न्याय के लिए क्या सचमुच आम लोगों की पहुंच में नहीं है जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट, आंकड़े कुछ और कहते हैं कहानी
नई दिल्ली- दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट के सामने जम्मू-कश्मीर में लोगों को न्याय नहीं मिल पाने का सनसनीखेज मामला लाया गया था। कुछ ऐक्टिविस्ट और उनके वकीलों ने आरोप लगाए थे कि वहां की स्थिति ऐसी हो चुकी है कि लोग न्याय मांगने के लिए जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। तब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इन दावों को बहुत ही गंभीरता से लेते हुए कहा था कि अगर ऐसी स्थिति है तो हालात का जायजा लेने के लिए वो खुद श्रीनगर जाएंगे। लेकिन, पिछले सोमवार और मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर खंडपीठ में हुई कार्रवाई का विश्लेषण करें तो कहानी की एक अलग ही तस्वीर सामने आ रही है। पिछले दो दिनों में ये देखा गया है कि हाईकोर्ट के सामने सुनवाई के लिए जो मामले लाए गए, उनमें से ज्यादातर केस में या तो याचिकाकर्ता नहीं पहुंचे या उनके वकील नदारद पाए गए। जबकि, कुछ केस में याचिकाकर्ता और वकील अदालत के सामने पेश भी हुए।
81 केस में 12 में पहुंचे याचिकाकर्ता और वकील
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की श्रीनगर बेंच में पिछले सोमवार और मंगलवार को सुनवाई के लिए लिस्ट में 81 केस लगाए गए। इन 81 में से 12 मामलों में याचिकाकर्ता और वकील कोर्ट में उपस्थित हुए। हालांकि ज्यादातर केस में याचिकाकर्ताओं की गैरहाजिरी के चलते मामलों को बिना सुनवाई के अगली तारीख तक के लिए स्थगित कर दिया गया। ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ मामलों में याचिकाकर्ता अदालत में पेश भी हुए तो उनके वकील नहीं पहुंचे। कुछ केस में प्रतिवादी भी नहीं आए। हाईकोर्ट के ई-कोर्ट प्लेटफॉर्म की छानबीन से पता चलता है कि पिछले 5 अगस्त से स्थिति एक जैसी बनी हुई है। मसलन, सोमवार को एक केस में दो याचिकाकर्ता पहुंचे और उन्होंने दावा किया कि 24 जुलाई, 2019 को दूसरी पार्टी की ओर से जारी कारण बताओ नोटिस उन्हें ट्रैफिक पर पाबंदियों की वजह से मिल ही नहीं पाया। तब हाईकोर्ट ने उचित अवसर देने की बात कहकर सभी प्रतिवादियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि याचिकाकर्ताओं को दोबारा नोटिस भेजा जाए और मामले की अगली तारीख 23 दिसंबर की तय कर दी।
याचिकाकर्ता के नहीं पहुंचने से खारिज भी हुई याचिका
इससे पहले पिछले 13 सितंबर को हाईकोर्ट ने सर्विस से जुड़े एक मामले में दस्तावेजों के अध्ययन करने के बाद एक रिट याचिका को इसलिए खारिज कर दिया था कि याचिकाकर्ता दो-दो बार तय तारीख पर अदालत के सामने उपस्थित नहीं हुआ। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में तब कहा कि 'पार्टियों की ओर से 28 अगस्त, 2919 को भी कोई उपस्थित नहीं हुआ था, तब न्याय के हित में कोई विपरीत आदेश नहीं पारित किया गया। जब आज इस मामले की तारीख रखी गई तब भी याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई नहीं पेश हुआ। इसलिए रिट याचिका खारिज की जाती है।'
चीफ जस्टिस ने क्या कहा था?
गौरतलब है कि भारत के मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने सोमवार को कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की परिस्थितियों को देखने के लिए वे खुद श्रीनगर जाएंगे। तब चीफ जस्टिस ने इन आरोपों पर जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से एक रिपोर्ट तलब की थी कि लोगों को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की श्रीनगर बेंच में जाने में बहुत मुश्किल हो रही है। जस्टिस गोगोई ने इन आरोपों को 'बहुत-बहुत गंभीर' बताया था। उन्होंने एक याचिकाकर्ता के वकील से कहा था कि, 'अगर आप बयान दे रहे हैं कि हाईकोर्ट तक पहुंचने में दिक्कत हो रही है तो यह बहुत ही गंभीर बयान है। क्या कोई आपको हाईकोर्ट तक नहीं पहुंचने दे रहा है? प्लीज बताइए क्यों?' जस्टिस गोगोई ने ये भी कहा था कि 'अगर लोग हाईकोर्ट तक नहीं पहुंच पा रहे हैं तो यह बहुत-बहुत गंभीर मामला है, मैं खुद श्रीनगर का दौरा करूंगा।' हालांकि, इस दौरान उन्होंने आरोप लगाने वाले एक याचिकाकर्ता के वकील को चेतावनी देते हुए ये भी कहा था कि, 'अगर जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की रिपोर्ट विपरीत होगी तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहिए।'
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