मेट्रो मैन ई. श्रीधरन लगभग आडवाणी की उम्र में बीजेपी में जाकर क्या करेंगे
मेट्रो मैन" के नाम से प्रसिद्ध ई. श्रीधरन की क्षमता को लेकर न तो अटल बिहारी वाजपेयी और न ही मनमोहन सिंह को कोई शक रहा. नरेंद्र मोदी भी इसी कड़ी में शामिल हैं.
राजनीति को लेकर नज़रिए वक़्त के हिसाब से बदलते रहते हैं. ताज़ा उदाहरण 89 वर्ष के ई. श्रीधरन का है, जिन्हें 'मेट्रो मैन' के नाम से भी जाना जाता है.
तकनीक के विद्वान के रूप में उन्होंने छह दशकों तक अपनी सेवाएं दीं और अपने काम के ज़रिए उन्होंने राजधानी दिल्ली में बैठे शक्तिशाली राजनीतिक वर्ग को संदेश दिया कि उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में किसी का हस्तक्षेप मंज़ूर नहीं है.
उनके लिए काम सबसे महत्वपूर्ण था. दिल्ली मेट्रो रेल परियोजना के दौरान वे अपने मातहत कर्मचारियों के लिए एक डेडलाइन तय कर दिया करते थे और उन्हें बार-बार उसकी याद दिलाते थे.
उन्होंने हर काम में शुरुआत से आख़िर तक अहम भूमिका निभाई है और संक्षेप में कहें तो लखनऊ से लेकर कोच्चि तक देश के कई शहरों में मेट्रो रेल नेटवर्क का खाका उन्होंने ही तैयार किया है.
उन्होंने इंजीनियरिंग प्रमुख रहते हुए एक ऐसे ईमानदार शख़्स की पहचान बनाई जो समय पर काम करके देता है. ऐसी भी ख़बरें रही हैं कि उन्होंने अपनी इस छवि के ज़रिए प्रधानमंत्री कार्यालय से अच्छा तालमेल बैठाया.
एक वरिष्ठ नौकरशाह अपना नाम न सार्वजनिक करने की शर्त पर बीबीसी हिंदी से कहते हैं, "इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने काम करके दिखाया. लेकिन वो ऐसे शख़्स रहे हैं जो अपने आगे किसी की नहीं सुनते हैं."
इन्हीं वजहों से उन्हें शहरी विकास मंत्रालय की मेट्रो रेल परियोजनाओं की ज़िम्मेदारियां दी गई थीं न कि भारतीय रेलवे की जबकि वो इंडियन रेलवे इंजीनियर सर्विस (आईआरईएस) के सदस्य थे.
राजनीतिक रुख़ में परिवर्तन
तक़रीबन 18 महीने पहले वो नई दिल्ली में बीबीसी के दफ़्तर आए थे और उनसे पूछा गया था कि वो राजनीति में शामिल होने के बारे में क्या सोचते हैं?
इस सवाल पर उन्होंने बीबीसी हिंदी के डिजिटल एडिटर राजेश प्रियदर्शी से कहा था कि 'राजनीति उनके बस की बात नहीं है.'
केरल में बीजेपी में शामिल होने की घोषणा के बाद श्रीधरन ने बीबीसी हिंदी से कहा, "उस समय यह बात सच थी कि मैं राजनीति में दाख़िल होना नहीं चाहता था. मैं एक तकनीक शास्त्री हूं, महत्वपूर्ण परियोजनाओं का इंचार्ज रहा हूं इसलिए मैं यह नहीं चाहता था लेकिन आज मैं अपनी सभी पेशेवर ज़िम्मेदारियों को पूरा कर चुका हूं इसलिए मैंने राजनीति में आने का सोचा है."
राजनीति को लेकर जिस तरह से श्रीधरन के विचार बदले हैं, लगता है उसी तरह से बीजेपी ने भी 75 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए अपने विचार बदल लिए हैं.
बीजेपी अपने एलके आडवाणी, डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी और अन्य वरिष्ठ नेताओं को मार्गदर्शक मंडल का सदस्य मानती है और वो अब चुनावी राजनीति में शामिल नहीं हैं. हालांकि, श्रीधरन की आयु मुरली मनोहर जोशी से भी अधिक है.
