अंतरिम बजट में दिखेगा तीन राज्यों का हार असर, किसानों के लिए बड़े ऐलान संभव
नई दिल्ली। मौजूदा नरेंद्र मोदी का अगुवाई वाली केंद्र सरकार अगले साल फरवरी की पहली तारीख को अंतरिम बजट पेश करेगी। इस अंतरिम बजट में मोदी सरकार गांवों और खेती-किसानी के क्षेत्र में होने वाले खर्च पर ज्यादा फोकस कर सकती है। हिंदी पट्टी के तीन अहम राज्यों में हुए हालिया विधानसभा चुनावों में हार का सामना करने वाली केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी आर्थिक योजनाओं की समीक्षा कर जल्द एक नए रोडमैप के साथ आ सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि, चुनावी नतीजों का आगामी अंतरिम बजट की निर्माण प्रक्रिया पर गहरा असर होगा।
करदाताओं को राहत देने के लिए रोडमैप का भी ऐलान संभव
जिस साल लोकसभा चुनाव होता है, उस साल पेश होने वाला बजट अंतरिम बजट होता है। उसमें टैक्स संबंधी उपायों का ऐलान नहीं होता है लेकिन खर्च का ब्योरा पूर्ण बजट के हिसाब से दिया जाता है। उसके जरिए वर्तमान सरकार को अपना विजन देने का मौका मिलता है। । बजट में किसानों और छोटे कारोबारियों को राहत देने वाले बड़े ऐलान संभव है। साथ ही आम करदाताओं को राहत देने के लिए रोडमैप का भी ऐलान संभव है। मोदी सरकार के अंतिम बजट में सोशल सेक्टर पर खर्च और गांवों के लोगों की आमदनी बढ़ाने पर फोकस हो सकता है।
हार के पीछे कारण ग्रामीण इलाकों में बने संकट और किसानों के गुस्सा
सरकार 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के प्लान पर पहले से ही काम करना शुरू कर चुकी है। हाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की मिली हार के पीछे कारण ग्रामीण इलाकों में बने संकट और किसानों के गुस्से को बताया जा रहा है। बीजेपी ने राजस्थान के चुनावी घोषणापत्र में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) का वादा किया था। इस स्कीम की एक झलक आगामी बजट में देखने को मिल सकती है। बता दें का यूबीआई का आइडिया अरविंद सुब्रमण्यन ने इकनॉमिक सर्वे में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने के कारगर तरीके के तौर पर पेश किया था। लेकिन इसे लागू करने के लिए सरकार को संसाधन जुटाने होंगे।
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इन सेक्टर में राहत दे सकती है सरकार
कृषि क्षेत्र, खासतौर पर कृषि उपज की सरकारी खरीदारी के लिए खर्च बढ़ाया जा सकता है। सरकारी खरीदारी के दायरे में ज्यादा फसलों और ज्यादा इलाकों को लाया जा सकता है। सरकार असंगठित क्षेत्र के लिए पेंशन और बीमा के जैसी सुविधाओं को लेकर सोशल सिक्योरिटी कोड भी जल्द ला सकती है। मजदूर संगठनों की लंबे समय से ग्रेच्युटी की सीमा घटाने की मांग मान कर सरकार नौकरीपेशा लोगों को खुश करने पर विचार कर सकती है। अगले हफ्ते होने वाली जीएसटी की बैठक में रोजाना इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं पर दरें घटाने पर भी विचार कर सकती है।
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