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MP:15साल के भाजपा शासन के बाद खिला कांग्रेसी 'कमल' 15 महीने में कैसे मुरझाया?

मध्‍यप्रदेश में भाजपा के 15 साल बाद सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस सरकार में ऐसा क.्या हुआ जो 15 महीने में ही वो गिर गई? MP: How did Congress 'Kamal' fade away just in 15 months after 15 years of BJP rule?

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बेंगलुरु। मध्‍य प्रदेश में बीते कुछ दिनों से जारी सियासी संकट के लिए आज का दिन कांग्रेस के लिए काफी निराशाजनक रहा। मध्य प्रदेश की राजनीति अब किस ओर करवट लेगी उसकी तस्वीर अब सााफ हो चुकी हैं क्योंकि फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। ऐसे में मध्‍यप्रदेश में भाजपा के 15 साल के शासन के बाद जो कांग्रेस जोड़-तोड़ कर सत्ता पर काबिज हुई थी वो दिग्गज नेता ज्योतिरादित्‍य सिंधिया और उनके साथ बागी हुए 22 कांग्रेस विधायकों की बगावत के कारण ठह कर गिर गई। जिसकी सीएम कमलनाथ और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने कल्‍पना भी नही की थी। तो आइए जानते हैं जो एमपी में भाजपा की सत्ता के 15 साल के बाद कांग्रेसी कमल खिला वो महज 15 माह में ही कैसे मुरझाा गया?

kamalnath

गौरतलब हैं कि 15 महीने पहले मध्‍यप्रदेश की सियासत में जो उलटफेर हुआ वो लोग भूले नहीं हैं 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव में हार गई और मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई। तभी राजनीतिक पंडितों ने कहा कि विधानसभा चुनाव परिणाम में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ नाराजगी दिखाई थी जनता जनार्दन शिवराज के कामकाज की शैली से खुश नहीं थी। जिसका लाभ कांग्रेस को मिला और महज चंद सीटों के अंतर से वो मध्‍यप्रदेश की सत्ता कबजियानें में कामयाब हो गई।

महज चंद सीटों के अंतर से कांग्रेस ने मारी थी ये बाजी

महज चंद सीटों के अंतर से कांग्रेस ने मारी थी ये बाजी

बता दें विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 114 सीटें जीतकर बहुमत से सिर्फ दो सीटें कम थी वहीं भाजपा को 109 सीटें मिली थीं। छिंदवाड़ा के उपचुनाव में भाजपा में भाजपा ने पूरा जोर तो लगाया लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जीत हासिल की और सदन में कांग्रेसी विधायकों की संख्या 115 हो गई और भाजपा की घटकर 108 रह गई। कांग्रेस ने एक निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल को मंत्री बना रखा था, इसलिए बहुमत के लिए जरूरी 116 का आंकड़ा पाकर कांग्रेस की सरकार सुरक्षित स्थिति में पहुंच गई थी। इसके अलावा तीन और निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा के विधायक के समर्थन से सरकार के पक्ष में 122 विधायक हो गए और सरकार चलती रही।

 भाजपा के लगातार प्रयास के बाद बची रही सरकार

भाजपा के लगातार प्रयास के बाद बची रही सरकार

बता दें जब से मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने सरकार बनी थी तभी से लगातार प्रदेश भाजपा के बड़े नेता जल्द ही कांग्रेसी सरकार गिराने की कोशिश में जुटे रहे। लेकिन कमलनाथ की सरकार गिरी तो नहीं, उल्टा समय के साथ और मजबूत होती गई जब भी सदन में वोटिंग करवाने की चुनौती आइ तो कांग्रेस ने भाजपा औधें मुंह गिरा दिया। इसके बावजूद केन्‍द्र में मिले भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत से भाजपा ने मध्‍यप्रदेश में कमाल किया और तब राज्य के भाजपा नेताओं ने फिर से राज्य में कांग्रेस सरकार गिरने के संबंध में बयानबाजी आरंभ कर दी।

पूरे कार्यकाल में कमलनाथ सरकार करती रही ऐसे जोड़-तोड़

पूरे कार्यकाल में कमलनाथ सरकार करती रही ऐसे जोड़-तोड़

इन्‍हीं सब वजहों से भाजपा सदन में कमजारे पड़़ती गई उसे विधायकों की संख्या 106 रह गई जो बहुमत से दस विधायक दूर थी। वहीं कुछ बाद कांग्रेस और भाजपा के एक-एक विधायक का निधन हो गया। जिससे सदन में सदस्यों की संख्या घटकर 228 रह गई। इसमें 121 कांग्रेस के पास थे, 105 भाजपा के पास और 2 विधायक कन्‍फ्यूजन में थे तभी कांग्रेस ने फिर पलटवार किया और विधनासभा के मानसून सत्र में एक विधेयक पर वोटिंग के दौरान भाजपा के दो विधायक जिनमें नारायण त्रिपाठी और शरद कौल को अपनी तरफ ले लिया।

राज्यसभा चुनाव की घोषणा ने बिगाड़ा सारा खेल

राज्यसभा चुनाव की घोषणा ने बिगाड़ा सारा खेल

मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस सरकार सुरक्षित स्थिति में थी और सरकार को संकट में लाने के लिए भाजपा को बड़ी जोड़-तोड़ की जरूरत थी। भाजपा नेताओं के सरकार गिरने-गिराने के दावे थम गए थे। लेकिन सारा खेल राज्य सभा में 9 अप्रैल को खाली हो रही मध्‍य प्रदेश की तीन सीटों ने बिगाड़ दिया।

