#Salute: गुमनामी में न खो जायें भारत की ये महिलाएं
नई दिल्ली। हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर कई प्रकार के पुरस्कार दिये जाते हैं। आम तौर पर पुरस्कार पाने वाले चेहरे जाने पहचाने ही होते हैं। जबकि जमीनी स्तर पर देखं तो देश भर में लाखों लोग अपने-अपने क्षेत्र में कुछ अलग कर रहे हैं, लेकिन गुमनामी के अंधेरे में होने के कारण उनका नाम सामने नहीं आता।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देश की उन महिलाओं के कार्य को सामने लाने के प्रयास किये हैं, जो अब तक गुमनामी में थीं। वन इंडिया इन सभी महिलाओं को सलाम करता है। ये महिलाएं कौन हैं, चलिये देखते हैं तस्वीरों के साथ नीचे स्लाइडर में। और हां, अगर आप इन्हें वोट करना चाहते हैं, तो यहां Click कर सकते हैं- देश की सफल महिलाओं की प्रतियोगिता।
त्रिवेणी आचार्य
दिल्ली की त्रिवेणी आचार्य ने अब तक करीब 4000 लड़कियों की जिंदगियों को वेश्यालयों से छुड़ाया और उनकी जिंदगी को संवारा है। लड़कियों की खरीद-फरोख्त के विरुद्ध इनकी जंग जारी है।
तारा अहलूवालिया
भीलवाड़ा राजस्थान की तारा अहलूवालिया महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरुद्ध पिछले 30 सालों से लड़ रही हैं। इन्होंने पिछले चार सालों में 1200 से ज्यादा मामलों को निबटाया है। घरेलू हिंसा के विरुद्ध इनकी जंग जारी है।
कीर्ति भारती
जोधपुर की कीर्ति भारती एक निडर महिला हैं, जिन्होंने कई सारी छोटी-छोटी बच्चियों को दुल्हन बनने से बचाया। बाल विवाह के विरुद्ध इनकी जंग जारी है।
निर्मल चंदेल
जगजीत नगर, हिमाचल प्रदेश की निर्मल एकल नारी शक्ति संगठन की नेता हैं, जिन्होंने महिलाओं की पेंशन, राशन कार्ड और भूमि में हिस्सेदारी पर 2008 में बड़ा आंदोलन किया था।
वाराणसी की श्रुति
वाराणसी की श्रुति पिछड़ी ग्रामीण महिलाओं के लिये काम करती हैं। ऐसी दलित महिलाएं जो छुआ-छूत की शिकार हैं। श्रुति इनके अधिकारों के लिये लड़ रही हैं।
दीबा रॉय
सिलचर की दीबा रॉय ने एचआईवी एड्स, ड्रग्स, निकोटीन, आदि के खिलाफ अभियान चलाये। दीबा अब असम की पिछड़ी महिलाओं को पढ़ाने व उनके सामाजिक विकास के लिये कार्य कर रही हैं।
ललिता एसए
दिल्ली की ललिता ने जीबी रोड पर रहने वाली तमाम वेश्याओं के जीवन को पुन: बसाने का काम किया है। तमाम वेश्याओं को नई दिशा दिखाई है, जिसके बाद उन महिलाओं ने देह व्यापार छोड़ दिया।
प्रतिभा शर्मा
यूपी के मथुरा की रहने वाली प्रतिभा शर्मा महिलाओं को न्याय दिलाने का काम करती हैं। खास तौर से अनाथ एवं विधवा महिलाओं के लिये कार्य करती हैं।
श्रेया सिंघल
श्रेया सिंघल ने सुप्रीम कोर्ट में एक लंबी लड़ाई लड़ी। उन्होंने आईटी ऐक्ट के 66A के अंतर्गत बोलने के अधिकार की जंग जीती।
लता सुंदरम
तमिलनाडु की लता सुंदरम ने हजारों पिछड़ी महिलाओं को पढ़ाने का काम किया है। लता भारत की राष्ट्रीय वॉलीबॉल टीम का हिस्सा रह चुकी हैं।
भानुमति
बहराइच, उत्तर प्रदेश की भानुमति एक छोटे से गांव की हैं। इन्होंने 2014 में वोट देने के अधिकार के लिये जंग लड़ी और आंदोलन के बाद पूरा गांव आगे आया और विकास कार्य तेजी से आगे बढ़े।
सुधा वर्गिस
पटना की सुधा को बाइक वाली दीदी कहा जाता है। इन्होंने अपना जीवन मुने सहर जनजाति को समर्पित कर दिया। इस जनजाति और दलित लड़कियों के उत्थान की दिशा में कई कार्य किये।
डॉक्टर कुमारी
केरल के तिरुर की डॉक्टर कुमारी ने अपने ही घर में अनाथाश्रम खोला, जहां उन बच्चों को पनाह दी, जिनका कोई नहीं। इन्होंने तमाम बच्चों की जिंदगियां बचायी हैं।
रंगू सूरिया
सिलिगुड़ी की साहसी समाजसेविका रंगू सूरिया ने करीब 600 बच्चों, किशोरियों व महिलाओं को वेश्यालयों से बाहर निकालने का काम किया है।
सुनीता कृष्णन
सुनीता ने तमाम महिलाओं को देह व्यापार से बाहर निकलने में मदद की। उन लड़कियों को बचाया, जिन्हें बेच दिया गया था।