मां ने अपने 'जिगर के टुकड़े' के लिए दान किया जिगर, बच गई नन्हीं फातिमा की जान
अपनी डेढ़ साल के जिगर के टुकड़े के लिए एक मां ने अपना जिगर दान में दे दिया। इराक की रहने वाली हाना ने अपनी डेढ़ साल की बेटी फातिमा को लीवर दान में देकर उसकी जान बचाई। लीवर ट्रांसप्लांट के लिए हाना इराक से भारत आईं थीं, जहां नोएडा में उनकी बेटी का लीवर ट्रांसप्लांट किया गया।
नोएडा। अपनी डेढ़ साल के जिगर के टुकड़े के लिए एक मां ने अपना जिगर दान में दे दिया। इराक की रहने वाली हाना ने अपनी डेढ़ साल की बेटी फातिमा को लीवर दान में देकर उसकी जान बचाई। लीवर ट्रांसप्लांट के लिए हाना इराक से भारत आईं थीं, जहां नोएडा में उनकी बेटी का लीवर ट्रांसप्लांट किया गया। डेढ़ साल की नन्हीं फातिमा कंजेनाइटल हेपेटिक फ्राइब्रोसिस से पीड़ित थी। लीवर ट्रांसप्लांट होने के बाद फातिमा अब एकदम ठीक है और अपने देश लौटने को तैयार है।
ट्रांसप्लांट के लिए काटा गया हाना का लीवर
अपनी डेढ़ साल की बेटी फातिमा की जान बचाने की उम्मीद में इराक की हाना भारत आईं थीं। उनकी उम्मीद पर खरा उतरते हुए भारतीय डॉक्टरों ने नन्हीं फातिमा का सफल लीवर ट्रांसप्लांट किया। फातिमा का लीवर ट्रांसप्लांट नोएडा के जेपी अस्पताल में किया गया। उसकी हाइपर रिड्यूस्ड लेफ्ट लेटरल लीवर ग्राफ्ट की सर्जरी की गई। फातिमा में उसकी मां का लीवर लगाया गया जिसे डॉक्टरों ने काटकर छोटा किया। लीवर को काटकर उसकी मोटाई कम की गई जिसके बाद फातिमा में लीवर ट्रांसप्लांट किया गया।
आर्टरी विकसित ने होने से बढ़ी मुश्किलें
अस्पताल के लीवर ट्रांसप्लांट विभाग के सीनियर काउंसलर डॉ. अभीदीप चौधरी के अनुसार फातिमा को जन्म के बाद ही पीलिया हो गया था, जो वक्त के साथ बढ़ता गया। एक साल तक फातिमा का वजन केवल 6 किलो ही रहा। खाने में भी फातिमा को तरल खाना दिया गया जिसका असर उसके शरीर पर पड़ा। इससे दिल से फेफड़ों तक खून ले जाने वाली आर्टरी विकसित नहीं हो पाई। इस कारण उन्हें वेंटीलेटर से हटाना मुश्किल हो गया था, वहीं लीवर ट्रांसप्लांट होने के बाद फातिमा को आसानी से वेंटीलेटर से हटा दिया गया।
घर जाने को तैयार हैं दोनों
फातिमा और हाना, दोनों अब एकदन स्वस्थ्य हैं और अपने देश लौटने को तैयार हैं। नोट्टो (नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन) के डायरेक्टर विमल भंडारी के अनुसार भारत में अंगदान का चलन काफी कम है। देश में हार्ट ट्रांसप्लांट के 5 हजार मरीजों पर केवल 70 डोनर हैं। वहीं किडनी के 2 लाख मरीजों पर 7 हजार डोनर मौजूद हैं।
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