MK Stalin: द्रविड़ राजनीति का नया पोस्टर ब्वॉय या तमिलनाडु में नई राजनीति की शुरुआत ?
नई दिल्ली, 7 मई। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानि डीएमके के मुखिया मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन ने शुक्रवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली। कोरोना वायरस महामारी के चलते शपथ ग्रहण कार्यक्रम को बिल्कुल सामान्य रखा गया था जिसमें राज्याल बनवारी लाल पुरोहित ने एम के स्टालिन के साथ ही 33 मंत्रियों को भी शपथ दिलाई।
एक दशक बाद डीएमके की वापसी
इसके साथ ही डीएमके ने एक दशक बाद राज्य की कमान अपने हाथों में ले ली है। 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने अपने बल पर बहुमत हासिल किया है। इसके पहले दो विधानसभा चुनाव में प्रतिद्वंदी एआईएडीएमके ने जीत हासिल कर डीएमके को सत्ता से दूर रखा था।
68 साल के स्टालिन न सिर्फ राज्य के मुख्यमंत्री होंगे बल्कि उस पार्टी के मुखिया भी होंगे जो देश में द्रविड़ आंदोलन का झंडा लेकर चलती रही है और जिस पार्टी की उनके पिता एम करुणानिधि ने कई दशकों तक अगुवाई की। करुणानिधि के बाद से ही डीएमके की अगुवाई कर रहे स्टालिन अब मुख्यमंत्री बन चुके हैं। स्टालिन के पास राज्य की सत्ता के साथ ही द्रविड़ आंदोलन को दिशा देने की जिम्मेदारी भी होगी।
राज्य की सत्ता डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन के पूर्ण बहुमत पाने के बाद अब स्टालिन की कोशिश द्रविड़ आंदोलन की वो पोस्टर ब्वॉय वाली छवि हासिल करने की होगी जैसी कभी उनके पिता और करिश्माई नेता करुणानिधि की हुआ करती थी।
यही वजह है कि मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद स्टालिन ने अपने ट्विटर बायो को बदलकर वहां लिख दिया है "द्रविड़ स्टॉक से संबद्ध"
द्रविड़ आंदोलन की मजबूत विरासत
स्टालिन का ये ट्विटर बॉयो 1962 में द्रमुक संस्थापक और पार्टी के पहले मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई के प्रसिद्ध राज्यसभा भाषण के संदर्भ को भी बताता है, जिसमें उन्होंने खुद को द्रविड़ स्टॉक का होने और अपने समय के दक्षिण भारत के नेताओं से अलग होने की घोषणा की थी
अन्नादुरई ने इस भाषण में जोरदार तरीके से द्रविड़वाद की वकालत करते हुए कहा था "मैं दावा करता हूं, जो एक देश से आता है जो अब भारत का हिस्सा है लेकिन मुझे लगता है यह एक अलग स्टॉक है। जरूरी नहीं कि विरोधी हो। मैं द्रविड़ियन स्टॉक से हूं। मैं अपने आपको द्रविड़ियन कहने पर गर्व करता हूं।"
साल था 1967 जब एक नई पार्टी ने राज्य की सत्ता से कांग्रेस जैसी दिग्गज पार्टी को उखाड़ फेंक दिया था। वो भी दो तिहाई के बहुमत से। ये कांग्रेस का वो दौर था जब उसी तमिलनाडु से के कामराज जैसे नेता पार्टी में हुआ करते थे। पहली बार अन्नादुरई के रूप में कोई गैर कांग्रेसी तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बना। तब से आज तक राज्य की राजनीति में डीएमके या एआईएडीएमके के रूप में द्रविड़ आंदोलन से निकली पार्टियां ही राज कर रही हैं।
अन्नादुरई की मौत के बाद 1969 में करिश्माई नेता करुणानिधि को डीएमके का अध्यक्ष चुना गया और वह 5 दशक तक इस पद पर रहे। इस दौरान करुणानिधि ने द्रविड़ आंदोलन की मशाल को मजबूती से थामे रखा जब तक कि उनके बेटे और राजनीतिक उत्तराधिकारी स्टालिन ने पार्टी की कमान अपने हाथों में संभाल नहीं ली। स्टालिन का उदय इस द्रविड़ आंदोलन से निकली पार्टी में एक नए युग की शुरुआत थी। अपने पिता करुणानिधि के बाद वह दूसरे व्यक्ति थे जो पार्टी के अध्यक्ष चुने गए।
