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इन 3 प्रदेशों के 50% से अधिक लाभार्थियों तक नहीं पहुंचा लॉकडाउन राहत, जानिए कौन हैं ये प्रदेश?

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बेंगलुरू। COVID-19 महामारी से प्रेरित तीन सप्ताह के लिए घोषित राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान बिहार में मुफ्त राशन पाने के हकदार लगभग 90 फीसदी लोगों को दो सप्ताह तक मुफ्त नहीं मिल सका। यह आंकडा लॉकडाउन के दौरान कुल तीन राज्यों में एक साथ किए गए सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया हैं, जहां हकदारों को अनाज नहीं मिला।

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सर्वे के मुताबिक इस सूची में बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश शामिल हैं, जहां सर्वाधिक अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक रहते हैं। सर्वे के मुताबिक बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के तीन राज्यों में 60 फीसदी से अधिक हकादारों ने बताया कि उन्हें मुफ्त राशन नहीं मिला।

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सर्वेक्षण में पाया गया कि तीन राज्यों में 50 फीसदी से अधिक सर्वे में शामिल लोगों ने कहा कि अगर लॉकडाउन बढ़ाया तो वो एक सप्ताह के लिए भी घरेलू खर्च का प्रबंधन नहीं कर पाएंगे। जाहिर सी बात है कि लॉकडाउन जिसे 14 अप्रैल को समाप्त होना था, लेकिन उसे 3 मई तक बढ़ा दिया गया है।

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यह बात इसलिए अधिक चिंताजनक है, क्योंकि आर्थिक सर्वेक्षण 2017 के अनुसार बिहार और मध्यप्रदेश अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों का दूसरा और तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है, जो 2011 से 2016 के बीच सालाना 90 लाख के करीब होगा।

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उल्लेखनीय है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अत्यधिक संक्रामक कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए गत 25 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की, जो घंटों के भीतर लागू हुआ। मालूम हो, गत18 अप्रैल तक भारत में 14,777 लोगों का जानलेवा बीमारी के लिए टेस्ट पॉजिटिव आ चुका था।।

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अचानक लॉकडाउन ने लाखों अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों अधर में छोड़ दिया

अचानक लॉकडाउन ने लाखों अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों अधर में छोड़ दिया

वॉयस-आधारित मीडिया प्लेटफ़ॉर्म मोबाइल वाणी और 101 रिपोर्टरों की संकलित रिपोर्ट के मुताबिक देश में अचानक हुए लॉकडाउन की घोषणा से घरों से बाहर रह रहे लाखों अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिकों को शहरों में अकेला छोड़ दिया। रात भर में ही लाखों श्रमिकों ने खुद को बेरोजगार पाया, थोड़े से पैसे और दुर्लभ भोजन के साथ किराए के मकानों से उन्हें बाहर निकाल दिया गया। कोई परिवहन नहीं होने के कारण, कई लोगों ने घर से सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने या साइकिल चलाने का फैसला किया।

लॉकडाउन में केंद्र व राज्यों ने लोगों राहत सामग्री देने का ऐलान किया

लॉकडाउन में केंद्र व राज्यों ने लोगों राहत सामग्री देने का ऐलान किया

लॉकडाउन के दौरान केंद्र और राज्यों द्वारा पकड़े गए लोगों राहत देने के लिए अंतर-राज्य के श्रमिकों के लिए राहत शिविर स्थापित करने के साथ-साथ उन्हें भोजन वितरित करने या सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से अनाज के बढ़े हुए आवंटन की अनुमति देने सहित कई मददकारी चीजें पहुंचाने की कोशिश की गई।

सर्वे रिपोर्ट कहती है कि लगभग 90% गरीब को मुफ्त राशन नहीं मिला

सर्वे रिपोर्ट कहती है कि लगभग 90% गरीब को मुफ्त राशन नहीं मिला

वॉयस-आधारित मीडिया प्लेटफ़ॉर्म, मोबाइल वाणी ने लॉकडाउन के दौरान राहत प्रावधानों की स्थिति को समझने के तीव्र मूल्यांकन के लिए गत 11 अप्रैल और 12 अप्रैल को 1,737 उत्तरदाताओं (बिहार में 840, झारखंड में 398 और मध्य प्रदेश में 499) का साक्षात्कार किया। सर्वेक्षण में पाया गया कि अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों, किसानों और दैनिक मजदूरी या ठेका मजदूरों और उनके परिवारों को लॉकडाउन ने अपंग कर दिया गया है। उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें न तो उनकी राशन पात्रता प्राप्त हुई है, न ही पेंशन या कोई अन्य राज्य लाभ, जिससे उनकी आजीविका एक ठहराव में आ गई है।