ज्योतिरादित्‍य को नाराज कर कांग्रेस ने अपने पैर में मार ली कुल्‍हाड़ी

ज्योतिरादित्‍य को नाराज कर कांग्रेस ने अपने पैर में मार ली कुल्‍हाड़ी

मालूम हो कि जब मध्‍यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो माना जा रहा था कांग्रेस अगर बहुमत पाकर सरकार बनाती है तो कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्‍य सिंधिया ही सीएम बनेगे। चुनाव प्रचार में ज्योतिरादित्‍य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी को जीताने की दिन रात एक कर दिया। मध्‍यप्रदेश में जो पार्टी को जीत मिली उसमें इनका खासा योगदान रहा लेकिन कांग्रेस ने उनकी बजाय कमलनाथ को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया। जिसके बाद ज्योतिरादित्‍य और उनके समर्थक विधायक नाराज हो गए और राज्य कांग्रेस दो गुटों में बंट गया।

ज्योतिरादित्य की नाराजगी को भाजपा ने किया कैश

ज्योतिरादित्य की नाराजगी को भाजपा ने किया कैश

पिछले 15 महीनों में ज्योतिरादित्‍य और उनके समर्थकों ने कई बाइ कमलनाथ सरकार पर किसानों की कर्जमाफी समेत अन्‍य मुद्दों कर कई बार हमला भी बोला और बगावती तेवर दिखाए। बात तब और बिगड़ गई जब मध्‍यप्रदेश की राज्य सभा में खाली हो रही सीट पर जिस पर ज्योतिरादित्‍य उम्मीद बांधे बैठे थे उस पर पानी फिरता नजर आया। जिसका लाभ भाजपा ने उठाया और ज्योतिरादित्‍य सिंधिया के साथ उनके खेमे के साथी विधायकों भी अपने समर्थन में ले आई और उसके बाद जो-जो हुआ वो तो हम सब देख ही रहे हैं।

भाजपा ने इसलिए खेला सारा खेल

भाजपा ने इसलिए खेला सारा खेल

बात दें विभिन्न राज्यों में एक के बाद एक विधानसभा चुनाव हारने के बाद राज्यसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या घटने वाली है, जिसके चलते अहम विधेयक पास कराने में मोदी सरकार को समस्याएं आएंगी। यही वजह है कि भाजपा एक-एक सीट जीतने के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ रही है। इन सीटों पर वर्तमान में दो पर भाजपा और एक पर कांग्रेस का कब्जा है। उक्त तीनों सीटों पर 26 मार्च को चुनाव होना है।

एक तीर से भाजपा ने साधे दो निशाने

एक तीर से भाजपा ने साधे दो निशाने

गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह ने जब 3 तारीख को भाजपा पर अपने विधायक खरीदने के आरोप लगाए तो उसी रात सरकार को समर्थन देने वाले तीन निर्दलीय, दोनों बसपा और एक सपा विधायक सहित चार कांग्रेस के विधायक भी लापता हो गए। तब कुल दस विधायकों के भाजपा के खेमे में जाने की बात कही गई। गायब हुए विधायकों में कांग्रेस के हर गुट के नेता थे। इन विधायकों के गुड़गांव और बेंगलुरु के होटलों में रुकने की पुष्टि हुई। बाद में मुख्यमंत्री कमलनाथ, उनके मंत्री और दिग्विजय सिंह की सक्रियता से सभी विधायक कांग्रेसी खेमे में वापस लौटने लगे।

सिधिंया समर्थक विधायकों के इस्‍तीफे से कांग्रेसी कमल मुरझाया

सिधिंया समर्थक विधायकों के इस्‍तीफे से कांग्रेसी कमल मुरझाया

लेकिन पिछली 10 मार्च को होली के त्योहार पर अचानक ज्योरिरादित्‍य सिंधिया ने कांग्रेस से त्याग पत्र देकर कमलनाथ सरकार को बड़ा झटका दिया और दूसरे दिन भाजपा में शामिल हो गए उनके बाद उनके समर्थक 22 कांग्रेस विधायक जो कांग्रेस सरकार में संतुष्‍ठ नही थे उन्‍होने विधानसभा में इस्‍तीफा दे दिया। आकड़ों को देखे तो कांग्रेस के पास बहुमत नज़र नहीं आ रहा था। कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफ़े के बाद पार्टी के पास अब 92 सदस्य थे। वहीं अन्य सात जिनमें समाजवादी पार्टी का एक, बहुजन समाज पार्टी के दो और निर्दलीय चार विधायक सरकार के साथ खड़े नज़र आ रहे थे। नारायण त्रिपाठी के एक वोट के सहारे भी कांग्रेस का आकड़ा 100 पर पहुंच रहा है, जो बहुमत के आंकड़े 104 से कम था। स्पीकर ने बीजेपी के शरद कोल का इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया गया था। जिसका नजीता हुआ कि और कमलाथ सरकार आखिरकार गिर गई। ऐसे में भाजपा को एक तरफ जहां राज्यसभा में मंडरा रहा संकट समाप्‍त होता दिख रहा वहीं उस मध्‍यप्रदेश राज्य की सत्ता पाने में कामयाब होती दिख रही जिस पर लगातार उसने 15 वर्षों तक राज किया था। 15 सालों बाद मध्‍यप्रदेश में खिले कांग्रेसी कमल के मुरझाने के बाद अब भाजपा का कमल वहां एक बार फिर खिल चुका हैं।

<strong>MP: फ्लोर टेस्ट से पहले कमलनाथ का इस्तीफा, बोले मेरा क्या कसूर था?</strong>MP: फ्लोर टेस्ट से पहले कमलनाथ का इस्तीफा, बोले मेरा क्या कसूर था?

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English summary
MP: How did Congress 'Kamal' fade away just in 15 months after 15 years of BJP rule?
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