द्रविड़ राजनीति का नया पोस्टर ब्वॉय
भले ही स्टालिन पहली बार मुख्यमंत्री बने हों लेकिन राजनीति उनके लिए नई नहीं है। अपने स्कूली दिनों से ही उन्होंने राजनीति में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था और यूथ विंग को खड़ा करके उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल भी दिखा दिया था। यही वजह है कि करुणानिधि ने उन्हें अपना राजनीतिक वारिस चुना। स्टालिन ने इंदिरा गांधी के द्वारा लगाए गए आपातकाल में राजनीतिक जुल्म भी देखा है।
2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के आईपैक की मदद भी ली लेकिन उनका पूरा जोर खुद को द्रविड़ आंदोलन का आइकॉन के रूप में पेश करने पर रहा। पूरे चुनाव में उनका हमला बीजेपी को हिंदी बेल्ट की पार्टी साबित करने पर रहा। राज्य की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी एआईएडीएमके ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। चुनाव में स्टालिन और डीएमके का हमला एआईएडीएमके से ज्यादा बीजेपी पर रहा। डीएमके ने मतदाताओं के बीच इस बात पर जोर दिया कि एआईएडीएमके को वोट बीजेपी के रूप में ऐसी पार्टी को जाएगा जो तमिल के ऊपर हिंदी को जोर देती है।
डीएमके के द्रविड़ आंदोलन को जोर देने को इस बात से समझा जा सकता है कि डीएमके नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके नेता पलानीस्वामी के प्रधानमंत्री के सामने झुककर अभिवादन करने को भी मुद्दा बनाया।
द्रमुक ने तमिलनाडु ने अधिकांश हिस्से में बीजेपी और उसकी हिंदुत्ववादी विचारधारा, ईपलानीस्वामी सरकार के खिलाफ सत्ताविरोधी फैक्टर को जमकर भुनाया और राज्य की 234 सीटों में 159 पर जीत हासिल की।
केंद्र से संबंधों पर होगी नजर
द्रविड़ आंदोलन की खासियत के रूप में डीएमके ने खुद को हमेशा से सामाजिक न्याय और तमिल स्वाभिमान के रक्षक के रूप में खुद को आगे रखा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि स्टालिन ने उस विशाल जनादेश को कैसे संभालते हैं जो उनकी पार्टी को मिला है। साथ ही यह भी देखना होगा कि वह केंद्र को चुनौती देने वाली द्रविड़ परंपरा को फिर से वापस लाते हैं या संबंधों को नए तरीके से परिभाषित करेंगे?
द्रविड़ विचारधारा को देखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि वह केंद्र में एनडीए के शासन से कैसे निपटते हैं। द्रमुक ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार पर कई मौकों पर राज्य की संघीय भावना को दबाने का आरोप लगाया है।
एक मुख्यमंत्री के रूप में स्टालिन को केंद्र में एनडीए सरकार के साथ इन मुद्दों को संभालने में बहुत साहसिक तरीके से काम करना होगा। इसके साथ ही पार्टी में आंतरिक झगड़े को भी हावी नहीं होने देना होगा। हालांकि उन्होंने अपने बेटे को कैबिनेट में शामिल न करके एक बुद्धिमानी भरा फैसला किया है और यह भाई-भतीजावाद के आरोपों से उन्हें दूर रखने में भी मदद करेगा।
स्टालिन के सामने राज्य में बड़ी चुनौती राज्य में बड़े पैमाने पर फैले भ्रष्टाचार को रोकना होगा। इसके साथ ही तात्कालिक चुनौती कोरोना वायरस महामारी की भयावह लहर को रोकना और राज्य की जनता के लिए टीकाकरण अभियान को तेज करना होगा।
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