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मोदी बनाम ममता: क्या ‘फ्री राशन’ से मिलेगा बिहार और पश्चिम बंगाल में सत्ता का सिंहासन

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मोदी बनाम ममता: क्या ‘फ्री राशन’ से मिलेगा बिहार और पश्चिम बंगाल में सत्ता का सिंहासन

कोरोना राहत पैकेज अब राजनीति का औजार बन गया है। फ्री राशन पॉलिटिक्स से बिहार और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव को साधने खेल शुरू हो गया है। भारत की राजनीति में 'फ्री कंसेप्ट’ के सूत्रधार अरविंद केजरीवाल, विधानसभा चुनाव जीतने का गुरुमंत्र दे चुके हैं। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बिहार चुनाव के लिए तो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए इस नुस्खे को आजमा रहे हैं। बिहार में अक्टूबर-नवम्बर में चुनाव होना है। प्रघानमंत्री ने गरीबों को मुफ्त अनाज देने की योजना नवम्बर तक बढ़ा दी। कोरोना संकट के दौरान शुरू की गयी मुफ्त अनाज को अब दिवाली, दुर्गापूजा और छठ से जोड़ कर जनता की भावना को भुनाने की कोशिश की गयी है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव अप्रैल-मई 2021 में है। इसको ध्यान में रखते हुए ममता बनर्जी ने मुफ्त अनाज योजना जून 2021 तक बढ़ा दी है। यानी गरीबों की योजना भी मोदी बनाम ममता की लड़ाई में तब्दील हो गयी है। चुनाव नजदीक आया तो भाषण देने वाले नेता अब राशन देने लगे हैं। अनलॉक-1 खत्म होने के पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री से सितम्बर तक फ्री राशन देने का अनुरोध किया किया था। इस मामले में मोदी ने एक कदम आगे बढ़ाया तो ममता ने दो कदम आगे बढ़ा दिये।

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फ्री राशन का बिहार कनेक्शन

फ्री राशन का बिहार कनेक्शन

मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो जनसंबोधन किया वह पूरी तरह से बिहार चुनाव पर फोकस था। उन्होंने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को न केवल नवम्बर तक बढ़ाया बल्कि इसके लिए भोजपुरी और मैथिली में ट्वीट भी किया। जाहिर है नरेन्द्र मोदी भाषा की भावनाओं को जगा कर बिहार के मेहनकश लोगों के दिलों में जगह बनाना चाहते हैं। करीब 26 लाख मेहनतकश बिहारी दूसरे राज्यों से बिहार लौटे हैं। इनमें अधिकतर लोग अब बिहार में ही रहना चाहते हैं। जरूरतमंद लोगों को तीन महीने तक मुफ्त राशन मिल चुका है। अगर पांच महीने और ये सुविधा मिल जाएगी तो एक बड़ी आबादी की मुश्किलें आसान हो जाएंगी। प्रधानमंत्री ने इस योजना को दशहरा, दिवाली और छठ से जोड़ कर बिहारी रंग दे दिया। यह घोषणा एक तरह से मेहनतकश लोगों के लिए त्योहारी तोहफा है। इस योजना के तहत गरीब परिवार के हर सदस्य को फ्री में पांच किलो चावल और पांच किलो गेहूं दिया जाएगा। हर परिवार को मुफ्त में एक किलो चना भी दिया जाएगा। जिस तरह से बिहार एनडीए के नेताओं ने नरेन्द्र मोदी की इस घोषणा की तारीफ की है उससे लगता है कि यह बिहार चुनाव के लिए एक बड़ी घोषणा है। सबसे ज्यादा खुश नीतीश कुमार हैं। उन्हे लगता है कि फ्री राशन से एक बड़े और नये वोट बैंक को अपने पाले में किया जा सकता है। चूंकि राशन देने वाले विभाग के मंत्री है रामविलास पासवान, इसलिए बिहार चुनाव में वे भी अपना श्रेय ले सकते हैं। यानी भाजपा के साझीदार जदयू और लोजपा दोनों इस घोषणा से गदगद हैं।

