलाएं पानी की लाइन में खड़ी हैं.
गांव की सरपंच नीरज देवी के पति सतीश कुमार कहते हैं कि यह कोई पहली बार नहीं है जब गांव के बच्चों ने गांव का नाम चमकाया हो. उनके गांव से आईएएस और सेना में अफसर भी निकले हैं.
वह बताते हैं कि साल 2010 में गांव के दो लड़के रणबीर और दीपक आईएएस के लिए चुने गए और हाल ही में एक लड़की सुनैना भाकर सेना में लेफ़्टिनेंट के पद पर चुनी गईं.
इसके अलावा मनु की ही क्लास में पढ़ने वालीं युक्ता भाकर ने राष्ट्रीय शूटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता है.
सतीश कुमार कहते हैं कि उनके गांव के हर घर में कोई न कोई मनु भाकर मौजूद है.
गांव के प्राइवेट स्कूल में मनु के साथ गांव के लगभग 70 लड़के-लड़कियां रोज़ाना शूटिंग का अभ्यास करते हैं.
झज्जर ज़िले में साल 2011 के दौरान बाल लिंग अनुपात 774 था, लेकिन दिसंबर 2017 में यह अनुपात बढ़कर 920 तक पहुंच गया है.
राकेश कुमार बताते हैं कि गांववालों ने साल 2008 में इंदिरा गांधी सुपर थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए अपनी जमीनें दी थीं. पूर्व में कांग्रेस सरकार ने 24 घंटे बिजली देने का वायदा भी किया था लेकिन अभी भी उनके गांव में मुश्किल से सात से आठ घंटे ही बिजली आ पाती है.