मिलिए उस कर्नल से जिसकी वजह से पूरा हो सका अटल सुरंग का सपना
मनाली। पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन के साथ जारी टकराव के बीच ही आज हिमाचल प्रदेश के मनाली में सेना को बड़ा सपोर्ट सिस्टम मिलने वाला है। इस सपोर्ट सिस्टम के मिलने के बाद मौसम कोई भी हो, हर पल एलएसी पर तैनाती के लिए भारत की सेना तैयार रह सकेगी। अटल सुरंग, जिसका सपना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देखा था, आज एक दशक के बाद वह पूरा होने वाला है। आज मिलिए उस इंसान से जिसने इस सपने को पूरा करने में एक बड़ा रोल अदा किया है। हम बात कर रहे हैं इंडियन आर्मी में कर्नल, कर्नल परीक्षित मेहरा की जो पिछले पांच वर्षों से इस सुरंग के प्रोजेक्ट को पूरा करने में जुटे हैं।
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साल 2015 से जुड़े प्रोजेक्ट से
साल 2004 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) से पास आउट होने के बाद सेना में कमीशन हासिल करने वाले कर्नल परीक्षित मेहरा का योगदान अटल सुरंग को पूरा करने में कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। वह साल 2015 में वह अटल सुरंग परियोजना से जुड़े थे जिसे रोहतांग सुरंग परियोजना के नाम से भी जाना जाता है। सुरंग के निर्माण में ऑस्ट्रिया की टनलिंग विधि का प्रयोग हुआ है। कर्नल मेहरा के पास टनलिंग में मास्टर डिग्री जिसमें से एक उन्होंने ऑस्ट्रिया से ली हुई है। कर्नल मेहरा ने ऑस्ट्रिया से उस विधि में महारत हासिल की है जो इस परियोजना के लिए बहुत जरूरी थी। इस विधि को ऑस्ट्रिया के इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट ने NATM का नाम दिया हुआ है। इस विधि की मदद से किसी भी सुरंग के लिए चट्टानों या फिर मिट्टी की कड़ी पर्तों को काटने में मदद मिलती है। कर्नल मेहरा ने अपने पास मौजूद इसी विधा का प्रयोग अटल सुरंग के निर्माण में किया। NATM निर्माण और डिजाइन दोनों ही विधियों में कारगर है। कर्नल मेहरा बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) के साथ भी जुड़े हैं। कर्नल मेहरा ने आईआईटी दिल्ली से रॉक मैकेनिक्स की डिग्री भी ली हुई है।
बहुत चुनौतीपूर्ण था प्रोजेक्ट
एक इंटरव्यू में कर्नल परीक्षित मेहरा ने बताया था कि सुरंग का 587 मीटर का हिस्सा सेरी नाला से होकर गुजरता है और यह एक ऐसा हिस्सा था जिसे पूरा करना सबसे बड़ी चुनौती थी। उन्होंने कहा कि 8.4 किलोमीटर के रास्ते को संतुलित करने में चार वर्ष और यहां 587 मीटर की दूरी को पूरा करने में भी इतना ही समय लग गया। कर्नल मेहरा के पास टनलिंग में मास्टर डिग्री जिसमें से एक उन्होंने ऑस्ट्रिया से ली हुई है। उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान एक बार तो सुरंग के अंदर का तापमान 55 डिग्री तक पहुंच गया था। इसके बाद मुश्किल से 22 डिग्री पार कर पाया। उन्होंने कहा, 'आमतौर पर गहरी सुरंगें टेक्टोनिक प्रभावों की चपेट में नहीं आती हैं क्योंकि वे शॉक वेव्स के साथ ही कठोर होती हैं।
एक जैसी बनी हैं दो सुरंग
अटल सुरंग में दो सुरंग बनाई गई हैं। एक सुरंग में हादसे जैसी बाधाओं के होने पर दूसरी सुरंग का प्रयोग हो सकेगा। जबकि दूसरी सुरंग भी मुख्य सुरंग की तरह 8.8 किलोमीटर लंबी है। इस सुरंग को बनाने का फैसला वर्ष 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार तरफ से लिया गया था। यह सुरंग इसलिए भी खास है क्योंकि लद्दाख तक पहुंचे के जो दो रास्ते अभी हैं, वो दोनों ही सर्दियों में बंद हो जाते हैं। एक रास्ता रोहतांग पास पर बना लेह-मनाली हाईवे है जबकि श्रीनगर-द्रास-कारगिल-लेह हाईवे पर जोजिला पास है। दोनों ही रास्ते सर्दियों में बर्फबारी के वजह से बंद हो जाते हैं।
एक दिन में गुजर सकेंगी 3,000 कारें
इस सुरंग में 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ड्राइव किया जा सकता है। साथ ही सुरंग एक दिन में 3,000 कारों और 1500 ट्रकों का बोझ झेल सकती है। इसे तैयार करने में 12,252 मीट्रिक टन स्टील, 1,69,426 मीट्रिक टन सीमेंट और 1,01,336 मीट्रिक टन कंक्रीट का प्रयोग किया गया है। जबकि 5,05,264 मीट्रिक टन मिट्टी और मिट्टी की खुदाई की गई है। सुरंग की नींव 28 जून 2010 को यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने मनाली के करीब सोलन वैली में रखी थी। अटल सुरंग रक्षा मंत्रालय के लिए अहम कड़ी है जिसके जरिए पूरे 475 किलोमीटर लंबे मनाली-केलॉन्ग-लेह हाइवे को सेनाओं के प्रयोग के लिए आसान बनाया जा सके। इस सुरंग के बाद लद्दाख में सेनाओं की तैनाती जल्द हो सकेगी।