बिहार में 88.8 फीसदी गरीब लोगों को मुफ्त अनाज नहीं मिला

बिहार में 88.8 फीसदी गरीब लोगों को मुफ्त अनाज नहीं मिला

बिहार में 88.8 फीसदी गरीब लोगों को जिन्हें घोषित लॉकडाउन से निपटने के लिए अगले तीन महीनों के लिए पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त खाद्यान्न दोगुना अधिक मात्रा में मिलना था, उन्हें अनाज नहीं मिला। झारखंड में, 63 फीसदी लोगों को मुफ्त राशन नहीं मिला, जबकि मध्य प्रदेश में जहां भाजपा ने लॉकडाउन से कुछ दिन पहले शासन में आई थी, वहां भी 69.3 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें मुफ्त राशन नहीं मिला था।

बिहार में मिड-डे मील योजना के तहत 66.4 फीसदी कुछ भी नहीं मिला

बिहार में मिड-डे मील योजना के तहत 66.4 फीसदी कुछ भी नहीं मिला

कई राज्यों ने केरल के पदचिन्हों पर चलते हुए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर लाभार्थियों को तैयार मिड-डे मील के बजाय अनाज वितरित करने का पालन किया है, लेकिन सर्वे के मुताबिक उपरोक्त तीनों राज्यों में यह प्रयास भी अधिक सफल नहीं रहा है। झारखंड में 39.7 फीसदी की तुलना में बिहार में मिड-डे मील योजना के तहत 66.4 फीसदी लाभार्थियों को आंगनवाड़ी केंद्रों से कुछ भी नहीं मिला। सर्वेक्षण में पाया गया कि मध्य प्रदेश में 49 फीसदी लाभार्थियों को मध्यान्ह भोजन का लाभ नहीं मिला जबकि 20.6 फीसदी लाभार्थियों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

तीनों राज्यों के करीब 60% ने कहा, उन्हें कोई पेंशन या नकद नहीं मिला

तीनों राज्यों के करीब 60% ने कहा, उन्हें कोई पेंशन या नकद नहीं मिला

केंद्र ने घोषणा की थी कि वृद्धों, विधवाओं और दिव्यांग लाभार्थियों को तीन महीने की पेंशन राशि हस्तांतरित की जाएगी। बिहार सरकार ने इसी तरह की घोषणा करते हुए कहा था कि तीन महीने के लिए पेंशन का भुगतान अग्रिम में किया जाएगा। हालांकि सभी तीन राज्यों में लगभग 60 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें सर्वेक्षण के अनुसार किसी भी प्रकार की पेंशन राशि नहीं मिली है।

दो सप्ताह के बंद के दौरान मनरेगा के तहत अपना लंबित वेतन नहीं मिला

दो सप्ताह के बंद के दौरान मनरेगा के तहत अपना लंबित वेतन नहीं मिला

सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि लॉकडाउन अवधि के दौरान राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत लाभ और साथ ही महिलाओं को नकद हस्तांतरण का कोई भौतिक लाभ नहीं हुआ। बिहार में लगभग 77 फीसदी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में 70 फीसदी और झारखंड में 67.3 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें पिछले दो सप्ताह के बंद के दौरान मनरेगा के तहत अपना लंबित वेतन नहीं मिला।

बिहार में 40 फीसदी महिलाओं को 500 रुपए की वित्तीय सहायता मिली

बिहार में 40 फीसदी महिलाओं को 500 रुपए की वित्तीय सहायता मिली

पीएम जन धन योजना के तहत महिला खाताधारकों को अप्रैल में तीन महीने के लिए उनके 500 रुपये की वित्तीय सहायता की पहली किस्त प्राप्त होनी थी। इस गणना में बिहार में 40 फीसदी उत्तरदाताओं को वित्तीय सहायता प्राप्त होने की सूचना मिली। मध्य प्रदेश में, जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार में एकमात्र कैबिनेट सदस्य हैं, केवल 34 फीसदी उत्तरदाताओं को पहली किस्त मिली है। झारखंड में सिर्फ 19 फीसदी को किसी भी वित्तीय मौद्रिक समर्थन प्राप्त होने की सूचना है।

Comments
English summary
According to the survey, Bihar, Jharkhand and Madhya Pradesh are on this list, where the most inter-state migrant workers live. According to the survey, more than 60 per cent hakadars in three states of Bihar, Jharkhand and Madhya Pradesh reported that they did not get free ration. This fact has been revealed in a survey conducted in a total of three states during the data lockdown, where the entitlements did not get grain.
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