प्रवासी कामगारों का पलायन गांवों तक फैला सकता है कोरोना का संक्रमण, जहां न तो टैस्टिंग लैब हैं और न अस्पताल
नई दिल्ली। कोरोना वायरस का संक्रमण न फैले इसके लिए संपूर्ण देश में लॉकडाउन किया गया हैं। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि यह एक युद्ध है जिसे इस दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा है इसलिए इससे कैसे निपटा जाएं इसके लिए लॉकडाउन के दौरान स्वयं को घरों में कैद रखकर सोशल डिसटेसिंग को ही सबसे बड़ा अस्त्र माना जा रहा हैं। लेकिन लॉकडाउन के बाद महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली समेत दर्जन भर राज्यों के मजदूरों का पलायन तेज हो गया है। आलम यह है कि बस-ट्रेनें बंद होने की स्थिति में लाखों की संख्या में लोग झुंड बनाकर पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करने के लिए निकल पड़े हैं।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार इस समस्या की व्यापकता को समझने के लिए, आर्थिक सर्वेक्षण 2017 से अनुमान लगाया कि 2011 और 2016 के बीच पाँच वर्षों में 90 लाख लोगों का सालाना पलायन हुआ। देश में आंतरिक प्रवासियों की कुल संख्या (अंतर-राज्य आंदोलन के लिए लेखांकन) है बड़े पैमाने पर 13.9 करोड़ (139 मिलियन) हैं ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि लॉकडाउन के बाद अपने गांवों तक लाखों लोग अपने गांव वापस जा रहे हैं तो क्या स्थिति उत्पन्न हो सकती हैं।
गौरतलब है कि देश के विभन्न प्रान्तों में रोजगार के लिए पलायन करने वालों में उत्तर प्रदेश और बिहार प्रवासियों की संख्या सबसे अधिक है। इसके बाद मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर और पश्चिम बंगाल हैं। प्रवासियों के लिए प्रमुख गंतव्य दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश और केरल हैं। चूंकि मीडिया का ध्यान केवल राजनधानी दिल्ली पर केंद्रित है, लेकिन यह अन्य गंतव्य राज्यों और शहरों में भी हो रहा है। दिल्ली जो देख रही है वह उत्तर प्रदेश और उससे सटे सीमावर्ती राज्यों में अंतर-राज्यीय प्रवास है और महाराष्ट्र के बाद दिल्ली की दूसरी सबसे बड़ी प्रवासी आबादी है। आंदोलन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के लिए है। शहरों से लेकर गाँव तक सभी राज्यों में भी इंट्रा-स्टेट माइग्रेशन है और इसलिए इनकी संख्या का अंदाजा लगा पाना नामुमकनि है।
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