MP Bypoll:भाजपा के टिकट पर दलबदलुओं की जीत का चांस कितना है? पार्टी का ट्रैक रिकॉर्ड देखिए
नई दिल्ली- मध्य प्रदेश में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते कांग्रेस की कमलनाथ सरकार मार्च में सत्ता से बेदखल हो गई थी। उनके समर्थक 22 कांग्रेस विधायक, जिनमें से कई कैबिनेट मंत्री भी थे, उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, जिससे कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई। कांग्रेस ने कुर्सी बचाने के लिए सारे हथकंडे अपना लिए, लेकिन उसके विधायक इस कदर नेतृत्व से बागी हो गए थे कि पार्टी की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। भाजपा तो उसी दिन के इंतजार में बैठी थी। उसे फिर से सत्ता में बैठने का मौका मिल गया। लेकिन, भाजपा की ये सत्ता तभी बरकरार रहेगी जब विधानसभा की कुल 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भी पार्टी कम से कम आधी से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर सके। आइए देखते हैं कि अबतक दूसरी पार्टियों से जो नेता भाजपा में आकर चुनाव लड़े हैं, उनका प्रदर्शन कैसा रहा है और उससे पार्टी के प्रदर्शन पर कहां कितना असर पड़ा है?
भाजपा के टिकट पर दलबदलुओं की जीत का चांस?
मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की ओर से जो अबतक संकेत दिए गए हैं, उससे यही लगता है कि राज्य में विधानसभा की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में पार्टी कांग्रेस से आए सभी 22 पूर्व विधायकों को टिकट देगी। अब देखते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में अलग-अलग राज्यों में दूसरे दलों के जो विधायक अपनी पार्टी छोड़कर भाजपा में आए थे, उनकी जीत का ट्रैक रिकॉर्ड क्या है और उनके आने से बीजेपी को कहां और कितना फायदा या नुकसान हुआ है। मोदी 2.0 में हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली सभी विधानसभा चुनावों में दुसरे दलों के बागी बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े हैं। इसके लिए अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डाटा के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
हरियाणा-महाराष्ट्र और झारखंड में भाजपा में आए दलबदलुओं का हाल
मसलन, हरियाणा की बात करें तो बीजेपी ने दूसरे दलों से आए 14 नेताओं को टिकट दिया था, जिनमें से 5 को पिछले साल हरियाणा विधानसभा में कामयाबी मिली। हालांकि, पार्टी का अपना ओवरऑल टैली कम हो गया था। पार्टी ने जिन 14 दलबलुओं को टिकट दिया था, उनमें से 9 आईएनएलडी, दो कांग्रेस, एक-एक हरियाणा जनहित कांग्रेस-भजनलाल और शिरोमणी अकाली दल छोड़कर बीजेपी में आए थे। हालांकि, महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी में आए नेताओं की परफॉर्मेंस कहीं बेहतर रही थी। यहां पार्टी ने जिन 20 दलबदलुओं को टिकट दिया था, उनमें से 15 अपनी-अपनी सीटों से जीतने में कामयाब रहे थे। इस मायने में उनकी सफलता का प्रतिशत 75% रहा। महाराष्ट्र चुनाव से पहले 11 कांग्रेस के, 6 एनसीपी के और एक-एक शिवसेना, आएसपीएस और आरपीआई (ए) के नेता भाजपा में शामिल हुए थे। झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने दूसरे दलों से आए 17 नेताओं को अपना उम्मीदवार बनाया था। इनमें से 7 ने चुनाव में विजय हासिल की। इनमें से 11 झारखंड विकास मोर्चा के नेता थे, जिस पार्टी का बाद में भाजपा में विलय हो गया था। जबकि, 3 कांग्रेस और 3 दूसरी पार्टियों से तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी में शामिल हुए थे। लेकिन, हरियाणा में तो किसी ढंग से सरकार बच गई, लेकिन महाराष्ट्र और झारखंड में भाजपा सत्ता से पैदल हो गई।
एमपी में कर्नाटक वाली कहानी दोहरा पाएगी भाजपा ?