ममता को साख साबित करने की चुनौती

ममता को साख साबित करने की चुनौती

कोरोना संकट ने राजनीति के जमे जमाये ढांचे को तोड़ दिया है। जब पेट पर आफत आयी तो लोग रोटी की कसौटी पर सरकार को कसने लगे। ममता बनर्जी सरकार पर आरोप है कि उसने कोरोना संकट से निबटने के लिए सही समय पर सही कदम नहीं उठाया। इस त्रासदी के समय भी ममता केन्द्र और राज्य की लड़ाई लड़ती रहीं जिसकी वजह से संक्रमण का विस्तार हुआ। ममता सरकार पर यह भी आरोप है उसने कोरोना से मौत के आंकड़े को कम कर के बताया है। इन आरोपों को लेकर कोर्ट में याचिका तक दाखिल की गयी है। बहरहाल ममता बनर्जी को इन चुनौतियों के बीच राजनीतिक साख बचानी है। उन्होंने लॉकडाउन-1 के समय घोषणा की थी कि राज्य के 8 करोड़ परिवारों को छह महीने तक मुफ्त राशन दिया जाएगा। इस घोषणा के तरह गरीब लोगों को सितम्बर तक ही फायदा मिलता। लेकिन मौके की नजाकत को देख कर उन्होंने ये योजना जून 2021 तक के लिए बढ़ा दी। ममता ने इस मौके को भी मोदी के खिलाफ इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में गरीबों को दिये जाने वाले चावल-गेहूं की क्वालिटी केन्द्र से बहुत अच्छी होती है। केन्द्रीय योजना का अनाज केवल 60 फीसदी जरूरतमंद लोगों तक पहुंचता है जब कि पश्चिम बंगाल में हर गरीब परिवार इससे लाभान्वित होता है। कोरोना त्रासदी में सरकार के काम से नाखुश लोगों को खुश करने के लिए ही ममता ने और आठ महीने मुफ्त अनाज देने की घोषणा की। पश्चिम बंगाल में भाजपा की बढ़ती ताकत से ममता पहले ही परेशान थीं। अब कोरोना त्रसादी ने उन पर और दबाव बढ़ा दिया है। ऐसे में ममता मुफ्त अनाज के पतवार से अपनी डगमगाती नैया को पार लगाना चाहती हैं।

नीतीश और ममता दोनों को बचानी है सत्ता

नीतीश और ममता दोनों को बचानी है सत्ता

नीतीश कुमार करीब 15 साल से बिहार के मुख्यमंत्री है। नवम्बर 2020 के चुनाव में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती सत्ता बचाये रखने की है। ऐसे में उनको लोकलुभावन योजनाओं की सख्त दरकार है। कई भी दल कोरोना के राजनीतिक प्रभाव का सटीक आकलन नहीं कर पा रहा है। ऐसे में जनभावनाओं के अनुरूप चलना ही सबसे सुरक्षित रास्ता माना जा रहा है। जाहिर है नीतीश के फीडबैक पर ही मोदी ने ये एलान किया है। दूसरी तरफ ममता बनर्जी भी अगले साल सीएम के रूप में दस साल पूरा कर लेंगी। 2011 में जब से उन्होंने पश्चिम बंगाल में सत्ता संभाली उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के किले को एक तरह अभेद्य बना दिया है। उनके सामने कम्युनिस्ट और कांग्रेस, दोनों मटियामेट हो गया। अकेले दम पर उन्होंने दो बड़ी ताकतों को पश्चिम बंगाल में मृतप्राय बना दिया। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 42 में से 18 सीटें जीत कर ममता के किले में सेंध लगा दी थी। तब से वे अपनी सत्ता को बचाने के लिए सियासी जंग लड़ रही हैं।

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English summary
Modi vs Mamta - will 'Free Ration' get in power in Bihar and West Bengal elections
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