परिवार में सुलह की कोशिशों में मुलायम क्यों हो रहे हैं नाकाम? जानिए
नई दिल्ली- समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव की अपने कुनबे को एकजुट करने की अबतक की सारी कोशिशें नाकाम होती दिख रही हैं। लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी और आरएलडी गठबंधन की नाकामी के बाद मुलायम अपने परिवार में सुलह कराना चाहते हैं। लेकिन, भाइयों और चाचा-भतीजों के बीच की सियासी तल्खी इतनी गहरी हो चुकी है कि फिलहाल बुजुर्ग मुलायम को कोई रास्ता निकलते नहीं सूझ रहा है। अभी तक की स्थिति को देखकर लग रहा है कि अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव आगे भी अकेले चलने का मूड बना चुके हैं।
कई बैठकें कर चुके हैं मुलायम
खबरों के मुताबिक परिवार में सुलह कराने के लिए मुलायम सिंह यादव दिल्ली से लेकर अपने पैतृक गांव उत्तर प्रदेश के सैफई तक में बेटे एवं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और भाई एवं प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल यादव को अलग-अलग बिठाकर कई दौर की बैठकें कर चुके हैं। लेकिन, अबतक उनके प्रयासों का नतीजा कुछ नहीं निकला है। दरअसल शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) पर यूपी में यादव वोटों के विभाजन का आरोप लग रहे हैं, जिसके चलते लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के फ्लॉप हो जाने के कयास लगाए जा रहे हैं।
क्या समझा रहे हैं मुलायम?
जानकारी के मुताबिक बुजुर्ग सपा नेता एवं पार्टी के संरक्षक मुलायम ने अपने बेटे अखिलेश यादव और भाई शिवपाल यादव को समझाया है कि अगर अभी भी परिवार एकजुट नहीं हुआ, तो इसके गंभीर राजनीतिक परिणाम भुगतने पड़ेंगे। जानकारी मुताबिक मुलायम ने भी कुनबे में कलह के लिए अपने चचेरे भाई और समाजवादी पार्टी महासचिव राम गोपाल यादव को जिम्मेदार माना है। दरअसल, शिवपाल समर्थकों की ओर से भी सबसे ज्यादा राम गोपाल को लेकर ही सवाल उठ रहे हैं। खबरों के मुताबिक दोनों ओर से सुलह कराने वाले लोग अभी भी कोई बीच का रास्ता निकालने के प्रयास में लगे हुए हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी में राम गोपाल यादव के रहते नहीं लगता कि शिवपाल समर्थक जरा भी समझौता करने के मूड में हैं।
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सुलह के लिए ये तर्क दिए जा रहे हैं
जानकारी के मुताबिक दोनों पक्षों से ये कहा जा रहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को रोकने की ताकत सिर्फ और सिर्फ समाजवादी पार्टी में है। यही अपने दम पर भाजपा का सामना कर सकती है। जबकि, बहुजन समाजवादी पार्टी के दिन अब लद चुके हैं। उसके लिए 2007 जैसी स्थिति पाना अब नामुमकिन है। बसपा से पिछड़े और अतिपिछड़े मुंह मोड़ चुके हैं। प्रदेश का मुसलमान आज भी सपा पर ही ज्यादा भरोसा करता है। ऐसे में अगर लोहिया और चौधरी चरण सिंह की राह पर चलने वाले समाजवादियों को एक मंच पर ले आया गया, जो बीजेपी को टक्कर दिया जा सकता है।
शिवपाल की क्या है रणनीति?
खबरें हैं कि लोकसभा चुनाव नतीजों की समीक्षा के बाद शिवपाल यादव तुरंत विधानसभा उपचुनावों की तैयारी शुरू करने वाले हैं। वो अबतक मुलायम के दबाव में पीछे हटने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की समीक्षा बैठक के बाद वो अपनी पार्टी संगठन के अलग-अलग स्तर के पदाधिकारियों के साथ आगे की कार्ययोजना बनाने की तैयारी कर चुके हैं। उनके अभी तक के मूड से साफ लग रहा है कि वो समाजवादी पार्टी में वापसी या अपनी पार्टी का उसमें विलय के मूड में एकदम नहीं हैं। शिवपाल की पार्टी में एक तबका ऐसा भी है, जिसे लग रहा है कि सपा-बसपा गठबंधन के फेल होने के बाद लोग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं।
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