अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए अध्यादेश जरूरी, मध्यस्थता से नहीं होने वाला कुछ भी: शिवसेना
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए राम मंदिर निर्माण के मुददे पर मध्यस्थता के आदेश दे दिए हैं। इस फैसले पर शिवसेना का बयान आया है। शनिवार को सेना की तरफ से कहा गया कि राम जन्मभूमि एक भावनात्मक मुद्दा है और इसे मध्यस्थता के जरिये हल नहीं किया जा सकता। शिवसेना ने पूछा कि जब राजनेता, शासक और सर्वोच्च न्यायालय अब तक इस मुद्दे को हल नहीं कर सके तो फिर ये तीन मध्यस्थ क्या करेंगे। पार्टी ने केंद्र से इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने और राम मंदिर का निर्माण शुरू करने को कहा है।
आपको बता दें कि मध्यस्थता का एक और मौका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है जो अयोध्या में दशकों पुराने राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के संभावित हल की संभावना मध्यस्थता के जरिये तलाशने की कोशिश करेगी।
शिवसेना ने कहा कि शीर्ष अदालत ने राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला टाल दिया है और इस मामले का फैसला अब लोकसभा चुनाव के बाद ही होगा। पार्टी ने कहा कि एकमात्र सवाल यह है कि यदि मध्यस्थता के माध्यम से मुद्दे को हल किया जा सकता है, तो विवाद 25 वर्षों तक क्यों जारी रहा और सैकड़ों लोगों को अपनी जान क्यों गंवानी पड़ी?" पार्टी के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में यह पूछा गया है।
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शिवसेना ने अपने संपादकीय सामना में कहा कि "अगर प्रदर्शनकारियों को इन सभी मुद्दों पर मध्यस्थता नहीं चाहिए थी, तो सुप्रीम कोर्ट अब क्यों करने की कोशिश कर रहा है? अयोध्या न केवल भूमि का मुद्दा है, बल्कि एक भावनात्मक है। यह अनुभव किया गया है कि मध्यस्थता और मध्यस्थता। इस तरह के संवेदनशील मामलों में काम न करें।