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मोटर व्हीकल एक्टः वर्ल्ड क्लास सिटी के सपने के लिए हमें भी स्मार्ट होना होगा

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बेंगलुरू। संशोधित मोटर व्हीकल कानून 2019 से पूरे देश में हाय तौबा है। कड़े ट्रैफिक नियमों और आर्थिक दंडों से हलकान वाहन चालकों की दुख भरी कहानी रोजाना सुर्खियां बन रही हैं, लेकिन एक बार भी किसी ने रूककर नहीं सोचा होगा कि सरकार को कड़े कानूनों की जरूरत क्यों पड़ी। यह इसलिए, क्योंकि हिंदुस्तान में अभी लोगों में ड्राइविंग सेंस भी विकसित नहीं हो पाए है, फिर उनसे ट्रैफिक नियम और शर्तों पर बात करना ही बेमानी है।

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हम सभी वर्ल्ड क्लास सिटी और स्मार्ट सिटी की कल्पना करते हैं और रानजीतिक पार्टियां भी ऐसे सपने बेंचकर सत्ता तक पहुंच जाती हैं, लेकिन ऐसा एक भी सपना तब भी साकार नहीं होगा जब तक हरेक सिटीजन उस सपने को आकार देने अपना योगदान देगा। मूल बात यह है कि स्मार्ट और वर्ल्ड क्लास सिटी की परिकल्पना तब तक मिथ्या रहेगी जब तक हरेक सिटीजन परिकल्पना को हकीकत बनाने में सहयोग नहीं करेगा।

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समस्या यह नहीं है कि संशोधित मोटर व्हीकल कानून के नियम और अर्थदंड काफी कठोर है, समस्या यह है कि लोग नियम और कानूनों की परवाह करना पसंद नहीं करते हैं। संशोधित मोटर व्हीकल कानून से पहले भी यही कानून लागू था, सिर्फ सख्ती और अर्थदंड बढ़ा दिए गए हैं।

कानूनन मोटर व्हीकल पर राइड करने वाले लोगों को ट्रैफिक नियमों का पालन करना चाहिए, लेकिन भय बिन प्रीति नहीं होती के फार्मूले के तहत सरकार को आर्थिक दंड बढ़ाने का निर्णय करना पड़ा। वरना सड़कों पर ट्रैफिक नियम तोड़ने वाले शहरियों को ट्रैफिक पुलिस को 100 और 50 रुपए में पटाने का हुनर जन्मजात होती है, क्योंकि मोटर व्हीकल चलाने वाला शहरी पीढ़ियों बाद भी इसके लिए तैयार नहीं हो सका है।

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कहते हैं जैसी प्रजा वैसा ही राजा। मौजूदा सरकार कुछ ज्यादा ही इंकलाबी है। स्वच्छ भारत अभियान से लेकर ओपेन डिफिकेशन और अब ट्रैफिक नियमों को लेकर लोगों के भीतर सिविक सेंस विकसित करने पर अमादा सरकार बदलाव की ओर उन्मुख है, लेकिन समस्या यह है कि स्वच्छ भारत अभियान और ओपन डिफिकेशन की तरह सपोर्ट करने में दिक्कत हो रही है।

याद कीजिए वर्ष 2015 में शुरू किए स्वच्छ भारत अभियान और खुले में शौच के खिलाफ चलाए गए अभियान का शुरू में लोगों ने कैसा विरोध किया था और अखबारों के पन्ने और न्यूज पोर्टल के की बोर्ड्स पीड़ितों की असंख्य कहानियां छाप डाली थीं। मोटर व्हीकल कानून में कड़े ट्रैफिक नियम के खिलाफ भी कुछ ऐसा हो रहा है।

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जरूरत है कि लोग यह समझ पाए कि ट्रैफिक नियमों में सख्ती की जरूरत क्यों आ पड़ी? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में सबसे अधिक मौत सड़क हादसों में होते हैं और अधिकांश की मौतें ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के चलते हुई है। इनमें हेल्मेट नहीं होना, गलत साइड पार्किग, रेड लाइड जंप, ओवरलोडिंग और ओवरटेकिंग प्रमुख है।

एनसीआरबी द्वारा वर्ष 2016 के आकंडे बताते हैं कि सड़क हादसों में मरने वाले लोगों की संख्या के लिहाज से सबसे ज्यादा दुर्घटना उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान में है। इनमें यूपी अव्वल है, जहां सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या 16,284 थी जबकि तमिलनाडु में यह आंकड़ा 15000 रहा।

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वहीं, महानगरों में दिल्ली में सड़क दुर्घटना में सबसे ज्यादा 2,199 जानें गई जबकि चेन्नई में इस दौरान 1046 लोग मारे गए। वहीं, इस सूची में भोपाल और जयपुर क्रमशः तीसरे और चौथे क्रम पर रहे। भोपाल में सड़क हादसों में 1015 और जयपुर में 844 लोगों की मौत रिकॉर्ड की गई।

अब सवाल उठता है कि सरकार ने इन्हीं आंकड़ों को दुरूस्त करने के लिए कड़े ट्रैफिक कानून बनाए हैं, जिससे सड़क हादसों से लोगों की जिंदगी को बचाया जा सके। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर घंटे 16 लोगों की मौत सड़क हादसे में होती है। कड़े ट्रैफिक नियमों और अर्थ दंड के पीछे मकसद यही है कि लोगों में डर से ही सही ट्रैफिक सेंस विकसित हो सके और सड़क हादसों की संख्या में उत्तरोत्तर हो रहे इजाफे की रफ्तार को रोकने में सफलता मिले।

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अफसोस यह है कि कड़े कानून से सामंजस्य करते हुए लोगों ने सबक सीखना शुरू ही किया था कि सियासत और मुरव्वत का खेल भी शुरू हो गया। गुजरात की बीजेपी सरकार ने राज्य में लागू संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट के नियमों और शर्तों पर ढील देने की पहल कर दी, जिसे अब अन्य राज्यों ने अपनाना शुरू कर दिया है।

सियासत के लिए लिए राजनीतिक दल जब सत्ता में होती हैं तक कड़े कानून बनाते समय हमेशा वोट बैंक का ध्यान रखती है। शायद यही कारण है कि पिछले 72 वर्षों से कांग्रेस के नेतृत्व में आई सरकारों ने जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने के बारे में सोच नहीं पाई, लेकिन मौजूदा सरकार ने एक झटके में हटा दिया।

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इसी तरह स्वच्छ भारत अभियान, खुले में शौच, जीएसटी, डीमोनिटेशन और अब कड़े ट्रैफिक कानून लागू किए गए हैं, जो देशहित में है और बिनना शॉर्ट कट अपनाए लोगों की अपनी ड्यूटी और सहयोग देना होगा। क्योंकि स्मार्ट और वर्ल्ड क्लास सिटी में रहने के लिए सिविक सेंस वाले सिटीवन इम्पोर्ट करने की सरकार की कोई योजना नहीं हैं इसलिए कड़े कानूनों से ग्रूम करने की कोशिश कर रही है।

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English summary
Revised Moter vehicle act 2019 initiated from 1st september, 2019 and since than people of India started crying over tightend traffic rules and fines who actually ride on road,
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