MeToo: कभी कांग्रेस के दरबार की शान थे बीजेपी के अकबर
नई
दिल्ली।
कांग्रेस
अध्यक्ष
राहुल
गांधी
बीते
गुरुवार
को
राफेल
सौदे
पर
प्रेस
कॉन्फ्रेंस
करने
आए
थे।
इस
दौरान
उन्होंने
मोदी
सरकार
को
जमकर
घेरा।
पिछले
कुछ
महीनों
से
राहुल
गांधी
मोदी
सरकार
के
खिलाफ
बेहद
आक्रामक
रुख
अपनाए
हुए
हैं।
इसी
प्रेस
कॉन्फ्रेंस
में
कांग्रेस
अध्यक्ष
के
सामने
#MeToo
मूवमेंट
से
जुड़ा
सवाल
आया।
राहुल
गांधी
ने
#MeToo
को
गंभीर
और
संवेदनशील
मुद्दा
बताया,
लेकिन
#MeToo
मूवमेंट
में
आरोपों
से
घिरे
बीजेपी
नेता
और
विदेश
राज्य
मंत्री
एमजे
अकबर
के
बारे
में
पूछे
गए
सवाल
को
वह
टाल
गए।
कांग्रेस
पार्टी
एमजे
अकबर
पर
लगे
आरोपों
पर
'सॉफ्ट
प्रोटेस्ट'
कर
रही
है,
कांग्रेस
अध्यक्ष
तो
सवाल
ही
टाल
गए।
एक
पूर्व
संपादक,
जो
अंग्रेजी
के
कई
बड़े
अखबारों
से
होते
हुए
राजनीति
तक
पहुंचा
और
आज
मोदी
सरकार
में
मंत्री
है।
ऐसे
शख्स
के
खिलाफ
कांग्रेस
हल्ला
बोल
क्यों
नहीं
कर
रही
है?
तो
जवाब
है-
एमजे
अकबर
जितने
बीजेपी
के
हैं,
उतने
ही
कांग्रेस
के
भी।
जब बंगाल के प्रभारी थे राजीव गांधी, तब करीब आए थे एमजे अकबर
इंदिरा गांधी की 1984 में हत्या से पहले राजीव गांधी बंगाल कांग्रेस के प्रभारी थे। उस समय एमजे अकबर द टेलिग्राफ अखबार के संपादक थे। एमजे अकबर उस जमाने में पत्रकारिता का बड़ा नाम थे और इसी दौरान राजीव गांधी की उनसे नजदीकियां बढ़ गईं। यहां तक कि राजीव गांधी उस वक्त एमजे अकबर से राजनीतिक सलाह-मशविरा तक करने लगे थे। तेज-तर्रार पत्रकार एमजे अकबर ने अपने विश्लेषण और चिंतन से राजीव गांधी के साथ अच्छी रेप्युटेशन बना ली थी।
शाहबानो केस में एमजे अकबर की सलाह पर ही राजीव गांधी ने उठाया था बड़ा कदम
बात 1978 की है। इंदौर निवासी शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानून की शरण ली। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और उस पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला पहुंचते-पहुंचते 7 साल का लंबा अरसा बीत चुका था। अदालत ने अपराध दंड संहिता की धारा 125 के अंतर्गत निर्णय दिया, जो हर किसी पर लागू होता है चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो। कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए शाहबानो के हक में फैसला देते हुए मोहम्मद खान को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। मुस्लिम धर्मगुरु सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के विरोध में आ गए। राजीव गांधी उस समय प्रधानमंत्री थे। फैसले का विरोध करने वालों में एमजे अकबर भी थे और उन्होंने राजीव गांधी को समझाया कि अगर कानून बनाकर फैसला नहीं पलटा गया तो मुस्लिम उनकी पार्टी से दूर हो जाएंगे। राजीव गांधी ठीक ऐसा ही किया।
1989 में एमजे अकबर ने छोड़ दी पत्रकारिता और कांग्रेस के टिकट पर लड़े चुनाव
राजीव गांधी के साथ बढ़ती नजदीकियों के चलते एमजे अकबर ने राजनीति में एंट्री का मन बनाया। उन्होंने पत्रकारिता छोड़ दी और कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन कर ली। एमजे अकबर को कांग्रेस का प्रवक्ता बनाया गया। एमजे अकबर को बिहार की लोकसभा सीट किशनगंज से चुनाव मैदान में उतारा गया और वह सांसद बन गए। 1989 के आम चुनाव में एमजे अकबर तो जीत गए पर कांग्रेस बहुमत नहीं पा सकी। इसके बाद राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। एमजे अकबर के लिए बिना राजीव गांधी के कांग्रेस में रह पाना संभव नहीं था। ऐसा कहा जाता है कि नरसिम्हा राव से उनके रिश्ते ठीक नहीं थे। मौके की नजाकत देखते हुए एमजे अकबर वापस पत्रकारिता में आ गए।