केरल के बीजेपी नेता और विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन का कहना है, "उनकी आयु के बारे में हर कोई जानता है और हमें अपने केंद्रीय नेतृत्व से ऐसे कोई निर्देश नहीं हैं कि वो चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाए जाएंगे. हमारे उम्मीदवार ओ. राजगोपाल पिछले चुनाव में विधानसभा के लिए चुने गए थे उनकी आयु 85 वर्ष है."
बीजेपी के इस नियम में एक और शख़्स अपवाद स्वरूप हैं और वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा हैं जो इस महीने 78 साल के हो गए हैं.
मुरलीधरन कहते हैं, "लोग श्रीधरन को अलग तरह से और येदियुरप्पा को अलग तरह से देखते हैं. श्रीधरन ने दिल्ली मेट्रो परियोजना तब पूरी की जब वो 80 साल के थे लेकिन वो अभी भी बेहद लाभकारी व्यक्ति हैं."
श्रीधरन बीबीसी से यह भी कह चुके हैं कि वो बीजेपी में इसलिए शामिल हो रहे हैं क्योंकि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े प्रशंसक हैं.
बहुत कम राजनीतिक समर्थन
एक बड़े तकनीक शास्त्री होने के नाते वो देश के दो शक्तिशाली तकनीक विशेषज्ञों के समतुल्य समझे जाते हैं. पहले सैम पित्रोदा जो देश में दूरसंचार क्रांति लेकर आए और दूसरे डॉक्टर कूरियन वर्गीज़ जिन्होंने अमूल डेयरी के ज़रिए श्वेत क्रांति की.
सभी के पास राजनेताओं का समर्थन था जो उनकी क्षमताओं में दृढ़ विश्वास रखते थे और उनके योगदान को आम लोगों ने पहचाना भी. चाहे वो दूरसंचार हो, दूध हो या शहरी परिवहन हो.
श्रीधरन बाक़ी इन दो तकनीक विशेषज्ञों से कुछ मामलों में अलग हैं. श्रीधरन अपने साथ रेलवे अधिकारियों के साथ-साथ आईएएस अफ़सरों को भी रखते थे. संयोग से श्रीधरन को एक समय बीजेपी और उसके ताक़तवर नेताओं का भी सामना करना पड़ा है.
श्रीधरन इस मामले पर सफ़ाई देते हुए कहते हैं, "नहीं, मैंने यह कभी भी नहीं कहा था कि उन्हें मेरे दफ़्तर नहीं आना चाहिए. मैंने कहा था कि मैं राजनेताओं को अपने काम में हस्तक्षेप नहीं करने दूंगा. उस समय बहुत सी चीज़ें थीं कि मेट्रो कहां बनेगी, स्टेशन कहां होगा और कॉन्ट्रैक्ट्स किसे जाएगा आदि-आदि."
एक नौकरशाह बताते हैं, "उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्रियों और शीला दीक्षित जैसी मुख्यमंत्री का समर्थन हासिल रहा है."
प्रतिष्ठित कोंकण रेलवे परियोजना का काम शुरू होने के कुछ महीनों के बाद तत्कालीन रेल मंत्री जॉर्ज फ़र्नांडिस बेंगलुरु में कंस्ट्रक्शन साइट पर पहुंचे थे उन्होंने पत्रकारों को बताया था कि कैसे 'महाराष्ट्र से केरल तक पश्चिमी तट पर सभी राज्यों को जोड़ने के लिए' बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटा गया था.
जॉर्ज फ़र्नांडिस ने तब पत्रकारों से कहा था, "यह सब कुछ इन असाधारण व्यक्ति के कारण हो सका है जिनका नाम मिस्टर श्रीधरन है. इन सभी राज्यों के लोग अब रेलवे की सस्ती दरों पर 760 किलोमीटर का सफ़र कर सकेंगे."
उस समय फ़र्नांडिस ही थे जिन्होंने श्रीधरन की नियुक्ति को कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर बढ़ाया था. 58 साल की आयु पर पहुंचने के बाद वो रेलवे से रिटायर होने की तैयारी कर रहे थे और सेवा मुक्त होना चाहते थे. रेल मंत्री के दबाव के कारण रेलवे बोर्ड को उन्हें कॉन्ट्रैक्ट देना पड़ा
सात सालों के बाद श्रीधरन ने समुद्र तट के साथ-साथ ट्रेन कनेक्टिविटी दी. इसमें केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र तक 179 बड़े पुल और 190 सुरंगें शामिल हैं.