मध्य प्रदेश में जो स्थिति बन रही है, लगभग वो कर्नाटक से ही मिलती-जुलती स्थिति है। दोनों राज्यों में अपने ही बागियों के द्वारा विधायकी छोड़ने के चलते कांग्रेस या कांग्रेस गठबंधन वाली सरकार को गद्दी गंवानी पड़ी है। कर्नाटक में पिछले साल दिसंबर में हुए 15 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस और जेडीएस से बीजेपी में आए 13 में से 11 उम्मीदवारों ने कमल निशान पर जीत दर्ज की और इसी वजह से वहां बीएस येदियुरप्पा सरकार को सदन में पूर्ण बहुत हासिल हो पाई। वहां उपचुनाव इसलिए कराना पड़ा, क्योंकि वहां 17 विधायकों ने विधायकी छोड़ दी थी, जिनमें से 16 तत्कालीन सत्ताधारी दलों कांग्रेस और जेडीएस के एमएलए थे। एमपी में भी जिन 24 सीटों पर उप चुनाव होने हैं, उनमें से 22 सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक कांग्रेस विधायकों के विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने से खाली हुई हैं, जो अब भाजपा के प्रत्याशी बनने वाले हैं। जबकि, इस साल हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने दूसरे दलों के 5 बागियों को टिकट दिया था, जिनमें से सिर्फ एक सीट पार्टी जीत पाई और कुल 70 विधायकों वाले सदन में पार्टी के सिर्फ 8 उम्मीदवार ही जीत सके।
मोदी के पहले कार्यकाल में बीजेपी में आए बागियों की हुई बल्ले-बल्ले
लेकिन, अगर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की बात करें तो 2016 से 2018 की शुरुआत में राज्यों के जितने भी चुना्व हुए, कांग्रेस से बीजेपी में आए उम्मीदवारों की जीत का औसत काफी अच्छा था और उनमें से अधिकांश को विजय मिली थी। उदाहरण के लिए 2016 में हुए असम विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के सात बागियों को टिकट दिया और वे सारे चुनाव जीत गए। इनमें हिमांता बिस्वा सरमा भी शामिल हैं। इसी तरह 2017 में गोवा और उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव में कांग्रेस के जितने बागी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे सभी जीत गए। मणिपुर, उत्तराखंड और गुजरात का स्ट्राइक रेट तकरीबन 60 फीसदी, 87 फीसदी और 28 फीसती रहा। त्रिपुरा में तो बीजेपी में आए बागियों ने तो और कमाल कर दिया। यहां बीजेपी ने जिन 10 कांग्रेसी बागियों को टिकट दिया उनमें से 9 को जीत मिली और पार्टी ने वहां 25 साल के वामपंथी राज को खत्म कर दिया। अगर 2016 के असम विधानसभा चुनाव से लेकर 2018 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव तक को देखें तो भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के 47 विद्रोहियों को टिकट दिया, जिनमें से 36 जीतने में कामयाब रहे।
उपचुनाव के भरोसे टिकी है शिवराज सरकार
बता दें कि इस समय 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा के पास अपने 107 विधायक हैं। जबकि, कांग्रेस के पास 92 विधायक। एमपी में इस समय विधानसभा की 24 सीटें खाली हैं, जिसपर आगे उपचुनाव होने हैं, जिसके लिए तारीखों की घोषणा अभी नहीं हुई है। बीजेपी और कांग्रेस के अलावा 2 विधायक बसपा के, 1 समाजवादी पार्टी के और 4 निर्दलीय विधायक भी हैं। ऐसे में कांग्रेस के बागियों के परफॉर्मेंस पर ही शिवराज सरकार का अस्तित्व टिका हुआ है, क्योंकि अगर कांग्रेस ने उपचुनाव में उन सीटों पर पार्टी का कब्जा बरकरार रखा तो प्रदेश में फिर से एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर हो सकता है।
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