तालिबान के साथ वार्ता तो फिर जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों के साथ बातचीत में क्या परेशानी- उमर अब्दुल्ला
श्रीनगर। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तालिबान के साथ वार्ता की खबर पर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उमर ने सरकार ने सवाल किया है कि जब सरकार अफगानिस्तान की शांति के लिए तालिबान के साथ वार्ता कर सकती है तो फिर जम्मू कश्मीर के स्टेकहोल्डर्स के साथ बातचीत करने में उसे क्या परेशानी है? उमर के इस सवाल के साथ ही इस पूरी वार्ता के साथ नया विवाद जुड़ गया है। भारत ने शुक्रवार को रूस की राजधानी मॉस्को में होने वाली एक मीटिंग में तालिबान के साथ गैर-आधिकारिक तौर पर वार्ता का आमंत्रण स्वीकार किया है।
कश्मीर पर क्यों नहीं हो सकती है ऐसी वार्ता
उमर ने कश्मीर में जारी संघर्ष को अफगानिस्तान के समांतर ही बताया। उन्होंने सवाल किया कि मोदी सरकार तालिबान के साथ गैर-आधिकारिक वार्ता में शामिल होना चाहती है लेकिन हर बार अलगाववादियों के साथ बातचीत करने से साफ इनकार कर देती है। विदेश मंत्रालय की ओर से साफ कर दिया गया है कि वार्ता पूरी तरह से गैर-आधिकारिक स्तर की है। इस वार्ता में विदेश मंत्रालय की ओर से कोई भी आधिकारी शामिल नहीं होगा। उमर ने ट्वीट कर सरकार से सवाल किया कि अगर भारत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकी संगठन घोषित तालिबान के साथ पहली बार वार्ता कर सकती है तो फिर वह जम्मू कश्मीर के मसले पर इसी तरह की वार्ता की मांग को अनसुना क्यों कर देती है। उमर ने सरकार से पूछा है कि जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों के साथ गैर-आधिकारिक वार्ता करने में क्या परेशानी है।
पूर्व राजदूत शामिल होंगे वार्ता में
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार की ओर से एक सवाल के जवाब में कहा गया, 'हम जानते हैं कि रूस की सरकार की ओर से अफगानिस्तान पर नौ नवंबर को एक मीटिंग की मेजबानी की जा रही है। भारत इस वार्ता में गैर-आधिकारिक तौर पर शामिल होगा। भारत की तरफ अफगानिस्तान में पूर्व राजदूत रहे अमर सिन्हा के अलावा पाकिस्तान में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त टीसीए राघवन वार्ता में शामिल होंगे।' अक्टूबर माह में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन भारत के दौरे पर आए थे। उनके भारत दौरे के बाद ही यह कदम नई दिल्ली की ओर से उठाया गया है।
और भी देश शामिल होंगे मीटिंग में
अफगानिस्तान में शांति कायम करने के मकसद से रूस इस वार्ता की मेजबानी कर रहा है।रूस की ओर से कई देशों जैसे अमेरिका, पाकिस्तान और चीन के साथ भारत को भी इसका आमंत्रण दिया गया है। तालिबान भी इस मीटिंग का हिस्सा होगा। यह पहली बार है जब अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया की कोशिशों के लिए भारत को भी हिस्सेदार बनाया गया है। रूस की न्यूज एजेंसी स्पूतनिक की ओर से बताया गयास है कि मीटिंग के लिए ईरान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्केमिनिस्तान और उजबेकिस्तान को भी आमंत्रण भेजा गया है। सितंबर माह में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी भारत आए थे और उनके साथ मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत हमेशा से ही शांति के लिए अफगानिस्तान की सरकार की कोशिशों को आगे बढ़ाने में प्रतिबद्ध रहा है।