मिलिए देश की इकलौती ट्रांसजेंडर डॉक्टर अक्सा शेख से, जो संभाल रही हैं कोरोना वैक्सीनेशन सेंटर की जिम्मेदारी
नई दिल्ली। भारत में कोरोना वैक्सीनेशन का दूसरा चरण सोमवार, 1 मार्च से शुरू हो गया है। कोरोना वैक्सीन के दूसरे चरण में 60 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों को तथा किसी पुरानी बीमारी से ग्रसित 45-59 साल के लोगों को टीके की खुराक दी जाएगी। इस क्रम में एक बुजुर्ग कोरोना का टीका लगवाने हमदर्द इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ऐंड रिसर्च पहुंचे। उन्होंने वहां के नोडल ऑफिसर से जब बात की तो वह दुविधा में फंस गए। वह जिस नोडल ऑफिसर के बात कर रहे थे, वह दिखने में तो महिला थीं, लेकिन उनकी आवाज पुरुषों की तरह थी।
वो इंस्टिट्यूट में कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर
बुजुर्ग ने जब वहां मौजूद एक वॉलिंटियर से उनके बारे में जानकारी तो पता चला कि, उनका नाम अक्सा शेख हैं। वो इस इंस्टिट्यूट में कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वो ट्रांसजेंडर हैं। अक्सा मुंबई में जन्मी और वही उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। अक्सा शेख ने हमदर्द इंस्टिट्यूट के वैक्सीनेशन सेंटर की नोडल ऑफिसर बनाई गई हैं। वे अपनी जिम्मेदारी बढ़-चढ़कर निभा रही हैं। उन्होंने ये जिम्मेदारी इसलिए ली ताकि लोगों की उनकी कम्युनिटी को लेकर नजरिया बदल सके।
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मुंबई में पली-बढ़ी हैं अक्सा
अक्सा का इस पोजिशन तक पहुंचना बेहद ही मुश्किल भरा था। मुंबई के मलाड में जन्मी अक्सा की शुरूआती पढ़ाई मुंबई में ही हुआ। वे पढ़ाई में शुरू से अच्छी थी जिस वजह से अच्छे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला और मेडिकल की डिग्री हासिल की। उनका अपने परिवार को छोड़कर 2010 में दिल्ली आकर रहना काफी संघर्षपूर्ण रहा। पहले वो जाकिर हुसैन थीं जो 2013 में अक्सा शेख हो गईं।
अक्सा ने सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से ही एमडी की डिग्री हासिल की
उन्होंने बताया, "मैं पैदा तो लड़का हुई थी, लेकिन तीन-चार साल की उम्र से ही मुझे लड़कियों जैसी फीलिंग होने लगी थी। मैं सिर्फ लड़को वाले स्कूल में गईं। मेरा बचपन कितना संघर्षपूर्ण रहा। मैंने केईएम हॉस्पिटल के अंदर सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई की। मैं अपनी पहचान को लेकर परेशान रहती थीं। मेडिकल के तीसरे साल में जाकर अपनी पहचान को लेकर समझा और निर्णय लिया और ट्रांसजेंडर के रूप में सामने आईं। अक्सा ने सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से ही एमडी की डिग्री हासिल की।
अब वह दिल्ली में अपनी मम्मी के साथ रहती हैं
अक्सा बताती हैं कि, जब मैं कॉलेज के फर्स्ट ईयर में थीं तब मेरा ब्लड प्रेसर बढ़ने लगा। डॉक्टर ने उन्हें मनोचिकित्सक से मिलने की सलाह दी। 2003 में उन्होंने मनोचिकित्सक से परामर्श लेना शुरू किया और तब उन्हें अपने ट्रांसजेंडर नेचर का पता चलने लगा। तब तक परिवार ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी। हालांकि धीरे-धीरे परिवार ने उन्हे अब अपनाना शुरू कर दिया है। अब वह दिल्ली में अपनी मम्मी के साथ रहती हैं। ट्रांसजेंडर के रूप में खुल के जीने का नया सफर अक्सा ने दिल्ली आकर शुरू हुआ।
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