MPSC:एक क्लर्क की बेटी उत्पीड़न से परेशान होकर सबसे ज्यादा नंबरों से DSP बनी
नई दिल्ली- मुंबई में बेस्ट की बसों में कंडक्टर की नौकरी से करियर की शुरुआत करने वाले एक क्लर्क पिता की बेटी ने राज्य की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में महिलाओं में सबसे ज्यादा नंबर लाकर मनचाही डीएसपी की नौकरी पाई है। ऐसी होनहार बेटी पर किस पिता को फक्र नहीं होगा। 26 साल की सविता गर्जे कई वर्षों तक दो मोर्चों पर लड़ती रही। एक से तो पूरा परिवार वाकिफ था। एक व्यक्ति की कमाई पर पांच सदस्यों वाले परिवार चलाने वाले पिता के लिए पढ़ाई का खर्च उठाना बहुत ही कठिन था। जबकि, दूसरे संघर्ष के बारे में सविता ने पहले अपने माता-पिता को भी नहीं बताया था; और जब मौका मिला तो उसने एक महिला होने के नाते उस उत्पीड़न का जवाब एक पुलिस अधिकारी बनकर दिया है।
एक क्लर्क की बेटी सबसे ज्यादा नंबरों से DSP बनी
10 दिन से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन सविता गर्जे के मोबाइल फोन पर बधाइयों का तांता लगा ही हुआ है। महज 26 साल की सविता ने महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में महिलाओं के वर्ग में सबसे ज्यादा नंबर लाकर अपने डीएसपी बनने के एक सपने को पूरा कर लिया है। अब सब यही चर्चा कर रहे हैं कि डिप्टी सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस की वर्दी पहनकर सुशील सविता कैसी दिखेगी। ब्रिहनमुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (BEST) में एक साधारण क्लर्क की बेटी और तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी इस युवती के लिए इतनी प्रतिष्ठित परीक्षा में इतने अच्छे नंबरों से सफल होना कोई आसान काम नहीं था। सविता ने जब देखा कि महिलाओं के लिए एमपीएससी में 18 फीसदी पद रिजर्व होने के बावजूद भी सिर्फ 10 फीसदी महिलाओं ने ही पुलिस अफसर बनने का विकल्प चुना है तो उसे लग गया कि उसके लिए इससे बेहतर मौका शायद दूसरा नहीं हो सकता। सविता कहती हैं, 'महिलाएं सभी क्षेत्रों में बराबरी के लिए लड़ती हैं, लेकिन जब चुनौतियों वाले रोजगार चुनने का अवसर मिलता है तो उस समय वो बचकर निकल जाती हैं। मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि वर्दी वाली नौकरी चुनने वाली महिलाओं को मनचाहा वर नहीं नहीं मिलता। मैं इसे बदलना चाहती थी।'
सविता के लिए परिवार ने भी संघर्ष किया
सविता के पिता मारुति गर्जे ने 1994 में बेस्ट में कंडक्टर के पद से नौकरी शुरू की थी। आगे चलतकर डिपार्टमेंट परीक्षाएं पास करके वो आज की तारीख में क्लर्क बनकर बेस्ट का रेकॉर्ड संभालते हैं। ऐसे में परिवार के पांच सदस्यों की जिम्मेदारी मुंबई जैसे शहर में संभालना, उनके लिए कितनी बड़े चुनौती होगी, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है। इसलिए अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए सविता को काफी संघर्ष करने पड़े हैं। उन्होंने लाइब्रेरी में जाकर पढ़ाई की है और परिवार की बड़ी बेटी होने के चलते उसने छोटे-मोटे जॉब करके भी पढ़ाई के खर्च जुटाए हैं। लेकिन, इस दौरान कई बार उन्हें उत्पीड़न का भी शिकार होना पड़ा जिसके चलते उन्हें बार-बार लाइब्रेरी भी बदलनी पड़ी। सविता के सामने मुश्किल ये थी कि वो अपनी स्थिति परिवार से शेयर भी नहीं कर सकती थीं। क्योंकि, इससे उनके माता-पिता काफी परेशान हो जाते।
पिता ने बेटी का हौसला टूटने नहीं दिया
बाद में उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने की सोची और इसके लिए 2017 में पुणे चली गई। लेकिन, पुणे में रहने पर 12,000 रुपये महीने का खर्चा आता था और इतनी रकम जुटाना पिता भर भारी पड़ रहा था। लेकिन, पिता ने पढ़ाई के लिए कभी भी बेटी का हौसला नहीं टूटने दिया। उधर, परिवार को टेंशन से बचाने के लिए सविता मुंबई में परिवार से जो कुछ छिपाती रही, पुणे में उनकी मुश्किल और बढ़ने लगी। यह उसी समय की यादें थीं, जिसने सविता को एमपीएससी के दौरान पुलिस ऑफिसर के विकल्प के लिए जोड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। पुणे की घटनाओं को याद कर उन्होंने कहा, 'जब मैंने अपनी किताबों में चिट्स देखे और शिकायत की तो मुझे ऐसे देखा गया कि मैं ही विवाद खड़ा कर रही हूं। तब मुझे महसूस हुआ कि आज भी इस समस्या के लिए महिलाओ को ही कारण माना जाता है और इसलिए मुझे लाइब्रेरी बदलते रहने पड़े। मैं उस नजरिए को बदलना चाहती थी।' यही वजह है कि मेन्स निकलते ही उन्होंने फौरन पुलिस सेवा चुन लिया।
महिलाओं के बारे में धारणा बदलना चाहती हैं सविता
सविता के गौरवांवित पिता अपनी बेटी की सफलता के बारे में कहते हैं, 'ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाने की वजह से मैं हमेशा खेद जताता हूं, लेकिन मैं नहीं चाहता था कि मेरे बच्चों के साथ भी वैसा ही हो। इसलिए मैंने अपनी बेटी को अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया, चाहे कितना भी मुश्किल क्यों न हो।' पिता से मिली इसी प्रेरणा ने सविता जैसी लड़की को संघर्ष करने का दम दिया और उसने पढ़ाई का खर्च जुटाने के लिए ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था। उसने ट्यूशन से जो भी थोड़े पैसे जुटाए उसी से एक सेकंड हैंड लैपटॉप खरीदा। आज सविता के हाथ में डीएसपी का पद आ चुका है, अब वह विदेश सेवा में जाने का भी अपना सपना पूरा करना चाहती हैं। लेकिन, जब तक वह सपना पूरा नहीं हो जाता, वह एक पुलिस ऑफिसर बनकर समाज में महिलाओं के प्रति धारणा बदलना चाहती हैं। (आखिरी तस्वीर प्रतीकात्मक)