अपनी बेटी के नाम पर रखा था 'मर्सिडीज़' का नाम, आज से ही सड़कों पर दौड़ी थी कार
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जर्मनी के मेकैनिकल इंजीनियर गॉटलीब डाइम्लर ने पेट्रोल से चलने वाली अपनी पहली लक्जरी कार 1899 में मोरक्को के सुल्तान को बेची। डाइम्लर ने अपने ही कस्बे कानश्टाड में डाइम्लर मोटोरेन गेजेलशाफ्ट (डीएमजी) नाम की कंपनी बनाई। इसी बीच ऑस्ट्रिया के एक कारोबारी एमिल येलिनेक ने डाइम्लर से संपर्क किया व दो सिलेंडरों और छह हॉर्सपावर की एक कार खरीदी।
जब मिलने लगी सफलता तो रफ्तार पकड़ गई मर्सडीज़-
उन्हें ये कार धीमी लगी व डाइम्लर से कहा कि वो दो चार सिलेंडर वाली कारें बनाएं, जो तेज भागें। डाइम्लर ने ऐसी कारें तैयार करवा दीं। नई कारों को येलिनेक ऑस्ट्रिया के अमीरों को बेचने लगे।
इसके साथ ही कारों की रेस भी शुरू हो गई। येलिनेक ने रेस में हिस्सा लेने वाली अपनी कार का नाम मेर्सिडीस रख दिया। असल में यह उनकी बेटी का नाम था। 1900 में येलिनेक और डाइम्लर के बीच समझौता हुआ कि वो चार सिलेंडरों वाली कारें मर्सिडीज के नाम से बेचेंगे।
दोनों को लगा कि इस नाम से गाड़ी के जर्मन होने के अहसास नहीं होता, लिहाजा ये फ्रांस में भी आसानी से बिकेगी। डीएमजी ने दिसंबर 1900 तक 35 हॉर्सपावर की गाड़ी बना दी। 1901 में बाजार में आने के साथ ही इसे पहली आधुनिक कार कहा जाने लगा व इसकी उच्चतम रफ्तार 80 किलोमीटर प्रतिघंटा थी।
मर्सिडीज नाम से बिक रही इन कारों ने जर्मनी, ऑस्ट्रिया और फ्रांस में गजब की कामयाबी हासिल की। इसी नायाब सफलता को देखते हुए 22 जून 1902 को डीएमजी ने अपना ब्रांड नाम आधिकारिक तौर पर मर्सिडीज दर्ज करा दिया। आज देश-दुनिया में मर्सडीज़ अपना झंडा बुलंद कर रही है।