रेलवे ने दी बड़ी सीख
कोंकण से पहले उन्होंने असामान्य काम करके दिखाया था उन्होंने पम्बन ब्रिज बनाया था जो ढह गया था. हालांकि, उन्होंने रामेश्वरम को तमिलनाडु की मुख्य भूमि को 50 से भी कम दिनों में जोड़ दिया और इसके लिए उन्हें रेलवे मंत्री के पुरस्कार से नवाज़ा गया.
यह 60 के दशक की बात थी. अगले दशक में भारत की पहली मेट्रो की योजना और उसको ज़मीन पर उतारने का लक्ष्य उनके सामने था.
90 के दशक के आख़िर में बीजेपी के मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने उन्हें दिल्ली मेट्रो की परियोजना के लिए चुना. इस योजना को कांग्रेस की मुख्यमंत्री ने आगे बढ़ाया और श्रीधरन को विपक्षी बीजेपी नेता मदन लाल खुराना के हर हमले से बचाया.
दिल्ली मेट्रो के पहले चरण में उनको बहुत से विदेशी सलाहकारों का साथ मिला क्योंकि उस समय इस क्षेत्र का विशेषज्ञ भारत में कोई नहीं था.
कुछ विदेशी सलाहकारों ने श्रीधरन को 'सख़्त कर्मचारी' बताया था और एक शख़्स ने उन्हें टीवी शो पर सकारात्मक तौर पर 'गॉडफ़ादर' भी कहा था.
पत्रकार शेखर गुप्ता को एक बार दिए टीवी इंटरव्यू में श्रीधरन ने उनसे कहा था कि उनकी तनख़्वाह एक समय किसी सरकारी कर्मचारी को दी जा रही सबसे अधिक तनख़्वाह के बराबर थी, जो की 38,000 रुपये थी.
उन्होंने कहा था, "अगर मैं किसी निजी कंपनी के लिए काम करता तो मैं इससे 50-60 गुना कमाता लेकिन मैं यह सब शिकायत नहीं कर रहा हूं."
मेट्रो के पहले चरण के बाद श्रीधरन मेट्रो स्टेशन जाते थे और उसकी सीढ़ियों को छूने के बाद कर्मचारियों को कहते थे कि पिछली रात को यह साफ़ नहीं हुआ है.
लेकिन इससे भी बड़ी हैरत दिल्ली और इससे बाहर के राज्यों के लोगों को तब हुई जब उनको मेट्रो की दीवारों पर एक भी पान की पीक नहीं दिखाई देती थी.
इन्हीं सब कारणों की वजह से जुलाई 2009 में जब निर्माणाधीन मेट्रो पुल के गिरने की घटना घटी तो उसके बाद भी लोगों ने उनसे इस्तीफ़ा नहीं मांगा.
बीजेपी में शामिल होने से क्या होगा हासिल
बीजेपी के एक कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर बीबीसी से कहा, "कड़े शब्दों में कहूं तो इतने दशकों तक अपनी एक अलग छवि बनाने के बाद श्रीधरन को अब जाकर राजनीति में शामिल नहीं होना चाहिए था. उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें राज्यसभा में होना चाहिए और देश के मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं के लिए उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया जाना चाहिए."
इस टिप्पणी पर एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "अब इस टिप्पणी पर हम क्या बोल सकते हैं. यह तो प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है. अगर वो विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं तो यह अच्छा होगा."
राजनीतिक विश्लेषक और एशियानेट नेटवर्क के एडिटर-इन-चीफ़ एमजी राधाकृष्णन बीबीसी हिंदी से कहते हैं, "बीजेपी के लिए श्रीधरन एक अच्छा चेहरा हैं. एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में उनमें एक आकर्षण है और वो दिखा चुके हैं कि वो लोगों को कुछ दे भी सकते हैं. अब बीजेपी केरल में उनका किस तरह इस्तेमाल कर पाएगी यह कठिन सवाल है."