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मध्य प्रदेश उपचुनाव: कांग्रेस से ज्यादा अपने इन नेताओं से डरी भाजपा, सिंधिया-विरोधी कहीं खेल ना बिगाड़ दें

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नई दिल्ली- मध्य प्रदेश विधानसभा की 28 सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं। इनमें से बीजेपी को अपनी पार्टी के विधायकों के दम पर साधारण बहुमत प्राप्त करने के लिए कम से कम 9 सीटें जीतना जरूरी है। 230 सदस्यों वाली विधानसभा में साधारण बहुमत के लिए 116 विधायक चाहिए और भाजपा के पास अभी अपने 107 विधायक हैं। यह संख्या हर हाल में प्राप्त करने के लिए पार्टी ने 4 केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव अभियान संभालने के लिए उतार दिया है। ये हैं नरेंद्र सिंह तोमर, थावर चंद गहलोत, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रह्लाद सिंह पटेल। जबकि, राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा बाकी नेता पहले से ही इस मुहिम के लिए पसीना बहा रहे हैं। इस उपचुनाव में सिंधिया का बहुत ही बड़ा रोल है। लेकिन, भाजपा में उनका एक विरोधी खेमा भी है, जिसको लेकर पार्टी को डर है कि कहीं वह सिंधिया का खेल खराब करने के चक्कर में पार्टी का ही बंटाधार ना कर दें।

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मध्य प्रदेश में जिन 28 सीटों पर 3 नवंबर को उपचुनाव होंगे, उनमें से 22 सीटें सिंधिया समर्थक विधायकों के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने से खाली हुई हैं। बाद में 3 और कांग्रेसी विधायक कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले आए और दिसंबर, 2018 में कुछ सीटों के लिए सत्ता से बेदखल हो चुके शिवराज सिंह चौहान को फिर से मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया। जबकि, 3 सीटें विधायकों के निधन की वजह से खाली हुई हैं। इन 28 सीटों में से ग्वालियर-चंबल संभाग की 16 सीटों को लेकर खूब चर्चा हो रही है, जो सिंधिया की दबदबे वाली सीटें तो मानी ही जाती हैं, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का भी यहां गढ़ रहा है। वैसे तो शुरू में तोमर भी सिंधिया-विरोधी खेमे के ही माने जाते थे, लेकिन लगता है कि फिलहाल केंद्रीय नेतृत्व ने दोनों के बीच तालमेल बिठाने में सफलता हासिल कर ली है।

वैसे इस उपचुनाव की कमान भी मैदान में मुख्यतौर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही संभाल रहे हैं। वह अपनी सरकार की नीतियों-योजनाओं और कांग्रेस के शासनकाल की कथित गड़बड़ियों को लोगों तक पहुंचा रहे हैं तो कांग्रेस नेता दिनेश गुर्जर के विवादित बयान के बहाने इमोशनल तीर भी दागे जा रहे हैं। दूसरी तरफ तोमर और बाकी सभी केंद्रीय मंत्री केंद्रीय योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जमीनी स्तर तक के लोगों को बताने की कोशिश कर रहे हैं। तोमर पर जिम्मेदारी बड़ी है और वह जमीन पर भी जोर लगा रहे हैं और दिल्ली आकर मंत्रालय से जुड़ी जिम्मेदारियों को भी निभा रहे हैं। लेकिन, पार्टी को अभी भी असल दिक्कत सिंधिया-विरोधी रहे कुछ पुराने नेताओं के चलते हो रही है, जिनकी तरफ से अज्ञात गड़बड़ी की आशंका पूरी तरह से दूर नहीं हो पा रही है।

प्रदेश बीजेपी इलेक्शन कमिटी में अभी 22 वरिष्ठ नेता शामिल हैं। इनमें तोमर के अलावा थावर चंद गहलोत, प्रह्लाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह तो शामिल हैं ही, सिंधिया विरोधी खेमे के माने जाने वाले दीपक जोशी, प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया, माया सिंह और अनूप मिश्रा भी शामिल हैं। जानकारी के मुताबिक इनमें से कई भाजपा नेताओं ने सिंधिया को भाजपा में लाए जाने का विरोध किया था और अपनी नाराजगी भी जाहिर कर दी थी। ये सारे ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अगर सिंधिया के खिलाफ भड़ास निकालने की कोशिश की तो पार्टी की भद भी पिट सकती है।

शायद यही वजह है कि केंद्रीय नेतृत्व ने चार-चार केंद्रीय मंत्रियों को काम पर लगाकर शिवराज और सिंधिया की दिक्कतों को दूर करने के लिए मास्टरस्ट्रोक लगाने की कोशिश की है। इनमें नरेंद्र सिंह तोमर ऐसा नाम हैं, जिन्होंने सिंधिया के गढ़ में मेहनत शुरू कर दी है तो पार्टी कई सारी चुनौतियां दूर हो जाने की उम्मीद कर सकती है।

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MP bypolls: BJP fears these own leaders more than Congress,anti-Scindia camp may the spoil the game
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