मिलिए महान वैज्ञानिक से जिनके बूते भारत बना हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का बड़ा उत्पादक और भेज रहा अन्य देशों को दवा
मिलिए महान वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र रे से जिनके बूते भारत बना हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का बड़ा उत्पादक Meet the great scientist who helped India become a major producer of hydroxychloroquine
बेंगलुरु। कारोना के खिलाफ विश्व भर में लड़ी जा रही जंग में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को बीते कुछ दिन में बड़े हथियार के तौर पर देखा जा रहा है। भारत सरकार ने 13 देशों को हाइड्रोक्लोरोक्वाइन दवा भेजने के लिए पहली खेप को मंजूरी दे दी है। इस लिस्ट में अमेरिका, बांग्लादेश, कनाडा समेत 13 देशों को ये दवा भेजी जाएगी। इस लिस्ट में बताया गया है कि अमेरिका ने हाइड्रो क्लोरोक्वाइन की 48 लाख टेबलेट मांगी हैं, उनको इस लिस्ट में 35.82 लाख टेबलेट की मंजूरी मिली है।
कोरोना के लिए संजीवनी बनी दवा का महान वैज्ञानिक
गौरतलब है कि दो दिन पूर्व अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के इस निर्यात को बंद करने के बाद पीएम मोदी को धमकी देते हुए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने का दबाव तक डाला था। आइए जानते उस महान वैज्ञानिक के बारे में जिसके बूते भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक बना और कोरोना संकट के बीच देश ही नहीं अन्य कई देशों के लिए संजीवनी बनी इस दवा सप्लाई कर रहा हैं।
रसायन शास्त्र के जनक वैज्ञानिक रे ने की थी शुरुआत
कोविड-19 के उपचार के लिए दुनिया भर में चर्चित हो चुकी क्लोरोक्वीन दवाई के चलते आज भारत के महान वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र रे काफी चर्चा में हैं। महान वैज्ञानिक, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारकर रहे आचार्य प्रफुल्ल के जीवन पर, जिनकी एक सोच ने भारत को आज कोविड-19 के खिलाफ इतना अहम बना दिया। बता दें देश में क्लोरोक्वीन दवाई बनाने की सबसे बड़ी कंपनी बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड रही है, जिसकी स्थापना आज से 119 साल पहले आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे ने की थी, जिन्हें भारतीय रसायन शास्त्र का जनक भी कहा जाता है। हालांकि पिछले काफी समय से बंगाल केमिकल्स ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पादन नहीं किया है।
1934 में की थी इसके उत्पादन की शुरुआत
बंगाल केमिकल्स दरअसल क्लोरोक्वीन फॉस्फेट बनाती रही है, जिसका उपयोग मलेरिया की दवाई के रूप में होता रहा है। क्लोरोक्वीन फॉस्फेट का भी वही प्रभाव है जो हाल ही में चर्चा में आयी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट का। लेकिन बंगाल केमिकल्स ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट उत्पादन पिछले कुछ सालों से बंद कर रखा है। उल्लेखनीय है कि बंगाल केमिकल्स इस दवाई को बनाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की एकमात्र कंपनी है। नए नियमों के अनुसार इस दवाई को बनाने के लिए अब कंपनी को फिर से लायसेंस लेना होगा। बंगाल केमिकल्स ने इस दवाई का उत्पादन आजादी की काफी पहले,
आचार्य का ये सपना
आचार्य
का
सपना
था
कि
देश
इस
मुकाम
पर
खड़ा
हो,
जहां
उसे
जीवनरक्षक
दवाओं
के
लिए
पश्चिमी
देशों
का
मुंह
न
ताकना
पड़े
और
आज
उनका
वो
सपना
सत्य
हो
गया
क्योंकि
दुनिया
की
कई
बड़ी
महाशक्ति
कोरोना
से
निपटने
के
लिए
भारत
से
मदद
की
गुहार
लगा
रही
है।
बचपन से वैज्ञानिकों की जीवनियां पढ़ने का शौक था
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे को भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग का जनक माना जाता है। 2 अगस्त 1861 को बंगाल के खुलना जिले के (आज के बांग्लादेश) ररुली कतिपरा में पैदा हुए प्रफुल्ल के पिता हरीशचंद्र राय, फारसी के विद्वान थे। पिता ने अपने गांव में एक मॉडल स्कूल स्थापित किया था, इसमें प्रफुल्ल चंद्र ने प्राथमिक शिक्षा पाई। 12 साल की उम्र में जब बच्चे परियों की कहानी सुनते हैं, तब प्रफुल्ल गैलीलियो और सर आइजक न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों की जीवनियां पढ़ने का शौक रखते थे। वैज्ञानिकों के जीवन चरित्र उन्हें बेहद प्रभावित करते। प्रफुल्ल ने जब एक अंग्रेज लेखक की पुस्तक में 1000 महान लोगों की सूची में सिर्फ एक भारतीय राजा राम मोहन राय का नाम देखा तो स्तब्ध रह गए। तभी ठान लिया कि इस लिस्ट में अपना भी नाम छपवाना है।
विज्ञान से ही नही बल्कि राष्ट्रवादी विचारों से भी लोगों को किया प्रभावित
रसायन विज्ञान उनके लिए पहले प्यार की तरह था। कलकत्ता विश्वविद्यालय से डिप्लोमा लेने के बाद वह 1882 में गिल्क्राइस्ट छात्रवृत्ति लेकर विदेश जाकर पढ़ने लगे। 1887-88 में एडिनबरा विश्व विद्यालय में रसायन शास्त्र की सोसाइटी ने उन्हे अपना उपाध्यक्ष चुना। स्वदेश प्रेमी प्रफुल्ल विदेश में भी भारतीय पोशाक ही पहनते थे। 1888 में भारत लौटे तो शुरू में अपनी प्रयोगशाला में मशहूर वैज्ञानिक और अजीज दोस्त जगदीश चंद्र बोस के साथ एक साल जमकर मेहनत की। 1889 में, प्रफुल्ल चंद्र कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में रसायन विज्ञान के सहायक प्रोफेसर बन गए। प्रफुल्ल चन्द्र रे सिर्फ अपने विज्ञान से ही नही बल्कि राष्ट्रवादी विचारों से भी लोगों को प्रभावित करते, उनके सभी लेख लंदन के अखबारों में प्रकाशित होते थे, वे अपने लेखों से ये बताते कि अंग्रेजों ने भारत को किस तरह लूटा और भारतवासी अब भी कैसी यातनाएं झेल रहे हैं। मातृभाषा से प्रेम करने वाले डॉ. रे छात्रों को उदाहरण देते कि रूसी वैज्ञानिक निमेत्री मेंडलीफ ने विश्व प्रसिद्ध तत्वों का पेरियोडिक टेबल रूसी में प्रकाशित करवाया अंग्रेजी में नही।
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